2013-02-25 12:12:30

वाटिकन सिटीः देवदूत प्रार्थना से पूर्व दिया गया सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें का सन्देश


वाटिकन सिटी, 25 फरवरी सन् 2013 (सेदोक): रोम स्थित सन्त पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में एकत्र लगभग एक लाख तीर्थयात्रियों को दर्शन देकर, सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने, रविवार 24 फरवरी को, परमाध्यक्ष रूप में, अन्तिम बार तीर्थयात्रियों के साथ देवदूत प्रार्थना की पाठ किया। इस प्रार्थना के पाट से पूर्व उन्होंने तीर्थयात्रियों को इस प्रकार सम्बोधित किया।
उन्होंने कहाः "अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, आपके स्नेह के लिये हार्दिक धन्यवाद!
आज, चालीसाकाल के दूसरे रविवार को, हमारे समक्ष एक बहुत ही सुन्दर सुसमाचार पाठ प्रस्तुत किया गया है और वह है प्रभु के रूपान्तरण का। सुसमाचार लेखक, विशेष रूप से, इस तथ्य पर बल देते हैं कि येसु उस समय रूपान्तरित हुए जब वे प्रार्थना में लीन थेः येसु का अनुभव पिता के साथ विशिष्ट सम्बन्ध का एक गहन अनुभव है जिसे येसु ने पेत्रुस, याकूब एवं योहन की संगति में ऊँचे पर्वत पर एक प्रकार की आध्यात्मिक साधना के क्षण में पाया। ये तीन शिष्य प्रभु की ईश्वरीय प्रकाशना के समय सदैव उपस्थित रहे (लूक 5,10; 8,51; 9,28)। वे प्रभु जिन्होंने कुछ ही समय पूर्व अपनी मृत्यु एवं अपने पुनरुत्थान की भविष्यवाणी की थी (9,22), अब शिष्यों को अपनी महिमा का पूर्वाभास दे रहे थे। प्रभु के रूपान्तरण में भी, उनके बपतिस्मा के समान ही स्वर्गिक पिता की वाणी प्रतिध्वनित होती हैः ''यह मेरा परमप्रिय पुत्र है। इसकी सुनो!'' (9,35)।
फिर, मूसा एवं एलियस की उपस्थिति भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है जो विधान एवं प्राचीन प्रसंविदा का प्रतिनिधित्व करते हैः प्रसंविदा का पूर्ण इतिहास उनकी ओर अर्थात् ख्रीस्त की ओर अभिमुख है जो एक नये "निर्गमन" को पूर्णता तक ले जाते हैं (9,31), वह प्रतिज्ञात देश की ओर अभिमुख नहीं है जैसे वह मूसा के युग में थी, अपितु स्वर्ग की ओर।
पेत्रुस का कथनः "गुरूवर! यहाँ होना हमारे लिए कितना अच्छा है!", इस प्रकार के रहस्यमय अनुभव को रोकने का असम्भव प्रयास है। सन्त अगस्टीन टीका करते हैं: "पर्वत पर.... प्रभु ख्रीस्त (पेत्रुस)..... के लिये आत्मा के भोजन समान थे। फिर भला क्योंकर वे थकान एवं दुख की स्थितियों में वापस लौटना चाहते जबकि ऊपर ईश्वर के प्रति पवित्र प्रेम की भावना से वे परिपूर्ण थे जो उन्हें पवित्र आचरण के लिये प्रेरित कर रहे थे?" (प्रवचन 78, 3)।
सन्त पापा ने आगे कहाः "सुसमाचार के इस पाठ पर चिन्तन कर, हम एक बहुत ही महत्वपूर्ण शिक्षा हासिल कर सकते हैं। सबसे पहले तो, प्रार्थना की श्रेष्ठता है, जिसके बिना प्रेरिताई एवं उदारता के सब कार्य सक्रियतावाद मात्र बन कर रह जाते हैं।
