निर्गमन ग्रंथ 3, 1-8;13-15 कुरिन्थियों के नाम पत्र संत लूकस 13, 1-9
जस्टिन
तिर्की,ये.स.
मरिया गोरेत्ती और अलेकजेन्डर मित्रो, आज मैं आप लोगों को एक
युवती और एक युवक की कहानी बताता हूँ। युवती का नाम था मरिया गोरेत्ती और लड़के का नाम
था अलेकजेन्डर। गोरेत्ती रोम के निकट नेतुनो नामक शहर में अपने माता-पिता के साथ रहा
करती थी। गोरेत्ती बहुत सुन्दर और सौम्य थी। उसके परिवार में माता-पिता के अलावा और 5
भाई बहनें थी। जब वह नौ साल की थी उसी समय उसके पिता की मृत्यु हो गयी थी। इसीलिये मां
के अलावा बच्चों पर भी परिवार चलाने का भार आ गया था। जब उसकी माँ और उसके भाई खेतों
में कार्य किया करते थे तो वह घर ही में रहती सबों के लिये भोजन तैयार करती और घर की
सफाई किया करती थी। अलेकजेन्डर गोरेत्ती के घर के पड़ोस ही में रहा करता था। एक दिन जब
गोरेती अकेली थी अलेकजेन्डर उसके घर आया और चाकू दिखा कर डराने लगा। वह गोरेती से कहने
लगा कि उसे वही करना होगा जो वह कहेगा।गोरेत्ती ने कहा कि ऐसा अच्छा नहीं है ।तब अलेक्सान्दर
ने कहा कि वह उसे जान से मार डालेगा। मरिया गोरेत्ती ने कहा कि उसे जीवन से ज़्यादा
पवित्रता प्यारी है। तब अलेकजेन्डर ने उस पर चाकू से वार करना शुरु किया। अलेकजेन्डर
ने मरिया गोरेती पर चाकू से ग्यारह बार वार किये। मरिया गोरेती भागने का प्रयास की पर
घर से निकल न सकी और वहीं पर गिर पड़ी। शोर सुन कर लोग वहाँ आये तो अलेकजेन्डर वहाँ से
भाग गया था। मरिया गोरेती को अस्पताल पहुँचाया गया । वह करीब 20 घंटों तक जीवन और मृत्यु
के बीच संघर्ष करती रही। मरिया ने कहा कि वह अलेकजेन्डर को क्षमा देती है और चाहती है
कि उसे भी स्वर्गीय सुख की प्राप्ति हो। और माता मरिया की एक तस्वीर को देखते-देखते उसने
अंतिम साँस लिया। अलेकजेन्डर को गिरफ्तार गिया गया और उसे आजीवन कारावास की सजा मिली।वह
जेल में बहुत पश्चात्ताप किया। जब वह जेल से वापस आया तो वह एक बदला हुआ इंसान था। वह
जब घर आया तो उसने गोरेती की माता से माफी माँगा। मरिया की माँ ने भी उसे क्षमा दी और
अलेकजेन्डर ने गोरेत्ती के माता और परिवार के सदस्यों की बहुत सहायता की। बाद में वह
गोरेत्ती को ‘मेरी छोटी संत’ कह कर याद करता था।बाद में अलेकजेन्डर ने भी कपुचिन धर्मसमाज
में प्रवेश किया और वहीं ईश्वर और लोगों की सेवा करते-करते उसकी मृत्यु हुई।
मित्रो,
रविवारीय आराधना विधि चिन्तन कार्यक्रम के अन्तर्गत पूजन विधि पंचांग के चालीसे के तीसरे
रविवार के लिये प्रस्तावित सुसमाचार के आधार पर हम मनन-चिन्तन कर रहे हैं। आज प्रभु हमें
बताना चाहते हैं कि प्रभु के घर वापस आने से ही हमारी मुक्ति होगी। प्रभु चाहते हैं कि
पश्चात्ताप करें और एक नया जीवन जीयें। प्रभु हमें बताना चाहते हैं कि हमने जो भी गलतियाँ
क्यों न कीं हों पर अगर हम मन-दिल से पछतावा करते हैं तो हमें अवश्य ही ईश्वर का दरवाज़ा
