बंगलोर, सोमवार, 22 अप्रैल, 2013(कैथन्यूज़) बंगलोर में ख्रीस्तीय विरोधी हिंसा पर एक
जन सुनवाई का आयोजन 19 अप्रैल को ‘इन्स्टीट्यूट ऑफ़ अग्रीकल्चर टेक्नोलॉजीस’ में किया
गया। जन सुनवाई में जिन न्यायधीशों ने हिस्सा लिया उनमें ‘ग्लोबल कनसर्न इंडिया’ के
संस्थापक सदस्य ब्रिन्दा अदिगे, वकील ओमकर केबी, कोमु सौहार्दा वेदिके के महासचिव केएल
एशोक तथा फॉरम फॉर डमॉक्रसी एंड क्मयुनल अमिति के महासचिव मुहम्मद रफ़ी अहमद शामिल थे।
अखिल भारतीय ख्रीस्तीय समिति द्वारा आयोजित इस जन अदालत में 70 ईसाई पास्टरों ने
हिन्दु अतिवादियों द्वारा चर्चों को ढाहने और पवित्र स्थलों का अनादर करने की शिकायत
की। पास्टरों ने आरोप लगाया है कि कई जो ईसाइयों पर कर्नाटक की ‘साम्प्रदायिकता ग्रस्त
पुलिस’ ने संघ परिवार के झाँसे में आकर झूठे आरोप लगाये और उन्हें पुलिस स्टेशन या जेल
में कई दिनों तक रखा गया। विदित हो कि वर्ष 2012-13 में कर्नाटक का उत्तर कनड क्षेत्र
ख्रीस्तीय विरोधी हिंसा और तोड़-फोड़ का शिकार हुआ था। और इसी के मद्देनज़र सार्वजनिक
जन सुनवाई सभा बुलायी गयी थी। विभिन्न रिपोर्टों को सुनने के बाद न्यायधीशों की
ओर से बोलते हुए वकील ओमकार ने कहा कि बात स्पष्ट है कि ख्रीस्तीय समुदाय विशेष कर पास्टरों
और धार्मिक नेताओं को परेशान करने के लिये अतिवादी राजनीतिक तत्वों ने राज्य मशीनरी का
दुरुपयोग किया। जनसुनवाई के लिये 200 व्यक्तियों को बुलाया गया था पर सिर्फ़ 80 व्यक्ति
ही इसमें शामिल हुए। कई लोगों ने अखिल भारतीय ख्रीस्तीय समिति से कहा कि सार्वजनिक सुनवाई
होने और उसमें साक्ष्य देने के बाद उनके सुरक्षा की क्या गारंटी है।
उधर कौंसिल
ने माँग की है कि मुख्य मंत्री और राज्यपाल दोनों ने सब पुलिस स्टेशनों को सख़्त निर्देश
दे कि वे ईसाई विरोधी हिंसा भड़काने वालें के खिलाफ़ तुरन्त कारवाई करे। विदित हो
जनसुनवाई इस लिये आयोजित किया गया क्योंकि कर्नाटक हाई कोर्ट के पूर्व न्यायधीश माईकेल
सल्दान्हा एक रिपोर्ट पेश कर बतलाया था कि तीन सालों में करीब 1 हज़ार लोगों को धर्म
के नाम पर प्रताड़ित किया गया।