वाटिकन सिटी, 26 मार्च सन् 2013: इंग्लैण्ड के मिडिलटन में, मार्ग्रेट क्लीथेरो का
जन्म, एक प्रॉटेस्टेण्ट परिवार में, सन् 1555 ई. में हुआ था। बुद्धि और विवेक से परिपूर्ण
मार्ग्रेट एक आकर्षक व्यक्तित्व वाली महिला थीं। सन् 1571 ई. में उनका विवाह जॉन क्लीथेरो
से करा दिया जो एक चरागाह एवं कसाई थे जिनसे मार्ग्रेट की दो सन्तानें भी हुई। कुछ वर्षों
बाद मार्ग्रेट ने काथलिक कलीसिया का आलिंगन कर लिया।
काथलिक कलीसिया के कार्यों
ने उन्हें इतना अधिक प्रभावित किया था कि वे पुरोहितों का विशेष सम्मान करती थीं। उनके
इसी उत्साह के कारण उन्होंने कई पलायक पुरोहितों को अपने घर में शरण दी जिसके लिये उन्हें
गिरफ्तार कर लिया गया तथा बन्दीगृह में डाल दिया गया। बन्दीगृह में उन्हें नाना प्रकार
प्रताड़ित किया क्योंकि उनके आततायी चाहते थे कि मार्ग्रेट काथलिक विश्वास का परित्याग
कर दे। कड़ी यातनाओं के बावजूद मार्ग्रेट अपने विश्वास में दृढ़ बनी रहीं जिसके लिये
उन्हें प्राण दण्ड की सज़ा दे दी गई। 25 मार्च सन् 1586 ई. को मार्ग्रेट की पीठ पर एक
वज़नदार पत्थर बाँध दिया गया तथा उन्हें ज़मीन में दबाकर उनकी हड्डियाँ तोड़ डाली गई
जिससे 15 मिनटों के भीतर मार्ग्रेट की मृत्यु हो गई।
मार्ग्रेट की मानवता,
उनकी पवित्रता तथा प्रभु ईश्वर में उनके अटूट विश्वास की झलक उनकी एक सहेली को लिखे इस
वाक्य में मिलती है, बन्दीगृह से मार्ग्रेट लिखती हैं: "शरीफ़ों ने मुझसे कहा है कि आगामी
शुक्रवार को मैं मरनेवाली हूँ; और मैं अपने शरीर की कमज़ोरी को महसूस कर रहीं हूँ जो
इस ख़बर को सुनकर परेशान है, लेकिन मेरी आत्मा आनन्दित है। मेरा तुमसे निवेदन है, ईश्वर
के प्रेम के ख़ातिर मेरे लिये प्रार्थना करो तथा सभी शुभचिन्तकों से भी प्रार्थना का
निवेदन करो।" शहीद सन्त मार्ग्रेट क्लीथेरो का पर्व 26 मार्च को मनाया जाता
है।
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