वाटिकन सिटी, शुक्रवार 29 मार्च 2013 (बाईबल): आज गुड फ्राइडे अर्थात पुन्य शुक्रवार
है। मानव जाति को पाप की जंजीर और बुराई की दासता से मुक्त करने के लिए येसु ख्रीस्त
द्वारा अर्पित आत्म बलिदान का स्मृति दिवस। वैसे तो गुड फ्राइडे येसु और उनके चेलों
के लिए ब्लैक फ्राइडे या काला दिन था पर इस विस्मयकारी घटना का दुनिया में जो व्यापक
प्रभाव पड़ा उसके कारण इसे लोग ‘गुड फ्राइडे’ के नाम से जानने लगे। कलीसिया के पूजन
पद्धति पंचाग में गुड फ्राइडे या पुण्य शुक्रवार एक अति महत्वपूर्ण दिवस है। येसु ने
इसी दिन ईश्वर की इच्छा पूरी करते हुए दुनिया को बचाने के लिए स्वेच्छा से अपना बलिदान
कर दिया। इस दिन सम्पूर्ण विश्व के ख्रीस्तानुयायी प्रभु येसु की प्राण पीड़ा, गिरफ्तारी,
दुखभोग, मृत्यु और दफन का विशेष रुप से स्मरण करते हैं। गुड फ्राइडे के दिन गिरजाघरों
में ख्रीस्तयाग अर्पित नहीं किया जाता है। इस दिन की पुजन पद्धति की विशेषताएँ हैः पवित्र
धर्मग्रंथ बाइबल से य़ेसु ख्रीस्त के दुखभोग वृतांत का पाठ, कलीसिया और विश्व के लिए विशेष
प्रार्थनाएँ, पवित्र क्रूस की आराधना तथा अंत में पवित्र परमप्रसाद का वितरण। इस
दिन विश्व भर के ख्रीस्त धर्मानुयायी "क्रूस रास्ता" प्रार्थना के माध्यम से प्रभु येसु
के कष्टों और पीड़ाओं पर मनन चिंतन करते हुए आत्मिक रुप से उसके दुखःभोग में शामिल होते
हैं। पाप और बुराई से मुक्त करनेवाले अनमोल वरदान के लिए ईश्वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त
करते हैं जिसे येसु ख्रीस्त ने कलवारी पर अपने शरीर और रक्त की कीमत देकर मानव जाति के
लिए अर्जित किया।
पाँच ही दिन पहले हमने खजूर इतवार मनाया था। वह गुड फ्राइडे
का एक ऐसा दिन है जो याद दिलाता है कि लोगों ने प्रभु को राजा कहकर पुकारा, उनका जय जयकार
किया और उनके रास्ते पर कपड़े बिछाये, डालिया बिछायीं और दुनिया को बतलाया कि प्रभु येसु
ही दुनिया के राजा हैं। चन्द दिनों के बाद जिन लोगों ने प्रभु का जय-जयकार किया
था वे ही लोग अब ज़ोर-ज़ोर से पुकार कर कह रहे थे- उसे क्रूस दीजिए। उसे क्रूस दीजिए। हम
आपको बतल दें कि यहूदी पराम्परा में किसी को क्रूस पर चढ़ाया जाना किसी अपराधी को सज़ा
देने का सबसे क्रूरतम साधन था। क्रूस की सज़ा देकर व्यक्ति को मार डालना यह दिखलाता है
मानव कितना कठोर हो सकता है। मानव ईश्वर के विरूद्ध विद्रोह में किस सीमा तक जा सकता
है। क्रूस में मानव के पतन की पराकाष्ठा दिखाई पड़ती है, पाप की परिसीमा प्रगट होती है।
वैसे बाईबल के इतिहास में कई अन्य सज़ाओं की चर्चा है जैसे अदन की बारी में वर्जित
फल खाने के ईश्वरीय निर्देश की अवज्ञा के पश्चात आदम- हेवा का निष्कासन, भाई द्वारा भाई
की हत्या आदि सब कुछ क्रूस के परिपेक्ष्य में छोटे दिखाई देते हैं। क्रूस की क्रूरता
मात्र हाथ और पांव में ठोंके गए कीलें, माथे पर पहनाए गए कांटों के ताज, ईश्वर द्वारा
परित्यक्त, पीडा़, प्यास, थकान और मृत्यु में ही नहीं है। पर यह है मानव की अवर्णनीय
कठोरता, क्रूरता, कलुषता, घृणा, नष्ट करने की प्रवृति और ईश्वर की दयालुता के विरुद्ध
जाने का प्रतीक है। क्रूस जहाँ एक ओर मानव की कठोरता का प्रतीक है वहीं दूसरी ओर
