वाटिकन सिटी, वृहस्पतिवार 16 मई, 2013 (सेदोक, वीआर) संत पापा फ्राँसिस ने नये अनिवासी
राजदूतों को वाटिकन प्रेरितिक आवास के क्लेमिन्तीन सभागार में संबोधित करते हुए कहा,
"हम उन बातों के लिये धन्यवादी हो सकते हैं जो मानव की साकारात्मक उपलब्धि हैं और सच्चे
रूप में मानव के कल्याण में अपना योगदान देते हैं।"
मालूम हो कि संत पापा फ्राँसिस
ने किरजिस्तान, अन्तीगुवा तथा बारबुदा तथा ग्रैड दूची ऑफ़ लक्सेमबर्ग और बोत्सवाना के
राजदूतों का प्रत्यय या पहचान पत्र स्वीकार किया। संत पापा ने कहा कि आज विश्व के अधिकांश
लोग असुरक्षा के वातावरण में अपना जीवन जी रहे है।
उन्होंने कहा, "कुछ विकृतियाँ
अपनी मनोवैज्ञानिक परिणामों के साथ बढ़ रही हैं, लोग भय और हताशा चपेट में है, कुछ तथाकथित
अमीर देशों में जीवन की खुशी कम हो रही है, अश्लीलता और हिंसा बढ़ रहे हैं, गरीबी बढ़ती
जा रही है और लोग जीवन के लिये संघर्ष कर रहे हैं और कई तो अमर्यादित तरीके से जीवन यापन
कर रहे हैं।"
इसके कई कारण हैं पर एक कारण है - मानव का धन के साथ संबंध। कई
बार लोग इसे एक शक्ति रूप में स्वीकार कर लेते हैं जिसके फलस्वरूप वे वित्तीय संकट का
अनुभव करते हैं। विश्वव्यापी आर्थिक मंदी के कारण मानव का महत्व बस उसकी एक ज़रूरत तक
सीमित कर दिया गया है। और यह ज़रूरत है उपभोग।
इससे भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि
मनुष्य ही उपभोग की वस्तु समझा जाने लगा है। कुछ अर्थशास्त्री और राजनीतिज्ञ समझते हैं
कि ईश्वर के साथ जीया नहीं जा सकता है कुछ तो इसे खतरनाक भी समझते हैं। ऐसा इसलिये क्योंकि
ईश्वर चाहते हैं कि व्यक्ति हर तरह की गुलामी से मुक्त हो। उन्होंने कहा कि आज ज़रूरत
है अर्थशास्री और राजनीतिज्ञ संत क्रिसोस्तम की बातों पर चिन्तन करें जो कहते हैं, "अपनी
संपति को ग़रीबों के साथ नहीं बाँटना उन्हें लूटना है यह हम कहें उनके जीवन से वंचित
करन है।"
संत पापा ने राजदूतों से अपील की कि वे ऐसा आर्थिक सुधार लायें जो सर्वहितकारी
हो। धन मानव की सेवा करे उस पर शासन नहीं करे। उन्होंने कहा कि वे धनी और निर्धन दोनों
को प्यार करते हैं पर उसका दायित्व है कि धनियों को याद दिलायें कि वे ग़रीबों की मदद
करें, उन्हें उचित सम्मान दें और उनके विकास के लिये कार्य करें।