वाटिकन सिटी, 04 मार्च सन् 2013 (सेदोक): श्रोताओ, 28 फरवरी को सन्त पापा बेनेडिक्ट 16
वें ने सार्वभौमिक काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्षीय पद का त्याग कर दिया था इसलिये रविवार
03 मार्च को रोम स्थित सन्त पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में तीर्थयात्री और पर्यटक
तो जमा थे किन्तु कलीसिया के परमाध्यक्ष की अध्यक्षता में देवदूत प्रार्थना का पाठ तथा
परमाध्यक्ष का सन्देश नहीं हुआ। मध्यान्ह बारह बजे सन्त पेत्रुस गिरजाघर के घण्टे बजे,
भक्त समुदाय ने ऊपर की ओर दृष्टि लगाई किन्तु परमधर्मपीठीय प्रेरितिक प्रासाद का वह झरोखा
बन्द ही रहा जहाँ से सन्त पापा देवदूत प्रार्थना के अवसर पर श्रद्धालुओं को दर्शन देकर
सम्बोधित किया करते थे। पत्रकारों से बातचीत में कुछेक तीर्थयात्रियों ने अपनी प्रतिक्रियाएँ
देते हुए कहा कि वाटिकन के प्रेरितिक प्रासाद के झरोखे से, रविवार को, सन्त पापा का दर्शन
नहीं मिलना एक दुखद अनुभव था। उनका कहना था कि उन्हें बहुत खाली खाली महसूस हुआ। सभी
की यही प्रार्थना थी कि प्रभु ईश्वर कार्डिनलों को प्रेरणा दें ताकि वे शीघ्रातिशीघ्र
विश्वव्यापी काथलिक कलीसिया के एक अरब दो करोड़ लोगों के मार्गदर्शन के लिये नये सन्त
पापा का चुनाव कर सकें। श्रोताओ, 19 अप्रैल सन् 2005 को, सन्त पापा बेनेडिक्ट 16
वें, सार्वभौमिक काथलिक कलीसिया के 265 वें, सन्त पापा नियुक्त किये गये थे। 28 फरवरी,
सन् 2013 को उन्होंने अपना परमाध्यक्षीय पद त्याग दिया। अपने पद त्याग से रोम शहर के
परिसर स्थित कास्टेल गोन्दोल्फो के प्रेरितिक प्रासाद के झरोखे से उन्होंने बाहर एकत्र
हज़ारों श्रद्धालुओं को दर्शन दिये थे तथा अन्तिम बार अपने लघु सार्वजनिक प्रभाषण में
कहा था कि वे तो एक साधारण तीर्थयात्री थे जो इस धरती पर अपने जीवन की तीर्थयात्रा के
अन्तिम पड़ाव पर अग्रसर थे। सुनें सन्त पापा की आवाज़ः "मैं केवल एक साधारण तीर्थयात्री
हूँ जो इस धरती पर अपनी तीर्थयात्रा का अन्तिम पड़ाव शुरु कर रहा है। परन्तु मैं अब भी
अपने सारे हृदय से, सारे प्रेम से, अपनी प्रार्थनाओं एवं अपने चिन्तनों द्वारा जनकल्याण
और कलीसिया के कल्याण तथा मानवजाति के कल्याण के लिये काम करना चाहता हूँ। इस उद्यम
में आपकी सहानुभूति मुझे समर्थन देती है। कलीसिया और विश्व की भलाई के लिये हम सब एकसाथ
मिलकर आगे बढ़ते रहें। धन्यवाद।" विगत रविवार, 24 फरवरी को ताबेर पर्वत पर प्रभु येसु
के रूपान्तरण सम्बन्धी सुसमाचारी पाठ पर चिन्तन करते हुए सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें
ने प्रार्थना की श्रेष्ठता पर बल दिया था तथा कहा था कि "चालीसाकाल के दौरान हम, व्यक्तिगत
एवं सामूहिक दोनों प्रार्थनाओं को उचित समय दे पाते हैं, यह हमारे आध्यात्मिक जीवन में
