2013-03-10 11:01:41

कॉनक्लेवः सात शताब्दियों का इतिहास


रोम, 11 मार्च सन् 2013 (एशियान्यूज़): वाटिकन में मंगलवार, 12 मार्च को "कॉनक्लेव" अर्थात् सन्त पेत्रुस के उत्तराधिकारी एवं काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष भावी सन्त पापा के चुनाव हेतु आयोजित कार्डिनलमण्डल की सभाओं का सिलसिला शुरु हो रहा है।
कॉनक्लेव शब्द लैटिन मूल के कुम क्लावे शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है चाभी से बन्द। कॉनक्लेव के नियम लगभग साढ़े सात शताब्दी पूर्व, सन् 1271 ई. में वितेरबो में सम्पन्न कार्डिनलमण्डल की सभा में निर्धारित किये गये थे। कार्डिनलमण्डल की पहली सभा में 20 कार्डिनल शामिल थे जिनमें से दो की चुनाव प्रक्रिया के दौरान मृत्यु हो गई थी। पहले कॉनक्लेव में बहुत समय तक कार्डिनलों में सहमति नहीं बन पाई इसलिये कि कार्डिनलमण्डल के सदस्य फ्राँस तथा जर्मन मूल के कार्डिनलों में विभाजित थे। लगभग तीन वर्ष बाद भी यानि 1006 दिनों बाद भी कार्डिनलों में परमाध्यक्ष की नियुक्ति पर कोई सहमति नहीं बन पाई। तदोपरान्त वितेरबो के लोगों ने विरोध शुरु किया। लोगों ने पहले तो कार्डिनलों को प्रेरितिक प्रासाद में बन्द कर दिया और उसके बाद उनके भोजन में कटौती कर दी और फिर प्रासाद की छत हटा दी ताकि वे शीघ्रातिशीघ्र कोई निर्णय ले सकें। वितेरबो के लोगों की विरोध कार्रवाई के बाद तेबाल्दो विसकोन्ती कलीसिया के परमाध्यक्ष नियुक्त किये गये। उस समय वे पुरोहित भी नहीं थे। तेबाल्दो विसकोन्ती ने ही परमाध्यक्षीय नियुक्ति के बाद सन्त पापा ग्रेगोरी दसवें का नाम धारण किया।
बन्द दरवाज़ों के भीतर सम्पन्न यह पहली कॉनक्लेव यानि कलीसियाई परमाध्यक्ष के चुनाव हेतु आयोजित होनेवाली कार्डिनलमण्डलीय सभा थी। हालांकि, सन् 1059 ई. से ही, प्राचीन परम्परा को भंग करते हुए, कार्डिनल एवं धर्माध्यक्ष काथलिक कलीसिया के परमधर्मगुरु की नियुक्ति करते रहे थे। प्राचीन परम्परा के अनुसार रोम धर्मप्रान्त का याजकवर्ग एवं इस शहर की प्रजा काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष की नियुक्ति करती थी।
श्रोताओ, निःसन्देह, कालान्तर में कॉनक्लेव के लिये लागू नियम इतिहास का परिणाम है। वाटिकन संग्रहालय स्थित सिस्टीन प्रार्थनालय में सम्पन्न पहली कॉनक्लेव सन् 1492 ई. में पूरी हुई थी जिससे पूर्व उन कार्डिनलों को बाहर निकाल दिया गया जिनपर अपने मत बेचने का सन्देह था। इस कॉनक्लेव के बाद स्पेन के रोदरीगो बोरजिया सन्त पापा एलेक्ज़ेनडर चतुर्थ के नाम से नियुक्त किये गये थे। इसके तुरन्त बाद, यह अफ़वाहें उड़ी थीं कि सन्त पापा एलेक्ज़ेनडर की नियुक्ति में ड्यूक ऑफ मिलान लूडविग मोरो का हाथ था। अस्तु, सन्त पापा एलेक्ज़ेनडर के उत्तराधिकारी सन्त पापा जूलयस द्वितीय ने अपनी नियुक्ति के तुरन्त बाद, सन् 1505 ई. में एक आदेशपत्र जारी कर परमाध्यक्षीय चुनाव के किसी भी ऐसे सत्र को शून्य घोषित कर दिया जिसमें धोखाधड़ी की थोड़ी सी भी आशंका हो सकती थी।
सन् 1846 ई. में सन्त पापा ग्रेगोरी 14 वें के निधन के बाद इटली तथा आसपास की राजनैतिक स्थिति डाँवाडोल थी। 62 कार्डिनल थे जिनमें से केवल 46 नये सन्त पापा के चुनाव हेतु पहुँचे। उनमें मतभेद होने के बावजूद कॉनक्लेव के दूसरे दिन ही कार्डिनल मास्ताई फेर्रेत्ती सन्त पापा नियुक्त कर दिये गये। इन्हीं ने सन्त पापा पियुस नवम् नाम धारण किया तथा 32 वर्ष तक सन्त पापा रहे। सन्त पापा पियुस नवम् का परमाध्यक्षीय काल कलीसिया के इतिहास में सबसे लम्बा परमाध्यक्षीय काल रहा है।
सन् 1904 ई. में सन्त पापा पियुस दसवें ने, विश्व व्यापी काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष की चुनाव प्रक्रिया के समक्ष प्रस्तुत, किसी भी प्रकार की चुनौती को हटाते हुए "वाकान्ते सेदे अपोसतोलीका" प्रेरितिक संविधान प्रकाशित किया तथा सन् 1505 ई. में सन्त पापा जूलयस द्वितीय द्वारा लगाये प्रतिबन्ध को हटा दिया।
