2013-02-06 13:15:57

संत पापा की धर्मशिक्षा, 6 फरवरी, 2013


वाटिकन सिटी, 5 जनवरी, 2013 (सेदोक, वी.आर.) बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने वाटिकन स्थित पौल षष्टम् सभागार में एकत्रित हज़ारों तीर्थयात्रियों को विभिन्न भाषाओं में सम्बोधित किया।

उन्होंने अंग्रेजी भाषा में कहा, ख्रीस्त में मेरे अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, विश्वास वर्ष में हम आज ‘विश्वास’ विषय पर धर्मशिक्षामाला को जारी रखें। आज हम ख्रीस्तीय विश्वास की घोषणा की ‘स्वर्ग और पृथ्वी के सृष्टिकर्त्ता ईश्वर’ वाक्यांश पर चिन्तन करें।

हमें ज्ञात है कि सर्वशक्तिमान ईश्वर ने दुनिया की सृष्टि शब्दमात्र से की और दुनिया को अच्छाई, सच्चाई और सुन्दरता से भर दिया। इस तरह हम पाते हैं कि दुनिया की सृष्टि ईश्वर की दिव्य योजना का फल है। इस दिव्य योजना में मानव की सृष्टि ईश्वर की सर्वकश्रेष्ठ कृति है।

पवित्र धर्मग्रंथ हमें बतलाता है कि ईश्वर ने मिट्टी से नर और नारी की सृष्टि की और उन्हें अपने प्रतिरूप बनाया।

यही घटना मानव की मर्यादा और मानव परिवार की एकता के आधार है। इस घटना में हम पाते हैं मानव एक सीमित प्राणी है और उसे ईश्वर की दिव्य योजना में अपना योगदान देना है।

आदि पाप के कारण जो आत्मीय संबंध मानव का ईश्वर के साथ था वह कमजोर हुआ। इतना ही नहीं इससे मानव का दूसरे मानव के साथ का संबंध भी प्रभावित हुआ। लेकिन नये आदम, प्रभु येसु की आज्ञाकारिता और बलिदान द्वारा ईश्वर ने हमें आदि पाप से मुक्त कर दिया और अपने पुत्र और पुत्रियों के समान जीने की स्वतंत्रता दी है।


इतना कह कर संत पापा ने अपनी धर्मशिक्षा समाप्त की। उन्होंने कहा कि प्रेरित संत पेत्रुस और पौलुस के कब्र के दर्शन आपको इस बात के लिये प्रेरित करे कि आप सदा ही अपने जीवन में येसु के प्रेम को सर्वोच्च स्थान दें ।

इसके बाद आयरलैंड, इंगलैंड अमेरिका और देश-विदेश के तीर्थयात्रियों, उपस्थित लोगों तथा उनके परिवार के सदस्यों को प्रभु के प्रेम, और शांति की कामना करते हुए उन्हें अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।








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