संत पेत्रुस के उत्तराधिकारी होने के मिशन का उद्घाटन समारोह
मेरे अति प्रिय भाइयो एवं बहनो,
अभिवादन मैं आज ईश्वर को धन्यवाद देता हूँ
क्योंकि कुँवारी माता मरिया के पति और सार्वभौमिक काथलिक कलीसिया के संरक्षक संत जोसेफ
के पर्वोत्सव के दिन मैं पवित्र मिस्सा के द्वारा रोम के धर्माध्यक्ष और संत पेत्रुस
के उत्तराधिकारी होने का दायित्व आरंभ कर रहा हूँ।
यह एक संयोग है क्योंकि आज
ही काथलिक कलीसिया के सम्मानीय पूर्व परमाध्यक्ष का नाम दिवस है। हम अपनी प्रार्थनाओं
के साथ, सस्नेह और कृतज्ञता से उनके करीब है।
मै, कार्डिनलों, धर्माध्यक्षों पुरोहितों,
डीकनों, धर्मसमाजी भाई-बहनों, लोकधर्मियों और उपस्थित लोगों का अभिवादन करता हूँ। मैं
विभिन्न कलीसियाओं के प्रतिनिधियों, कलीसियाई समुदायों, यहूदी समुदाय के प्रतिनिधियों
और अन्य धर्मों के प्रतिनिधियों को उनकी उपस्थिति के लिये धन्यवाद देता हूँ।
मैं
विशेष रूप से विभिन्न राष्ट्रों एवं सरकारों के प्रतिनिधियों, राष्ट्राध्यक्षों, विभिन्न
राजनयिक कोर और राष्ट्रों के आधिकारिक प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों को धन्यवाद देता हूँ।
संरक्षक होने का मिशन आज के सुसमाचार में हमने पढ़ा कि जोसेफ ने वैसा ही किया
जैसा स्वर्गदूत ने कहा और मेरी को अपनी पत्नी रूप में स्वीकार किया।(संत मत्ती, 1, 24)
ये शब्द मिशन को ओर इंगित करते हैं जिसे ईश्वर ने जोसेफ को दिया:उसे कुस्तोस अर्थात्
संरक्षक बनना है। किसका रक्षक? माता मरिया और येसु का; और यह यह पूरी कलीसिया की सुरक्षा
का मिशन बन गया जैसा की धन्य जोन पौल द्वितीय ने कहा था," जैसा कि संत जोसेफ ने, सस्नेह
माता मरिया की देख-भाल की और सहर्ष येसु के पालन-पोषण की ज़िम्मेदारी संभाली, वैसा ही
वे येसु के रहस्यात्मक देह - कलीसिया की देखभाल और रक्षा करते हैं, और कुँवारी मरिया
इसी का उदाहरण और आदर्श है।" रिदेम्पतोरिस कुस्तोस, 1)
संत जोसेफ ने किस तरह
से संरक्षक की भूमिका निभायी? विवेकशीलता से, नम्रतापूर्वक और मौन रह कर, पूरी वफ़ादारीपूर्वक
और अचूक सावधानी से निभाया, वैसे समय में भी जब वे सबकुछ नहीं समझ पाये।
मरिया
के साथ अपनी मंगनी के समय से लेकर जबत येसु 12 वर्ष की आयु में येरूसालेम के मंदिर में
पाये जाने तक वे उनके साथ हर पल रहे और उन्हें अपना संरक्षण दिया। येसु के पति रूप में
वह माता मरिया के साथ अच्छे और बुरे दोनों पलों में साथ दिया, जनगणना के लिये बेथलेहेम
की राह में, येसु के जन्म के समय चिन्ता और अच्छे पलों में; मिस्र देश के पलायन के समय
तथा मंदिर में येसु को खोने पर व्यग्रता से खोजने की प्रक्रिया में; और बाद में नाज़रेथ
में जहाँ येसु का बालकपन बीता। उन्होंने येसु को बढ़ई का काम सिखाया।
कैसे बने
संरक्षक
कैसे जोसेफ ने मरिया, येसु और कलीसिया के संरक्षक होने की बुलाहट को
पूरा किया? जोसेफ सदा ईश्वर के प्रति सचेत रहा, ईश्वरीय उपस्थिति और चिह्नों के प्रति
खुला रहा और बस अपनी योजना नहीं, पर ईश्वर की योजनाओं को स्वीकार किया।
प्रथम
पाठ में ईश्वर ने दाऊद से इसी कार्य को करने की माँग की। ईश्वर नहीं चाहते हैं कि ईश्वरीय
