वाटिकन सिटी: याजक ही नहीं सभी ख्रीस्तीय सुसमाचार प्रचार के लिए बुलाये गये हैं
वाटिकन सिटी, वृहस्पतिवार 18 अप्रैल 2013 ( सीएनएस) :"याजक ही नहीं सभी ख्रीस्तीय सुसमाचार
प्रचार के लिए बुलाये गये हैं, यहाँ तक कि अत्याचार की घड़ी में भी।" यह बात संत पापा
फ्राँसिस ने 17 अप्रैल प्रातः को वाटिकन के प्रेरितिक आवास ‘दोमुस संता मार्था’ में वाटिकन
कर्मचारियों के लिए अर्पित पवित्र ख्रीस्तयाग के दौरान अपने उपदेश में कहा। उन्होंने
कहा "प्रथम ख्रीस्तीय समुदाय कड़े अत्याचार से बचने के प्रयास में तितर-वितर हो गये पर
उन्होंने विभिन्न जगहों में जाकर सुसमाचार प्रचार किया।" संत पापा ने आगे कहा "उन्होंने
अपना घर छोड़ा, संभवतः कुछ ही समान अपने साथ लेकर गये, उनके लिए कोई सुरक्षा नहीं थी
पर सुसमाचार प्रचार के वास्ते कई जगहों का भ्रमण किया।" संत पापा फ्राँसिस ने
उपदेश में जापानी ख्रीस्तीयों के इतिहास को भी सामने रखते हुए कहा कि 17वीं सदी में मिशनरियों
को जापान से भगा दिया गया फिर भी दो सहस्राब्दि तक ख्रीस्तीय बिना पुरोहित के रह पाये।
अंत में जब मिशनरियों को जापान लौटने की अनुमति मिली, मिशनरी वहाँ के लोगों से चकित थे
क्योंकि उन्होंने सभी ख्रीस्तीय समुदायों को व्यवस्थित पाया; सभी लोग कलीसिया में ही
बपतिस्मा संस्कार, धर्मशिक्षा और शादी संस्कार प्राप्त कर चुके थे। संत पापा ने सवाल
किया, "क्या ख्रीस्तीयों में अब भी बपतिस्मा संस्कार की शक्ति बरकरार है ? क्या
हम इस पर विश्वास करते हैं कि बपतिस्मा ही सुसमाचार प्रचार के लिए पर्याप्त है?" इन
सवालों के उत्तर में संत पापा ने कहा "सभी बपतिस्मा प्राप्त ख्रीस्तीयों का कर्तव्य है
कि वे अपने जीवन, साक्ष्य और वचन से येसु की घोषणा करें। जब हम ये सारे कार्य सम्पन्न
करते हैं तब कलीसिया बच्चों को जननेवाली ‘माता कलीसिया’ बन जाती है, पर जब हम इन कार्यो
को नहीं करते हैं तब ये कलीसिया एक माता नहीं बल्कि बच्चे को बैठाने वाली कलीसिया रह
जाती है जो बच्चे को सिर्फ सुलाने में मदद करती है।" ज्ञात हो कि इन दिनों संत पापा
फ्रांसिस वाटिकन में कार्यरत विभिन्न दल के कार्यकर्त्ताओं के लिए पवित्र ख्रीस्तयाग
अर्पण कर रहे हैं।