येसु ने इसे मानव के प्रति ईश्वर के प्रेम का चिन्ह बना दिया है। क्रूस पर प्रभु येसु
की मृत्यु हमें स्मरण दिलाती है कि प्रभु येसु ने दुनिया से अपार प्रेम किया। यह एक ऐसी
भाषा थी जिसके द्वारा मानो ईश्वर जगत से आँखों में आँखें डालकर कह रहा हो “तुम जो हो
जैसे भी हो मैं तुम से प्रेम करता हूं’’। येसु का इस संसार में आना ईश्वर के प्रेम
का दृश्यमान चिन्ह था, उसका जीवन प्रेम की एक कथा, उसका संदेश प्रेम की कविता, उसका दुःख
प्रेम का प्रमाण, और क्रूस पर उसकी मृत्यु प्रेम की पराकाष्ठा। क्रूस मात्र येसु की
मृत्यु और सज़ा का प्रतीक नहीं, उनके सम्पूर्ण प्रेम का प्रतीक है। क्रूस ईश्वर के उस
पैतृक पहलू को प्रकाशित करता है जिसे हम अनभिज्ञ थे। ईश्वर प्रशासक नहीं पिता हैं,
उन्हें अपने पुत्रों की चिंता है, पुत्र मांगे तो वे देते हैं, ढूंढे तो वे उपलब्ध कराते
हैं, खटखटाए तो वे खोलते हैं। उनकी करूणा की दृष्टि सारी सृष्टि पर बनी रहती है घास के
फूल को वे अद्भुत वैभव के वस्त्रों से सजाते और एक गौरैया के भोजन की व्यवस्था करते,
जब एक गौरैया की मृत्यु होती तो वे प्रेम और करूणा से उस पर दृष्टि डालते, वे विधवा के
छोटे से दान को देखते और उसकी प्रशंसा करते हैं और जो भेड़ खो जाती उसे ढूंढने निकलते
हैं। भटके हुए पापी पुत्र के वापस आने की वे राह देखते हैं और पापिनी पुत्री के अपराध
क्षमा करते हैं, जिसकी संसार आलोचना करता है वे उसके साथ संगति करते हैं, जहां संसार
पत्थरवाह करता वे क्षमा करते हैं। वेश्याओं के लिए स्वर्ग के द्वार खोलते हैं और
पाप पूर्ण नगरों के लिए वे आंसू बहाते हैं, वे कठोर न्याय करने वाले परमेश्वर नहीं, अपार
प्रेम और दया तथा करूणा के स्रोत है। सन् 1973 नवम्बर 15 तारीख को कोलकाता के पास
दुर्गापुर के एक स्कुल में एक भयानक घटना घटी, विद्यार्थियों ने किसी बात को लेकर हड़ताल
की घोषणा की । उपद्रवकारियों ने स्कूल की चल अचल सम्पति को काफी नुकसान पहुँचाया। सभी
अध्यापक और अन्य कर्मचारी भाग गये। लेकिन स्कूल के प्रधानाध्यपक श्री दास गुप्ता ने यह
कह कर कि यह मेरा स्कूल है और इसकी रक्षा करना मेरा कर्त्तव्य है भागने से इन्कार कर
दिया। हिंसाकारियों ने उसे एक कमरे में बंद कर दिया और खिड़की से अंदर पेट्रोल डालकर
आग लगा दी। वे जलकर मर गये। प्यार और ईमानदारी की कीमत। इसी प्रकार उड़ीसा में ऑस्ट्रेलियन
मिशनरी की हत्या होने पर उनकी पत्नी ग्लेडिस स्टेन ने कहा मैं दुःखी हूँ पर क्रोधित नहीं। क्रूस
मसीहियों के लिए मुक्ति का प्रतीक है। वह जो भयावाह और अपमानजनक मृत्यु का प्रतीक था
प्रभु येसु के आत्म बलिदान द्वारा पाप और बुराई की दासता से मुक्त होने का विजय प्रतीक
बन गया है। क्रूस पर दुःख सहकर, प्रभु दुःख तकलीफ सहने का ख्रीस्तीय अर्थ हमें समझाते
हैं। "हमारे अपने एक महान प्रधानयाजक हैं अर्थात ईश्वर के पुत्र ईसा, जो आकाश पार कर
चुके हैं। इसलिए हम अपने विश्वास में दृढ़ रहें। हमारे प्रधान याजक हमारी दुर्बलता में
हम से सहानुभूति रख सकते हैं, क्योंकि पाप के अतिरिक्त अन्य सभी बातों में उनकी परीक्षा
हमारी ही तरह ली गयी है। इसलिए हम भरोसे के साथ अनुग्रह के सिंहासन के पास जायें, जिससे
हमें दया मिले और हम वह कृपा प्राप्त करें, जो हमारी आवश्यकताओं में हमारी सहायता करेगी।"