मंदिर का निर्माण मानव द्वारा हो वे चाहते हैं कि कि मंदिर निर्माण ईशवचन और उसकी योजनाओं
के प्रति वफ़ादार बन करके हो। ईश्वर कलीसिया का निर्माण उन जीवित पत्थरों से करते हैं
जिनमें पवित्र आत्मा की मुहर होती है। जोसेफ ‘संरक्षक’ हैं क्योंकि उन्होंने ईश्वर की
आवाज़ को सुना और उसकी इच्छा को पूरा किया और इसीलिये वे येसु और मरिया की ज़रूरतों के
प्रति अति संवेदनशील रहे। वे सब कुछ बारीकी से देखते रहे, अपने आसपास की वातावरण के प्रति
जागरुक रहे और सदा विवेकपूर्ण निर्णय लिया।
येसु मसीह को सुरक्षित रखना
मित्रो,
हम संत जोसेफ से सिर्फ़ यह नहीं सीखते हैं कि हमें ईश्वरीय बुलाहट का जवाब कैसे तत्परता
और सहर्ष देना है पर यहाँ हम इस बात को भी देखते हैं कि ख्रीस्तीय बुलाहट क्या है अर्थात्
येसु मसीह को कैसे सुरक्षित रखना है? आइये, हम अपने जीवन से येसु की रक्षा करें ताकि
हम दूसरों की भी रक्षा कर सके और इस तरह पूरी सृष्टि की रक्षा करें।
सृष्टि
और मानव परिवार की रक्षा संरक्षक होने का अर्थ सिर्फ़ यह नहीं है कि हम ख्रीस्तीयों
की रक्षा करें, पर उन सबकी रक्षा करें जो मानव से जुड़ा है अर्थात् पूरे मानव परिवार
की। इसका अर्थ यह भी है कि हम सृष्टि की रक्षा करे, दुनिया के सुन्दरता की रक्षा करें
जैसा कि उत्पति ग्रंथ में लिखा है और संत फ्राँसिस असीसी ने हमें दिखलाया।
संरक्षक
होने का अर्थ है ईश्वर द्वारा सृष्ट प्रत्येक जीव का सम्मान करना और उस पर्यावरण की रक्षा
करना जहाँ हम निवास करते हैं। इसका अर्थ है लोगों की रक्षा, प्रत्येक व्यक्ति को अपना
प्यार दिखाना विशेषकरके बच्चों और बुजूर्गों और उन ज़रूरतमंदों को जिन्हें हम प्रायः
अन्त में याद करते हैं। इसका अर्थ यह भी होता है कि हम अपने परिवार में एक-दूसरे की रक्षा
करें: पति-पत्नी एक-दूसरे की रक्षा करें और फिर माता-पिता रूप में अपने बच्चों का ख़्याल
रखें और बच्चे भी अपने माता-पिता का।
ईश्वरीय वरदानों के रक्षक इसका अर्थ
यह है कि हम पूरे विश्वास, सम्मान और नेक दिल से अपना संबंध कायम करें जो एक-दूसरे को
बचाये। यही कहा जा सकता है कि सबकुछ को हमें सौंप दिया गया है ताकि हम इसकी रक्षा करें।
दुनिया की रक्षा का दायित्व हमपर पर डाल दिया गया है। आइये, हमें ईश्वरीय वरदानों के
रक्षक बनें।
जब भी मानव अपनी इस ज़िम्मेदारी को निभाने में असफल हो जाता है,
जब भी वह सृष्टि और अपने भाई-बहनों की रक्षा करने में असफल हो जाते हैं विनाश का मार्ग
खुल जाता है और हमारे ह्रदय कठोर हो जाते हैं। खेद के साथ कहना पड़ता है कि कि इतिहास
के हर युग में ‘हेरोद’ पैदा होते हैं जो मृत्यु का षडयंत्र रचते हैं, विनाश करते और स्त्री
और पुरुष के चेहरे को बिगाड़ देते हैं।
नेताओं से अपील आज मैं उन सब लोगों
से अपील करना चाहता हूँ जिनके ऊपर आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक ज़िम्मेदारियाँ है और
ऐसे लोग जिनका दिल नेक है वे सृष्टि की रक्षा करें, प्रकृति में निहित ईश्वर योजना की
रक्षा करें, एक-दूसरे की रक्षा करें और प्रकृति की रक्षा करें। आज कोई भी विनाश या मृत्यु
को आगे बढ़ने न दे पर इसका रक्षक बने। हम खुद की रक्षा करें। हम इस बात को न भूलें कि