खुला मिलेगा। आइये हम संत लूकस रचित सुसमाचार के 13वें अध्याय के 1 से 9 पदों को सुनें।
संत लूकस 13,1-9 1) उस समय कुछ लोग ईसा को उन गलीलियों के विषय में बताने
आये, जिनका रक्त पिलातुस ने उनके बलि-पशुओं के रक्त में मिला दिया था। 2) ईसा ने
उन कहा, ''क्या तुम समझते हो कि ये गलीली अन्य सब गलीलियों से अधिक पापी थे, क्योंकि
उन पर ही ऐसी विपत्ति पड़ी? 3) मैं तुम से कहता हूँ, ऐसा नहीं है; लेकिन यदि तुम
पश्चात्ताप नहीं करोगे, तो सब-के-सब उसी तरह नष्ट हो जाओगे। 4) अथवा क्या तुम समझते
हो कि सिलोआम की मीनार के गिरने से जो अठारह व्यक्ति दब कर’ मर गये, वे येरुसालेम के
सब निवासियों से अधिक अपराधी थे? 5) मैं तुम से कहता हूँ, ऐसा नहीं है; लेकिन यदि
तुम पश्चात्ताप नहीं करोगे, तो सब-के-सब उसी तरह नष्ट हो जाओगे।'' 6) तब ईसा ने
यह दृष्टान्त सुनाया, ''किसी मनुष्य की दाखबारी में एक अंजीर का पेड़ था। वह उस में फल
खोजने आया, परन्तु उसे एक भी नहीं मिला। 7) तब उसने दाखबारी के माली से कहा, 'देखो,
मैं तीन वर्षों से अंजीर के इस पेड़ में फल खोजने आता हूँ, किन्तु मुझे एक भी नहीं मिलता।
इसे काट डालो। यह भूमि को क्यों छेंके हुए हैं?' 8) परन्तु माली ने उत्तर दिया,
'मालिक! इस वर्ष भी इसे रहने दीजिए। मैं इसके चारों ओर खोद कर खाद दूँगा। 9) यदि
यह अगले वर्ष फल दे, तो अच्छा, नहीं तो इसे काट डालिएगा'।''
प्रभु की ओर
लौटना मित्रो, मेरा पूरा विश्वास है कि आपने प्रभु के दिव्य वचन को ध्यान से सुना
है। प्रभु के वचन को सुनने के लिये समय निकाल पाने से आपने अपने को तथा आपके परिवार
के सब सदस्यों को प्रभु की कृपा का सहभागी बनाया है। मित्रो, आज प्रभु की जिन बातों ने
मुझे प्रभावित किया है वह है प्रभु की ओर लौटने के लिये चुनौतीपूर्ण आमंत्रण। प्रभु आज
हमसे कह रहे हैं कि यदि तुम पश्चात्ताप नहीं करोगे तो नष्ट हो जाओगे।मित्रो, हम कई बार
इस बात पर विचार करते हैं कि वास्तव में प्रभु किस नष्ट होने के बारे में हमसे बोल रहे
हैं। कई बार हमारे व्यक्तिगत जीवन में हमने अपने को इस उलझन में पाया कि है कि आखिर नष्ट
कौन होता है और कौन प्रगति करता है। हाल ही में हमने हैती के भूकम्प की खबर सुनी। अभी
हम उससे उबर भी नहीं पाये थे कि चिली में भूकम्प आया। रोज दिन के समाचार पत्रों में उनके
बारे में सुनते हैं जो आतंकवादियों के शिकार हो गये। मतवाला ड्राइवर के कारण निर्दोष
लोगों की मौतें हो गयी। तो आखिर नष्ट कौन हो रहा है। क्या प्रभु हमारी मृत्यु के बारे
में कुछ बताना चाहते हैं।
ईश्वर के पास जाना मित्रो, आज प्रभु हमें तीन बातों
को बताना चाहते हैं पहला कि जो भी व्यक्ति जन्म लिया है उसे वापस ईश्वर के पास जाना है।
दूसरा कि मृत्यु तो धनी और ग़रीब, पापी और धर्मी दोनों के लिये निश्चित है। लोगों को
यह नहीं मालूम होगा यह कब आयेगी पर आयेगी ही। और तीसरी कि हमें सदा तैयार रहना चाहिये।