(इब्रानियों 4:14-16) ख्रीस्तीय दृष्टि से, कष्ट प्रभु के दुःखभोग के सहभागी बनने
का साधन है। इसी कारण अच्छाई सच्चाई और भलाई के लिए कष्ट सहना पुण्यप्रद माना जाता है।
प्रभु ने हमारी मुक्ति के लिए कष्ट उठाया ताकि हमें मुक्ति मिले। प्रभु हमें बतलाना
चाहते हैं कि ईश्वर तक पहुँचने का रास्ता काँटों का रास्ता है। यह आम लोगों के लिए दुःखद
दिखाई पड़े, बाहर से कष्टमय जान पड़े किन्तु परहित के लिए ईश्वर की इच्छा अनुसार कष्ट
उठाने का पुरस्कार आंतरिक शांति और सांत्वना है जिसकी खोज हर मानव करता रहता है। मैं
सोचती हूँ कि आप इस बात के लिए मुझ से सहमत होंगे कि जब हम भले और अच्छे कार्य के लिए
दुःख उठाते हैं तो हम अकेले नहीं हैं भले ही हमें कई बार लगे कि हम अकेले हैं। प्रभु
ने खुद कहा है “थके मांदे और बोझ से दबे हुए लोगो तुम सब मेरे पास आओ, मैं तुम्हें विश्राम
दूँगा।” हममें से कई लोग ‘शॉटकट’ चाहते हैं। कई लोग पढ़ाई करके परीक्षा देने के बजाय
सीधे प्रथम श्रेणी का प्रमाणपत्र पाना चाहते हैं। परिश्रम किये बग़ैर मज़दूरी चाहते हैं।
सिर्फ अपनी खुशी चाहते है। चुनौतियों और कठिनाइयों का सामना करने के बजाय उनसे बचने का
सहज उपाय ढूँढ़ते हैं। यह भूल जाते हैं कि सफलता का रहस्य है ईमानदारी और अनवरत मेहनत।
भूल जाते हैं कि सफल वे ही हो सकते हैं जो दुःख में धीर बने रहते और मन दिल में शांति
की इच्छा लिए परहितमय जीवन जीते हैं। ‘गुड फ्राइडे’ को हम सचमुच ‘गुड फ्राइडे’ या
पुण्य शुक्रवार बना पाये अथवा नहीं? अगर हमने येसु के जीवन पर चिंतन नहीं किया और उसके
क्रूस के रहस्य को समझने का प्रयास न किया तो यह गुड फ्राइडे भी बस आम फ्राइडे की तरह
निकल जायेगा। अगर हम चाहत हैं यह पुण्य शुक्रवार हमारे लिए कुछ दे जाए, तो हमें चाहिए
कि हम इसके संदेश को अपने दिल में उतरने दें। पुण्य शुक्रवार का संदेश है अन्यों
के लिए सदैव समर्पित रहना और अच्छाई एवं भलाई के लिए कष्ट उठाना। सार्वभौमिक कलीसिया
के अल्प समय में ही लोक प्रिय बने संत पापा फ्राँसिस कहते हैं “क्रूस के बिना प्रभु येसु
का अनुसरण नहीं किया जा सकता है। जब हम क्रूस के बिना आगे बढ़ने की चेष्टा करते हैं तथा
क्रूस के बिना ख्रीस्त के प्रचार का प्रयास करते हैं तो हम ख्रीस्त के अनुयायी नहीं हैं
।” ख्रीस्त के अनुयायी बनने का अर्थ है ; सच्चाई, अच्छाई और भलाई के लिए कार्य करना उनके
लिए दुःख उठाना येसु मसीह के संदेश प्रेम, सेवा, सहानुभूति और क्षमा को अपने दैनिक
जीवन में अमल करना तथा स्वार्थ, नफरत, हिंसा, बदले की भावना और सभी प्रकार की कुप्रवृतियों
को न करने की दृढ़ता से हिम्मत करना। अगर हम अपने अच्छाईयों में बढ़ने का प्रयास मात्र
आरम्भ कर दें तो बुरी ताकतें, बुरे भुकाव और बुरी प्रवृति कमज़ोर पड़ जायेंगीं और हमारा
हर फ्राइडे तो गुड या अच्छा होगा ही, हमारा हर दिन कृपाओं से पूर्ण होगा। हम प्रसन्न
होंगे, जग प्रसन्न होगा और तब यह दुनिया एक ऐसा सुखद स्थान बनेगा जहाँ हर कोई शांति पूर्ण
सहयोग और प्रेममय सहअस्तित्व का संदेशवाहक बनेगा, मानव जीवन का अर्थ पूर्ण हो जायेगा
और जिस नेक मनोरथ के लिए येसु ने कलवरी पर अपना बलिदान दिया वह अपनी पराकाष्ठा पर होगी।