सन् 1996 ई. में धन्य सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय ने कलीसिया के परमाध्यक्ष की खाली पीठ "सेदे वाकान्ते" से लेकर परमाध्यक्ष के चुनाव तक की अवधि के लिये "यूनीवरसी दोमेनीची ग्रेजिस" प्रेरितिक संविधान जारी किया। इसमें सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय ने भी सन् 1505 ई. को लगाये प्रतिबन्ध को रद्द किये जाने की पुष्टि की।
कॉन्क्लेव में इतिहास के अन्तराल में आये परिवर्तनों के अलावा, सन् 1800 ई. में नेपोलियन द्वारा निष्कासन में प्रेषित सन्त पापा पियुस चौथे के निधन पर, अपवादिक परिस्थितियों में, कॉनक्लेव के नियमों में परिवर्तन किया गया था। फिर सन् 1903 ई. में भी सन्त पापा लियो 13 वें के बाद वाटिकन के राज्य सचिव कार्डिनल रामपोल्ला तिनदारो का नाम परमाध्यक्ष के लिये चुना गया था जिसे ऑस्ट्रिया के सम्राट ने निषिद्ध कर दिया था। इनके स्थान पर सन्त पापा पियुस दसवें परमाध्यक्ष नियुक्त किये गये थे जिन्होंने अपनी नियुक्ति के तुरन्त बाद सब प्रकार के निषेधों को रद्द कर दिया था। यही कारण है कि कोई भी व्यक्ति किसी कार्डिनल का नाम प्रस्तावित या खारिज नहीं कर सकता। काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्षीय चुनाव में गोपनीयता के सिद्धान्त का कठोरता से पालन किया जाता है।
सन् 1970 ई. में सन्त पापा पौल षष्टम ने परमाध्यक्षीय चुनाव हेतु कार्डिनलमण्डल की सभा में मतदान के लिये 120 कार्डिनलों की संख्या तथा अस्सी वर्ष की आयु से कम उम्र सुनिश्चित्त की थी।
धन्य सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय ने यह नियम बनाया था कि परमाध्यक्षीय चुनाव प्रक्रिया के दौरान कार्डिनलमण्डल के सदस्य वाटिकन स्थित सन्त मार्था आवास में निवास करेंगे तथा मतदान के लिये सिस्टीन प्रार्थनालय में एकत्र होंगे।
परमाध्यक्षीय चुनाव प्रक्रिया के दौरान मतदाता कार्डिनलों से बाहर का कोई भी व्यक्ति मिल नहीं सकता है। 22 फरवरी सन् 2013 को ससम्मान सेवामुक्त सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने एक मोतू प्रोप्रियो यानि स्वप्रेरित पत्र जारी कर यूनीवरसी दोमेनीची ग्रेजिस में प्रस्तावित नियमों की पुष्टि के साथ साथ सन्त पापा के पदत्याग एवं भावी सन्त पापा के चुनाव हेतु कॉनक्लेव की शुरुआत की पुष्टि की। उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि सभी मतदाता कार्डिनल रोम पहुँच चुके हों तो कॉनक्लेव शुरु की जा सकती है।
मतदाता कार्डिनल अपने साथ किसी भी प्रकार के संचार उपकरण जैसे टेलीफोन, टेलेविज़न, आई पेड आदि नहीं रख सकते। इस बार, मंगलवार 12 मार्च को, कार्डिनलमण्डलीय सभा आरम्भ हो रही है। 12 मार्च का पहला चरम "मिस्सा प्रो इलीजेन्दो पापा" अर्थात् सन्त पापा के चुनाव हेतु ख्रीस्तयाग अर्पित किया जायेगा तथा दोपहर के सत्र में पहली मतदान प्रक्रिया आरम्भ होगी। मतदान के लिये पेपर बैलेट बाँटे जायेंगे जिनके ऊपरी भाग में लिखा होगा "इलीजो इनु सुमुम्म पोन्तीफिचेम" निचले हिस्से में कार्डिनलों को अपनी पसन्द का नाम लिखना होगा। सन्त पापा के चुनाव के लिये दो तिहाई मतों की ज़रूरत है जब तक इस संख्या पर नहीं पहुँचा जायेगा तब तक मतदान प्रक्रिया दुहराई जाती रहेगी।
कॉनक्लेव के दिनों में सिस्टीन प्रार्थनालय की चिमनी पर विश्व की दृष्टि लगी रहती है इसलिये कि इससे निकलनेवाला धुँआ ही बताता है कि सन्त पापा की नियुक्ति हो चुकी या नहीं। काले धुएँ का अर्थ है नहीं और सफेद धुँआ, सन्त पापा के चुन लिये जाने का, संकेत देता है।
सन्त पापा की नियुक्ति हो जाने पर नियुक्त कार्डिनल से प्रश्न किया जाता है कि "क्या वे काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष पद को स्वीकार करते हैं?" यदि उत्तर हाँ हुआ तो दूसरा प्रश्न होता है "आप कौनसा नाम धारण करना पसन्द करेंगे? नवनियुक्त सन्त पापा के उत्तर के अनुरूप एक दस्तावेज़ तैयार किया जाता है। सन्त पापा नया श्वेत परिधान धारण करते हैं तथा कुछ देर अकेले मनन चिन्तन करते हैं। अन्ततः, लोगों के समक्ष सन्त पेत्रुस महागिरजाघर की मुख्य बालकनी से घोषणा की जाती हैः "नुनसियो वोबिस गाओदियुम मान्युमः हाबेमुस पापाम।"








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