प्रेरक मोतीः स्वीडन की सन्त कैथरीन (1330-1381) (24 मार्च)
वाटिकन सिटी, 24 मार्च सन् 2013: स्वीडन की कैथरीन का जन्म सन् 1330 ई. में तथा निधन
1381 ई. में हो गया था। कैथरीन, काथलिक कलीसिया की विख्यात सन्त ब्रिजिड की सुपुत्री
थीं। कैथरीन एक विवाहिता थी किन्तु उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर आत्मसयंम एवं ब्रह्मचर्य
की शपथ ली थी। सन् 1348 ई. में कैथरीन रोम चली गयी जहाँ उनकी माता ब्रिजिड, अपने पति
की मृत्यु के बाद से सन्यासी जीवन यापन कर रही थीं।
कैथरीन के रोम आने के कुछ
ही समय बाद उनके पति की भी मृत्यु हो गई जिसके बाद से उन्होंने अपना जीवन तीर्थयात्राओं
में व्यतीत करना आरम्भ कर दिया। इन तीर्थयात्राओं में उनकी माता ब्रिजिड ने भी उनका साथ
दिया तथा दूर दूर तक पैदल चलकर दोनों महिलाओं ने कई तीर्थयात्राएँ कीं जिनमें जैरूसालेम
भी शामिल था। जब वे तीर्थयात्राओं पर नहीं होती तब वे अपना समय निर्धनों की सेवा तथा
बच्चों को धर्मशिक्षा प्रदान करने में किया करती थीं।
कैथरीन और ब्रिजिड का तीर्थयात्री
जीवन ख़तरों से खाली नहीं था किन्तु प्रार्थना द्वारा वे इसके लिये सम्बल प्राप्त करती
रहीं। किंवदन्ती है कि तीर्थयात्राओं के दौरान महिलाओं के समक्ष जब जब कोई ख़तरा उत्पन्न
होता था तब तब एक हिरण आकर उन्हें बचा लिया करता था। यही कारण है कि कैथरीन को एक हिरण
के साथ दर्शाया जाता है।
जैरूसालेम की तीर्थयात्रा करने के उपरान्त सन् 1373 ई.
में कैथरीन की माता ब्रिजिड का निधन हो गया। कैथरीन अपनी माँ को पुनः अपनी मातृभूमि स्वीडन
ले गई जहाँ ब्रिजिड द्वारा स्थापित वादसेना के मठ में उन्हें दफ़नाया गया। अपने जीवन
का शेष समय कैथरीन ने इसी मठ में व्यतीत किया तथा इसकी मठाध्यक्षा पद पर सेवा करती रहीं।
24 मार्च सन् 1381 ई. को कैथरीन का निधन हो गया। सन्त ब्रिजिड की तरह ही सन्त कैथरीन
की भक्ति भी सम्पूर्ण स्वीडन में की जाती है। स्वीडन की सन्त कैथरीन का पर्व 24 मार्च
को मनाया जाता है।
चिन्तनः कष्टों एवं चुनौतियों का सामना करते
हुए, संयम और अनुशासन के साथ, जीवन में आगे बढ़ते रहना ही जीवन तीर्थयात्रा को सफल बनाता
है।