प्राण फूँकने का काम करती है। इसके अलावा, प्रार्थना करने का अर्थ, स्वतः को, विश्व एवं
उसके विरोधाभासों से, अलग कर लेना कदापि नहीं है जैसा कि पेत्रुस ने ताबोर पर करना चाहा
था। इसके विपरीत, प्रार्थना हमें वापस तीर्थयात्रा यानि कार्य तक ले जाती है।" चालीसाकाल
के लिये प्रकाशित अपने सन्देश के शब्दों को उद्धृत कर उन्होंने कहा था कि, "ख्रीस्तीय
अस्तित्व ईश्वर के संग साक्षात्कार हेतु पर्वत पर अनवरत चढ़ते रहना है, और फिर उससे प्राप्त
होनेवाले प्रेम एवं शक्ति को वापस लाना है, ताकि ईश्वर के उसी प्रेम से अपने भाइयों एवं
बहनों की सेवा कर सकें" (अंक 3)। प्रभु येसु के पर्वत पर चढ़ने और प्रार्थना करने
की क्रिया को ख़ुद अपने जीवन पर लागू करते हुए ससम्मान सेवामुक्त सन्त पापा बेनेडिक्ट
16 वें ने कहा थाः "प्रिय भाइयो और बहनो, मेरे जीवन के इस क्षण में, ईश्वर का यह शब्द,
विशेष रूप से, मेरे प्रति सम्बोधित प्रतीत होता है। प्रभु मुझे "पर्वत पर आरोहित होने
के लिये" बुला रहे हैं ताकि मैं प्रार्थना और मनन चिन्तन के प्रति और अधिक समर्पित रह
सकूँ। परन्तु इसका अर्थ कलीसिया का परित्याग करना नहीं है, इसके विपरीत, यदि ईश्वर मुझसे
यह मांग कर रहे हैं तो वह इसीलिये है ताकि मैं कलीसिया की सेवा उसी समर्पण और उसी प्रेम
के साथ कर सकूँ जैसा कि अब तक करने का मैं प्रयास करता रहा हूँ, किन्तु अब, मेरी उम्र
एवं मेरी शक्ति के अनुकूल।" ससम्मान सेवामुक्त सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें लगभग
600 वर्षों के बाद पदत्यागने वाले पहले सन्त पापा हैं। अमरीका के स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय
में धर्म एवं ईशशास्त्र के प्राध्यापक थॉमस शीहेन का कहना है कि सन्त पापा बेनेडिक्ट
16 वें केवल अपने आधिकारिक परमाध्यक्षीय काल के लिये ही नहीं अपितु उससे पूर्व कलीसिया
को दिये योगदान के लिये भी विख्यात हो गये हैं। स्मरण रहे कि सन् 1981 से बेनेडिक्ट 16
वें परमधर्मपीठीय विश्वास एवं धर्मसिद्धान्त परिषद के अध्यक्ष थे। प्राध्यापक शीहेन का
यह भी मानना है कि 600 वर्षों के अन्तरराल के बाद परमाध्यक्ष का पदत्याग कर बेनेडिक्ट
16 वें ने सदा के लिये इतिहास में अपनी जगह बना ली है तथा काथलिक कलीसिया के एक युगान्तकारी
और नये युग का शुभारम्भ कर दिया है। अपने विश्लेषण में शीहेन लिखते हैः "बेनेडिक्ट 16
वें ने भावी सन्त पापाओं के लिये एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत किया हैः जब व्यक्ति की शारीरिक
शक्ति क्षीण हो जाये तथा वह प्रभावशाली ढंग से शासन न कर सके तब ससम्मान पदत्याग ही उचित
है।" सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें के आठ वर्षीय परमाध्यक्षीय काल को काथलिक कलीसिया