घृणा, ईष्या और घमंड हमारे जीवन को नष्ट करते हैं। रक्षक होने का अर्थ यह भी है हम अपने
दिल की भावनाओं को संयमित करें क्योंकि दिल ही अच्छी और बुरी इच्छाओं की सीट है, इच्छायें
हमें सुदढ़ करती और वे ही हमें नष्ट कर सकती हैं। हमे अच्छे बनने या संवेदनशील बनने से
न डरें।
संवेदनशील बनें यहाँ मैं आप लोगों को एक और बात बताना चाहता हूँ:
देख-भाल करना और रक्षा करना इस बात की माँग करता है कि हम संवेदनशील बनें। सुसमाचार में
हमने सुना संत जोसेफ को एक मजबूत और साहसी व्यक्ति रूप में प्रस्तुत किया गया है, वे
परिश्रमी हैं पर उनका ह्रदय संवेदनशील है जो कमजोर व्यक्तियों का गुण नहीं है पर ऐसे
लोगों का गुण है जो अन्दर से शक्तिशाली हैं और उनमें दूसरों के लिये चिन्ता करने की क्षमता
है, उनमें सहिष्णुता है, दूसरों के प्रति खुले हैं और वे दूसरों को प्यार कर सकते हैं।
हम अच्छाई करने और संवेदनशील बनने से ने डरें।
अधिकार का अर्थ – सेवा आज संत
जोसेफ के पर्व के ही दिन हम रोम के नये धर्माध्यक्ष, पेत्रुस के उत्तराधिकारी के कार्यभार
आरंभ करने का उत्सव भी मना रहे हैं जो कुछ हद तक शक्ति या अधिकार से जुड़ा है। येसु ने
पेत्रुस को कुछ शक्तियाँ दी पर किस तरह की शक्ति थी ये? येसु ने पेत्रुस से प्रेम संबंधी
तीन सवाल किये थे और तीनों सवालों के बाद तीन आज्ञायें दी थीँ जिसका सार था मेरी भेड़ों
को चराओ, मेरे मेमनों को चराओ।
आज हम इस बात को न भूलें की वास्तविक शक्ति सेवा
में है और इसीलिये संत पापा भी जब अपनी शक्ति का उपयोग करता है तो उसे चाहिये कि वह पूर्ण
रूप से सेवा है और यही क्रूस की चरमसीमा है। उसे चाहिये कि वे संत जोसेफ के समान विनीत
भाव से, वफ़ादारी पूर्वक सेवा करे और उसी के समान अपने हाथ फैला कर ईश्वरीय प्रजा की
रक्षा करे, पूरी मानवता को गले लगाये विशेष करके गरीबों को जिसकी चर्चा संत मत्ती ने
अपने सुसमाचार के अंतिमविचार के दृश्य में चर्चा की है। ऐसे लोग हैं- भूखे, प्यासे, परदेशी,
नंगे, बीमार और बंदी। जो प्रेम करते हैं वे ही सही अर्थ में लोगों की रक्षा करते हैं।
आशा के विरुद्ध आशा दूसरे पाठ में प्रेरित संत पौल ने अब्राहम की चर्चा की
जो आशा के विरुद्ध आशा करते है। आज भी दुनिया में अँधेरा है और हमें चाहिये कि हम आशा
के दीपक को देखें और दूसरों के जीवन में आशा का संचार करें।
सृष्टि की रक्षा
के लिये प्रत्येक व्यक्ति एक-दूसरे को स्नेह और कोमलता दे देखे ताकि धुँधले बादल से आशा
की किरण दिखाई दे और लोगों को आशान्वित करे। विश्वासियों और ईसाइयों के लिये जैसे अब्राहम
और संत जोसेफ ईश्वर को अपनी आशा का आधार बनाया था हम भी येसु मसीह को आशा का आधार बनायें।
रोम
के धर्माध्यक्ष का दायित्व है कि वह येसु और मरिया को पूरी सृष्टि को, मानव को और विशेष
कर निर्धनों को बचाने की ज़िम्मेदारी संभाले ताकि आशा चमक उठे। साथ ही हम प्रत्येक जन
को एक ज़िम्मेदारी दी गयी है कि हमें ईश्वरीय प्रेम की रक्षा करें। अनवरत प्रार्थना माता
मरिया संत जोसेफ, संत पीटर और पौल और संत फाँसिस की मध्यस्थता द्वारा मैं प्रार्थना करता
हूँ कि पवित्र आत्मा मुझे कृपा दे ।आप मेरे लिये अनवरत प्रार्थना करते रहें। आमेन।