2013-03-09 10:13:07

प्रेरक मोतीः ईश्वर के सन्त जॉन (1495-1550)
(08 मार्च)


वाटिकन सिटी, 08 मार्च सन् 2013:

पुर्तगाल के मोन्तेमोर-ओ-नोवो में, 08 मार्च सन् 1495 ई. को जॉन दुआरते का जन्म हुआ था जो बाद में जाकर ईश्वर के सन्त जॉन कहलाये। आध्यात्मिक तड़प जॉन दुआरते को स्पेन लाई जहाँ अवीला के सन्त जॉन का एक प्रवचन सुनने के बाद उन्होंने ईश्वर की सेवा में जीवन अर्पित करने का मन बना लिया किन्तु कुछ ही समय बाद अवसाद एवं मानसिक विकारों से ग्रस्त हो गये। यहाँ तक कि लोगों ने उन्हें पागल समझकर पागलखाने में छोड़ दिया। पागलखाने में अवीला के सन्त जॉन से मुलाकात के बाद जॉन दुआरते चमत्कारी ढंग से स्वस्थ हो गये जिसके बाद उन्होंने निर्धनों के उत्थान का कार्य आरम्भ कर दिया।

अविला के सन्त जॉन से मार्गदर्शन और प्रेरणा पाकर उन्होंने अपना शेष जीवन, रोगियों एवं निर्धनों के प्रति, पूर्णतः समर्पित करने का संकल्प कर लिया। स्पेन के ग्रानाडा में उन्होंने अपना नेक मिशन शुरु किया तथा जी जान से रोगियों एवं ज़रूरतमन्दों की सेवा में लग गये। इस मिशन से कई युवा जुड़ गये जिनके लिये जॉन दुआरते ने अस्पताल कार्यकर्त्ताओं के धर्मसमाज की स्थापना की जो आज ईश्वर के सन्त जॉन के अस्पताली धर्मबन्धु नाम से जाने जाते हैं। अपने मिशन को जारी रखने के लिये जॉन दुआरते ने अनेक अस्पताल और चिकित्सालय खोले तथा शरीर के साथ साथ आत्मा की चंगाई के लिये अपने तथा अपने साथियों के धर्मसमाजी जीवन को परिष्कृत किया।

08 मार्च सन् 1550 ई. को उनके 55 वें जन्मदिवस पर जॉन दुआरते का निधन हो गया। 16 अक्टूबर, सन् 1690 ई. को सन्त पापा एलेक्ज़ेनडर आठवें द्वारा आप सन्त घोषित किये गये थे। इसी समय से आपका नाम सेन्ट जॉन ऑफ गॉड या ईश्वर के सन्त जॉन पड़ा।

ईश्वर के सन्त जॉन अस्पतालों, रोगियों, चिकित्सा कर्मियों, दमकल कर्मियों, मद्यसारिकों तथा पुस्तकविक्रेताओं के संरक्षक सन्त हैं। 08 मार्च को ईश्वर के सन्त जॉन का पर्व मनाया जाता है।



चिन्तनः रोगियों एवं मरणासन्न लोग आपकी ओर दृष्टि लगायें हुए हैं क्या आप उनकी मदद हेतु कुछ करने को तैयार हैं।








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