के आधुनिक इतिहास का सबसे कठिन काल भी कहा जा सकता है जिसमें सन्त पापा को कई काली रातें
गुज़ारनी पड़ीं। रोमी कार्यालय के वरिष्ठ धर्माधिकारियों में सत्ता की होड़ ने उन्हें
दुखी किया। काथलिक पुरोहितों द्वारा अतीत में किये दुराचारों का उत्तर देने की महान ज़िम्मेदारी
उनके सिर पर आ पड़ी। विवेक एवं बुद्धिमत्ता के साथ बेनेडिक्ट 16 वें ने इनका जवाब दिया।
उन्होंने स्पष्ट कहा कि अतीत की करतूतों की ज़िम्मेदारी वहन करना काथलिक कलीसिया का कर्त्तव्य
है। यौन दुराचार में संलग्न पुरोहितों को उन्होंने फटकार बताई तथा अनुचित व्यवहार करनेवाले
पुरोहितों को बाहर का रास्ता दिखाने हेतु कलीसियाई धर्माधिकारियों को आदेश दिया। कलीसिया
पर लगाये गये आरोपों एवं लांछनों के बीच, बेनेडिक्ट 16 वें काथलिक विश्वास के मूलभूत
तत्वों की सदैव रखवाली करते रहे। विरोधों के बावजूद उन्होंने समलिंगकाम, महिलाओं के पुरोहिताभिषेक,
गर्भपात, अप्राकृतिक संतति निग्रह आदि के साथ कभी भी समझौता नहीं किया। यूरोपीय समाज
में प्रवेश करते उपभोक्तावाद एवं धर्म के प्रति उदासीनता की पृष्ठभूमि में उन्होंने यूरोप
को उसकी ख्रीस्तीय जड़ों का स्मरण दिलाया। विश्व में पाँव पसारते नैतिक ह्रास के परिणामस्वरूप
मूलभूत ख्रीस्तीय मूल्यों की सुरक्षा उनके परमाध्यक्षीय काल का केन्द्रभूत विषय बन गया।
ईश शास्त्री थॉमस शीहेन लिखते हैं कि बेनेडिक्ट 16 वें सन्त अगस्टीन के धर्मतत्वविज्ञान
से अत्यधिक प्रभावित थे। लिखते हैं: "ईश्वर के नगर एवं मनुष्य के नगर सम्बन्धी सन्त अगस्टीन
की द्विविधता ने बेनेडिक्ट 16 वें को बहुत अधिक प्रभावित किया था इसीलिये ईश्वर का विरोध
करनेवाली "सापेक्षवाद की संस्कृति" का बहिष्कार ऐसा मंत्र था जिसे वे बारम्बार दुहराते
रहे।" बाहर से कठोर एवं भावशून्य प्रतीत होनेवाले सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें
हृदय से दयालु, विनम्र एवं मृदुल भाषी थे। अपने सन्देशों, विश्व पत्रों एवं नाज़रेथ के
येसु जैसी कृतियों द्वारा उन्होंने सदैव ख्रीस्तीय दया का मर्म समझाने का प्रयास किया।
मानवाधिकार, पर्यावरण की सुरक्षा, निर्धनता एवं अन्याय के विरुद्ध अपनी आवाज़ बुलन्द
करते रहे। ख्रीस्त के अनुयायियों के बीच पूर्ण एकता का उन्होंने आह्वान किया तथा विभिन्न
धर्मों के बीच मैत्री, मेलमिलाप, न्याय एवं शांति का स्थापना हेतु वार्ताओं को प्रोत्साहित
करते रहे। 19 अप्रैल सन् 2005 से 28 फरवरी सन् 2013 तक विवेक एवं सूझबूझ के साथ विश्वव्यापी
काथलिक कलीसिया की बागडोर सम्भालने वाले सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने काथलिक कलीसिया
एवं सम्पूर्ण विश्व के लिये मानवीय मूल्यों से परिपूर्ण समृद्ध एवं अतुल्य धरोहर छोड़ी
है जो भविष्य के लिये मार्गदर्शन का स्रोत बनी रहेगी।