2013-03-31 12:40:55

वाटिकन सिटीः रोम शहर और विश्व के नाम सन्त पापा फ्राँसिस का पास्का सन्देश


वाटिकन सिटी, 31 मार्च सन् 2013(सेदोक): रविवार, 31 मार्च को पास्का महापर्व के उपलक्ष्य में, काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष, सन्त पापा फ्राँसिस ने, रोम स्थित सन्त पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में, पास्का महायाग अर्पित किया तथा इसके बाद सम्पूर्ण विश्व एवं रोम शहर के नाम अपना विशिष्ट पास्का सन्देश जारी किया।

"रोम तथा सम्पूर्ण विश्व के अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, ईस्टर मुबारक!"

इन शब्दों से पास्का अर्थात प्रभु येसु मसीह के पुनरुत्थान महापर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ अर्पित कर सन्त पापा फ्राँसिस ने रोम शहर तथा सम्पूर्ण विश्व के नाम अपना विशिष्ट सन्देश जारी करते हुए कहाः "ख्रीस्त जी उठे हैं! इस सन्देश की उदघोषणा करना मेरे लिये कितना आनन्ददायक है! मेरी मंगलकामना है कि यह सन्देश हर घर एवं हर परिवार तक पहुँचे, विशेष रूप से, जहाँ उत्पीड़न अपार है, अस्पतालों में, बन्दीगृहों में......

सबसे पहले, मैं चाहता हूँ कि यह प्रत्येक हृदय तक पहुँचे, इसलिये कि वहीं ईश्वर इस शुभसमाचार के बीज बोना चाहते हैं: येसु जी उठे हैं, यह आप के लिये आशा है, अब आप पाप एवं बुराई की शक्ति के अधीन नहीं रहे! प्रेम को अपूर्व सफलता मिली है, करूणा विजयी हुई है।

हम भी, उन महिलाओं की तरह जो येसु की शिष्याएँ थीं, जो कब्र पर गई थीं तथा जिन्होंने कब्र को खाली पाया था, प्रश्न कर सकते हैं कि इस घटना का मतलब क्या है (दे. लूक 24:4)। येसु जी उठे हैं, इसका क्या मतलब है? इसका अर्थ है कि ईश्वर का प्रेम बुराई एवं स्वयं मृत्यु से भी अधिक शक्तिशाली है; इसका अर्थ है ईश्वर का प्रेम हमारे जीवन को रूपान्तरित कर सकता तथा हमारे हृदयों के मरूस्थलों को फलने-फूलने दे सकता है।

वही प्रेम जिसके लिये ईश्वर के पुत्र मानव बने तथा अन्त तक, नीचे पाताल तक – ईश्वर से पृथक होने के रसातल तक- विनम्रता एवं आत्मसमर्पण के रास्ते का अनुसरण करते रहे, उसी करूणामय प्रेम ने येसु के मृत शरीर को ज्योतिर्मान कर रूपान्तरित कर दिया, उसे अनन्त जीवन में पारित होने दिया। येसु अपने पूर्व जीवन में, सांसारिक जीवन में, वापस नहीं लौटे अपितु ईश्वर के महिमामय जीवन में प्रवेश कर गये। वहाँ वे हमारी मानवता के साथ प्रविष्ट हुए तथा ऐसा कर उन्होंने हमारे लिये आशा के भविष्य का द्वार खोल दिया।

सन्त पापा ने आगे कहा, "यही ईस्टर हैः यह निर्गमन है, पाप एवं बुराई की दासता से प्रेम एवं भलाई की स्वतंत्रता तक मानव प्राणियों का पार होना। इसलिये कि ईश्वर जीवन हैं, केवल जीवन, और उनकी महिमा है जीवित मानव (दे, ईरेनियुस, आदवेरसेस हेरेसस 4,20,5-7)।

उन्होंने कहा, "अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, ख्रीस्त हमेशा के लिये मरे और जी उठे, वे सबके लिये जी उठे, हालांकि, पुनरुत्थान की शक्ति अर्थात् बुराई की गुलामी से भलाई की स्वतंत्रता तक पार होना, प्रत्येग युग में हासिल किया जाना आवश्यक है, हमारे ठोस अस्तित्व में, हमारे दैनिक जीवन में। आज भी कितने मरुस्थल हैं जिनसे होकर मानव प्राणियों को गुज़रना पड़ता है!

