जकार्ताः इंडोनेशियाई राष्ट्रपति धार्मिक स्वतंत्रता पुरस्कार के लिए नामित, अल्पसंख्यकों
में आक्रोश
जकार्ता, 17 मई सन् 2013 (एशियान्यूज़): इन्डोनेशिया के काथलिक धर्माधिकारियों, नागर
समाज तथा विज्ञान एवं विश्वास के क्षेत्र में प्रतिष्ठित लोगों ने इन्डोनेशिया के राष्ट्रपति
सुशीलो बामबाँग युद्धोयोनो को धार्मिक स्वतंत्रता पुरस्कार के लिये नामित किये जाने का
विरोध किया है। मई माह के अन्त में राष्ट्रपति युद्धोयोनो को न्यू यॉर्क स्थित "अपील
ऑफ कॉनशियन्स" नामक अमरीकी न्यास द्वारा धार्मिक स्वतंत्रता के लिये पुरस्कृत किया जाना
निर्धारित है। इन्डोनेशियाई राष्ट्रपति को उक्त पुरस्कार दिये जाने पर देश के अल्पसंख्यक
नाराज़ हैं तथा इसके विरुद्ध कई प्रदर्शन भी किये गये हैं। उनका कहना है कि राष्ट्रपति
युद्धोयोनो ने देश में अन्तरधार्मिक सदभाव को प्रोत्साहन देने तथा अल्पसंख्यकों की रक्षा
हेतु कुछ खास नहीं किया है। काथलिक पुरोहित फादर सुज़ेनो ने कहा, "साढ़े आठ वर्षीय
अपने कार्यकाल के दौरान राष्ट्रपति युद्धोयोनो ने इन्डोनेशिया के लोगों से यह कभी नहीं
कहा कि वे अल्पसंख्यकों का सम्मान करें। स्पष्ट है कि अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा
के लिये उन्होंने कुछ नहीं किया।" सन् 1965 में रब्बी आरथर श्नाईयर द्वारा स्थापित
उक्त अमरीकी न्यास को सम्बोधित पत्र में फादर सुज़ेने ने बताया कि देश से सैकड़ों अहमदी
मुसलमानों को या निकाल दिया गया या फिर मार डाला गया सिर्फ इसलिये कि सुन्नी बहुल इन्डोनेशिया
में अहमदियों को अपधर्मी माना जाता है। उन्होंने प्रश्न किया कि क्या इन्डोनेशिया
भी पाकिस्तान या फिर ईराक के समान बन जायेगा जहाँ धर्म अथवा सम्प्रदाय के नाम पर शिया
मुसलमानों की हत्या की जाती है? इन्डोनेशिया के ख्रीस्तीयों द्वारा सहे जा रहे अत्याचारों
की ओर ध्यान आकर्षित कराते हुए उन्होंने बताया कि ख्रीस्तीयों को अपने आराधना स्थलों
के निर्माण के लिये अनुमति नहीं दी जाती है तथा उनके कई गिरजाघरों को अवैध घोषित कर ध्वस्त
कर दिया जाता है। छः मई को जकार्ता की सड़कों पर कई मानवाधिकार संगठनों एवं अल्पसंख्यकों
ने पुरस्कार के विरुद्ध प्रदर्शन में भाग लिया था।