चालीसाकाल के दौरान हम, व्यक्तिगत एवं सामूहिक दोनों प्रार्थनाओं को उचित समय दे पाते हैं, यह हमारे आध्यात्मिक जीवन में प्राण फूँकने का काम करती है। इसके अलावा, प्रार्थना करने का अर्थ स्वतः को विश्व एवं उसके विरोधाभासों से अलग कर लेना कदापि नहीं है जैसा कि पेत्रुस ने ताबोर पर करना चाहा। इसके विपरीत, प्रार्थना हमें वापस तीर्थयात्रा यानि कार्य तक ले जाती है।
चालीसाकाल के लिये प्रकाशित अपने सन्देश में मैंने लिखा है, "ख्रीस्तीय अस्तित्व ईश्वर के संग साक्षात्कार हेतु पर्वत पर अनवरत चढ़ते रहना है, और फिर उससे प्राप्त होनेवाले प्रेम एवं शक्ति को वापस लाना है, ताकि ईश्वर के उसी प्रेम से अपने भाइयों एवं बहनों की सेवा कर सकें" (अंक 3)।
अन्त में सन्त पापा ने कहाः "प्रिय भाइयो और बहनो, मेरे जीवन के इस क्षण में, ईश्वर का यह शब्द विशेष रूप से मेरे प्रति सम्बोधित प्रतीत होता है।" ........तालियाँ......
"धन्यवाद"। प्रभु मुझे "पर्वत पर आरोहित होने के लिये" बुला रहे हैं ताकि मैं प्रार्थना और मनन चिन्तन पर और अधिक समर्पित रह सकूँ। परन्तु इसका अर्थ कलीसिया का परित्याग करना नहीं है, इसके विपरीत, यदि ईश्वर मुझसे यह मांग कर रहे हैं तो वह इसीलिये है ताकि मैं कलीसिया की सेवा उसी समर्पण और उसी प्रेम के साथ कर सकूँ जैसा कि अब तक करने का मैं प्रयास करता रहा हूँ, किन्तु अब, मेरी उम्र एवं मेरी शक्ति के अनुकूल। कुँवारी मरियम की मध्यस्थता को हम पुकारेः प्रार्थना एवं उदार कार्यों द्वारा प्रभु येसु का अनुसरण करने में मरियम हम सबकी सहायता करें।"
इतना कहकर सन्त पापा ने उपस्थित भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सबके प्रति मंगलकामनाएं अर्पित करते हुए सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।
देवदूत प्रार्थना के उपरान्त सन्त पापा ने विभिन्न भाषाओं में तीर्थयात्रियों के प्रति मंगलकामनाएँ अर्पित कीं। अँग्रेज़ी भाषा में उन्होंने कहा, "यहाँ उपस्थित सभी अँग्रेज़ी भाषा भाषियों का मैं हार्दिक अभिवादन करता हूँ, विशेष रूप से, लन्दन ऑरेटरी स्कूल के स्कोला कानटोरुम भजन मंडली का। इन दिनों प्राप्त कृतज्ञता, स्नेह एवं प्रार्थना में सामीप्य की अनेकानेक अभिव्यक्तियों के लिये प्रत्येक को मैं धन्यवाद देता हूँ। मेरी मंगलकामना है कि पास्का की ओर लक्ष्यांकित अपनी चालीसाकालीन तीर्थयात्रा में आगे बढ़ते हुए हम अपनी दृष्टि मुक्तिदाता येसु पर लगायें रखें जिनकी महिमा रूपान्तरण के पर्वत पर प्रकट हुई थी। आप सब पर मैं प्रभु ईश्वर की विपुल आशीष की मंगलयाचना करता हूँ।"
अन्त में सबपर प्रभु की दिव्य शांति का आह्वान कर सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने सबके प्रति शुभ रविवार एवं शुभ सप्ताह की मंगलकामनाएँ अर्पित कीं तथा कहा, "धन्यवाद, प्रार्थना में हम सब एक दूसरे के क़रीब रहेंगे, आप सबको हृदय की अतल गहराई से धन्यवाद!”








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