सबसे पहले है हमारे अन्तर में विद्यमान मरुस्थल, जब हममें न तो ईश्वर के प्रति और न ही पड़ोसी के प्रति प्रेम होता है, जब हम इस तथ्य के प्रति सचेत होने में विफल हो जाते हैं कि हम उन सबके रखवाले हैं जिसे सृष्टिकर्त्ता ईश्वर ने हमें दिया है तथा अब भी देना जारी रख रहे हैं। ईश्वर की दया सूखी से सूखी भूमि को भी बागीचा बना देती है, वह सूखी हड्डियों में भी जीवन को बहाल कर सकती है (दे. इज़े. 37:1-14)। अस्तु, यह है वह निमंत्रण जो मैं प्रत्येक को सम्बोधित करता हूँ।"

उन्होंने कहा, "आइये हम ख्रीस्त के पुनरुत्थान की कृपा को ग्रहण करें! ईश्वर की करूणा से हम अपने आप को नवीकृत होने दें, हम येसु के प्रेम के पात्र बनें, उनके प्रेम की शक्ति से हम अपने जीवन को रूपन्तरित होने दें; तथा उनकी करूणा के अस्त्र बनें, ऐसे जलमार्ग बनें जिनके द्वारा प्रभु ईश्वर धरती को सींच सकें, समस्त सृष्टि की रक्षा कर सकें तथा न्याय एवं शांति को पनपने दें।
इस मनोरथ के लिये हम पुनर्जीवित येसु से निवेदन करते हैं जो मृत्यु को जीवन में बदल देते हैं, घृणा को प्रेम में, प्रतिशोध को क्षमा में तथा युद्ध को शांति में परिवर्तित कर देते हैं। जी हाँ, ख्रीस्त हमारी शांति हैं, तथा उनके द्वारा हम सम्पूर्ण विश्व के लिये शांति का आह्वान करते हैं।"

तदोपरान्त सन्त पापा फ्राँसिस सम्पूर्ण विश्व में शांति की मंगलयाचना करते हुए कहाः "मध्य पूर्व के लिये शांति तथा विशेष रूप से, समझौते के रास्ते की खोज हेतु संघर्षरत, इसराएलियों एवं फिलिस्तीनीयों के बीच शांति ताकि वे उस झगड़े के अन्त हेतु स्वेच्छा से तथा साहसपूर्वक वार्ताओं का पुनरारम्भ करें जो दीर्घ काल से जारी है। ईराक में शांति, ताकि हिंसा का हर कृत्य समाप्त हो। सबसे पहले प्रिय सिरिया के लिये शांति, युद्ध से पीड़ित उसकी जनता के लिये तथा उन अनेकानेक शरणार्थियों के लिये जो सहायता एवं सान्तवना की बाट जोह रहे हैं। कितना अधिक रक्त बहाया गया है! इस संकट का राजनैतिक समाधान ढूँढ़ लिये जाने तक और कितनी पीड़ा से पार होना पड़ेगा?

अफ्रीका के लिये शांति, जो अभी भी हिंसक झगड़ों का दृश्य बना हुआ है। माली में, एकता एवं स्थायित्व की स्थापना हो; नाईजिरिया, जहाँ, खेदवश, अनेकानेक निर्दोष लोगों के जीवन को गम्भीर ख़तरों में डालनेवाले आक्रमण जारी हैं तथा जहाँ, बच्चों सहित, भारी संख्या में लोग आतंकवादी दलों द्वारा बन्धक रखे जा रहे हैं। कॉन्गो लोकतांत्रिक गणतंत्र के पूर्व में शांति तथा केन्द्रीय अफ्रीकी गणतंत्र में शांति जहाँ अनेक लोग अपने घरों के परित्याग हेतु बाध्य किये गये हैं तथा भय और आतंक में जीवन यापन कर रहे हैं।

एशिया में शांति, विशेष रूप से, कोरियाई प्रायद्वीप में: मतभेदों को दूर किया जाये तथा नवीकृत पुनर्मिलन की भावना विकसित हो।

सम्पूर्ण विश्व में शांति जो अभी भी सरल लाभ की खोज की लालच द्वारा विभाजित है, उस अहंकार से पीड़ित है जो मानव जीवन एवं परिवार को ख़तरे में डाल रहा है, वह अहंकार जो मानव तस्करी में जारी स्वार्थ के घाव से पीड़ित है तथा इस 21 वीं शताब्दी में दासता का सर्वाधिक घृणित प्रकार है।

मादक पदार्थों की तस्करी से संलग्न हिंसा तथा प्राकृतिक संसाधनों के चिन्ताजनक शोषण से टूट चुके सम्पूर्ण विश्व में शांति! हमारी इस धरती पर शांति! पुनर्जीवित प्रभु येसु प्राकृतिक प्रकोपों के शिकार लोगों को सान्तवना दें तथा हमें सृष्टि के ज़िम्मेदार रखवाले बनायें।

अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, आप सब जो मुझे रोम तथा सम्पूर्ण विश्व से सुन रहे हैं आपको मैं स्तोत्र ग्रन्थ के 117 वें भजन के निमंत्रण से सम्बोधित करता हूँ: "प्रभु का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है। उसकी सत्यप्रतिज्ञता अनन्त काल तक बनी रहती है। इस्राएल का घराना यह कहता जाये उसकी सत्यप्रतिज्ञता अनन्त काल तक बनी रहती है" (भजन 117:1-2)।

इस तरह रोम शहर और विश्व के नाम अपना पास्का सन्देश समाप्त करने के बाद सन्त पापा फ्राँसिस ने सब पर पुनर्जीवित ख्रीस्त की शान्ति और अनुग्रह का आह्वान किया तथा सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।










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