तैयार रहने का अर्थ पाप से दूर होना और प्रभु की ओर लौटते रहना। इसी को दूसरे शब्दों
में पश्चात्ताप करना कहा गया है। प्रभु आरंभ से यही चाहते थे कि कोई व्यक्ति नष्ट न हो
पर एक ऐसा पूर्ण जीवन जीये जिससे उसका जीवन शांतिमय हो। मित्रो, हमें यहाँ इस बात को
भी समझना चाहिये कि सब ही पाप हमें विनाश की ओर ले चलते हैं पर ऐसा नहीं हैं कि सभी व्यक्ति
जो किसी दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं उन्होंने ही पाप किया हो।
मानव परिवार
की किसी की भी गलती किसी के लिये भी दुःख का कारण बन सकता है। और कई बार दूसरों की गलती
के कारण हमारे जीवन का अंत भी हो सकता है।
पश्चात्ताप करना मित्रो, आज प्रभु
हमें हमारे जीवन के अन्त के बारे में बताते हुए यह भी समझाना चाहते हैं कि हमें पश्चात्ताप
करना चाहिये। जब हम पश्चात्ताप के अर्थ के बारे में विचार करते हुए सबसे पहले हमें इस
बात को स्वीकार करना चाहिये कि हम ईश्वर के सामने कमजोर है। हममें ईश्वर से दूर भटकने
का झुकाव है। हम प्रलोभनों के समय अपने विश्वास को मजबूती से दिखाने के बदले अपनी कमजोरी
के साथ तर्क-वितर्क करने लग जाते हैं उसमें हार जाते हैं। हम अगर सीधे रूप से किसी पाप
के ज़िम्मेदार न भी हों तो हम उन कार्यों को नहीं करते हैं जिन्हें हम करके दुनिया को
कुछ अच्छा बनने में अपना योगदान दे सकते हैं। हम आसानी से कह देते हैं मैं तो ठीक हूँ
दूसरों क्या करते हैं या क्या नहीं करते हैं इसका मैं क्या करुँ। हम अन्य लोगों के प्रति
बहुत ही उदासीन हो जाते हैं। मित्रो, पश्चात्ताप करने का अर्थ है अपने आप को स्वीकार
करना और अच्छे मार्ग पर चलने के लिये उत्साहपूर्वक कदम बढ़ाना। पश्चात्ताप करने का अर्थ
है अपनी दुर्दशा के लिये किसी दूसरे पर दोष नहीं मढ़ना और ईश्वर की इच्छा के अनुसार जीने
के लिये अपने आप को समर्पति करना। पश्चचात्ताप के चरम सीमा तो तब होती है जब हम पाप से
मुख मोढ़ लेते और ईश्वरीय पथ पर अग्रसर होते हैं। उन भले कार्यों को करना जिसे ईश्वर
ही करते हैं।
‘यूटर्न’ मित्रो, अगर आपने मरिया गोरेत्ती की कहानी पर गौर किया
होगा तो पाया होगा कि अलेकजेन्डर जिसने मरिया गोरेत्ती की हत्या की पूर्ण पश्चात्ताप
किया और बिल्कुल ही अपना जीवन बदल दिया। उसने अपना जीवन में यू टर्न कर लिया। एक बार
इस बात को समझ लिया कि क्या बुरा तो उसे सदा के लिये छोड़ दिया और उस अच्छाई को पाने
के लिये अपना सबकुछ समर्पित कर दिया जिससे लोगों का तो कल्याण होता ही है अपना आत्मा
को भी शांति मिलती है। मित्रो, अगर हमारा जीवन ऐसा हो जाये कि हम रोज दिन इस बात की तलाश
करें कि हम किन बुरी बातों लतों व्यवहारों और विचारों से दूर रहें और उन सभी अच्छी बातों
जैसे क्षमादान सेवा प्रेम और न्याय के लिये कार्य करें तो अवश्य ही हम किसी भी प्रकार
की दुर्घटना से हीं डरेंगे और हमारा यह चालीसा काल सफल हो जायेगा।