प्रेरक मोतीः क्रूस के सन्त जॉन जोसफ (1654-1739 ई.) (05 मार्च)
वाटिकन सिटी, 05 मार्च सन् 2013:
क्रूस के सन्त जॉन जोसफ का जन्म, 15 अगस्त सन्
1654 ई. को, इटली के नेपल्स नगर के निकटवर्ती इसकिया द्वीप में हुआ था। बाल्यकाल से ही
जॉन जोसफ सदगुणों से परिपूर्ण थे तथा 16 वर्ष की आयु में वे सन्त फ्राँसिस को समर्पित,
आल्कानत्रा के सन्त पेत्रुस द्वारा उद्धरित मठ में भर्ती हो गये थे। मठ में जॉन जोसफ
ने सदाचार का ऐसा उदाहरण दिया कि तीन वर्ष बाद ही उन्हें इटली के पीडमोन्ट या पियमोन्ते
प्रान्त में एक मठ की स्थापना के लिये भेज दिया गया। जॉन जोसफ धर्मबन्धु रहते हुए मठ
की सेवा करना चाहते थे किन्तु मठाध्यक्ष ने उन्हें पुरोहिताई के लिये तैयार किया। आज्ञा
का पालन करते हुए वे पुरोहित अभिषिक्त हो गये। मठाध्यक्ष के आदेश पर उन्होंने इटली के
विभिन्न नगरों में मठों की स्थापना की तथा इनकी जीवन शैली के लिये नियमावली प्रस्तावित
की जिसे परमधर्मपीठ का अनुमोदन प्राप्त हुआ। कुछ समय नवसिखियों को प्रशिक्षण देने के
उपरान्त जॉन जोसफ नेपल्स में धर्मसमाज के प्रान्ताध्यक्ष नियुक्त कर दिये गये।
आल्कान्त्रा
के सन्त पेत्रुस द्वारा प्रस्तावित सुधारों को उन्होंने इटली के सभी फ्राँसिसकन मठों
में लागू करने का भरसक प्रयास किया तथा ख़ुद सादगी से व्यतीत जीवन द्वारा विनम्रता एवं
धार्मिक अनुशासन के परम सदगुणों की अनोखी मिसाल, तत्कालीन मठवासियों के समक्ष, रखी। जॉन
जोसफ को भविष्यवाणी एवं चमत्कार का भी वरदान प्राप्त था। अपनी प्रार्थनाओं द्वारा उन्होंने
कई असाध्य रोगियों को चंगाई प्रदान की तथा कई लोगों के मनपरिवर्तन का कारण बने। ईश्वर
की महिमा के लिये जॉन जोसफ ने अपने जीवन को पूर्णतः समर्पित रखा और अपने इस प्रण के निर्वाह
के लिये प्रतिपल प्रयास करते रहे। रक्ताघात से ग्रस्त होने के उपरान्त 05 मार्च सन् 1734
ई. को, नेपल्स स्थित फ्राँसिसकन धर्मसमाजी मठ में उनका निधन हो गया। सन्त जॉन जोसफ का
पर्व 05 मार्च को मनाया जाता है।
चिन्तनः सतत् प्रार्थना प्रभु तक पहुँचने
का मार्ग है, इसकी खोज में हम लगे रहें।