2013-02-01 09:51:10

वर्ष ‘स’ येसु का बपतिस्मा, 13जनवरी, 2013


इसायस 40:1-5, 9-11
तीतुस2:11-14, 3:4-7
लूकस 3:15-17,21-22
जस्टिन तिर्की, ये.स.

बाघ के बच्चे की कहानी
मित्रो, आइये आज आपको एक कहानी बताता हूँ। आज की कहानी एक बाघ के बच्चे के बारे में है जिसे मेरे एक गुरू ने कर्इ बार बताया था। एक बाघ के बच्चे को किसी किसान ने जंगल से उठा लाया था जब वह घायल होकर अपनी माँ से बिछुड़ गया था। उस किसान ने उसकी सेवा सुश्रुषा की और उसे अपने घर में ही पालने लगा। चूँकि बाघ का बच्चा सिर्फ तीन महीने का था इसलिये उस किसान ने उसे घर के कुत्ते के बच्चों के साथ ही सुलाता था। बाघ का बच्चा कुत्तों के साथ ही बड़ा होने लगा। जैसे कुत्ते के बच्चे दौड़-धूप करते वैसा ही वह भी करता । किसान जो भी देता वही खाता और किसान के प्रति भी वह बहुत वफादार था। कुत्तों की तरह ही पूँछ हिलाता और किसान के घर की पहरेदारी करता था। कभी-कभी तो कुत्तों के समान भूँकने का प्रयास भी करता था। दिन बीतता गया और बाघ का बच्चा भी बड़ा होता गया। उसे जरा भी आभास न था कि वह बाघ का बच्चा है और उसे यह बिल्कुल पता नहीं था कि उसका जीवन कुत्तों से अलग होना चाहिये। एक दिन उस गाँव में एक बाघ आया और कुत्ते भूँकने लगे। बाघ के बच्चे ने भी बाघ को भगाने का प्रयास किया। पर ऐसा हुआ कि जब बाघ के भय से सभी कुत्ते तितर-बितर हो गये तो बाघ को बच्चा भागा नहीं।तब जंगली बाघ ने आकर उससे कहा। ऐ बाघ के बच्चे तुम यहाँ क्या कर रहे हो।और ऐसा कहते हुए उसने उसे एक तालाब के पास ले गया और कहा देखो अपने आप को कि तुम कौन हो? बाघ के बच्चे ने अपनी परिछार्इ पानी में देखी। तब बड़े बाघ ने कहा कि तुम कुत्ते के बच्चे नहीं हो । तुम तो बाघ हो और उसे अपने साथ जंगल ले गया और उसे बाघ के तौर-तरीके सिखाये और बाघ की तरह रहने, गरजने जानवरों को पकड़ने और शान से जीने का का गुर सिखाया। छोटे बाघ ने अपने आप को पहचान लिया।उसने अपनी असल ताकत पहचान ली। उसे अपनी आंतरिक ताकत का आभास हो गया और वह पूरी तरह बदल गया।

मित्रो, अच्छा और अर्थपूर्ण जीवन जीने के लिये अपनी वास्तविकता से अवगत होना परम आवश्यक है। यह जानना ज़रूरी है कि मैं वास्तव में कौन हूँ और मेरे जीवन का क्या मकसद है?

मित्रो, आज हमलोग पूजन विधि पंचांग के द्वारा प्रस्तावित रविवारीय पाठों के आधार पर येसु के बपतिस्मा पर मनन चिंतन कर रहें हैं। सुसमाचार पाठ में येसु के बपतिस्मा की चर्चा की गयी है। यर्दन नदी में अपने बपतिस्मा के द्वारा प्रभु येसु ने अपनी वास्तविक ताकत की पहचान की और अपने मिशन को भी पहचाना। आइये, हम संत लूकस रचित सुसमाचार के तीसरे अध्याय के 15-17 और 21-22 पदों में वर्णित येसु के बपतिस्मा लेने की घटना को ध्यान से सुनें।

संत लूकस, 3, 15-17;21-22

जनता मे उत्सुकता बढ़ती जा रही थी और योहन के शिष्य में सब मन-ही-मन सोच रहे थे कि कहीं यही तो मसीहा नहीं है। इसलिये योहन ने सब से कहा, मैं तो तुम लोगों को जल से बपतिस्मा देता हूँ परन्तु जो आने वाले हैं, जो मुझ से अधिक शक्तिशाली हैं। मैं उनके जूते का फीता खोलने योग्य भी नहीं हूँ। वह तुमको आग और पवित्र आत्मा से बपतिस्मा देंगे। सारी जनता को बपतिस्मा मिल जाने के बाद र्इसा ने भी बपतिस्मा ग्रहण किया । इसे ग्रहण करने के बाद वह प्रार्थना कर ही रहे थे कि स्वर्ग खुल गया । पवित्र आत्मा कपोत के रूप में उन पर उतरा और स्वर्ग से यह वाणी सुनार्इ दी। "तु मेरा प्रिय पुत्र है मैं तुझ से अति प्रसन्न हूँ।"

प्रिय पुत्र और पुत्री
मित्रो, क्या आपने सुसमाचार को ध्यान से सुना। अगर आपने सभी बातों को ठीक से न भी सुना हो तो कोर्इ बात नहीं अगर आपने पढ़े गये प्रभु की वाणी के अंतिम भाग को ध्यान से सुना हो तो आप समझ ही गये होंगे कि उन शब्दों में येसु के बारे में क्या कहा गया। इसमें एक वाणी यह कहते हुए सुनार्इ पड़ती है कि येसु से र्इश्वर अति प्रसन्न हैं और येसु र्इश्वर के प्रिय पुत्र हैं। बपतिस्मा के द्वारा येसु को एक पहचान मिल जाती है।येसु को मालूम हो जाता है कि वे र्इश्वर की ओर से आये हैं और र्इश्वर की उन्हें जाना है और दुनिया के सभी लोगों को र्इश्वर का मार्ग दिखाना है।
बपतिस्मा संस्कार
मित्रो, क्या कभी आपने अपने जीवन पर विचार किया है कि जब हम अपना बपतिस्मा ग्रहण करते हैं तो इस समय में क्या होता हैं। हम इस पावन समय में क्या बन जाते हैं।इस पावन समारोह के द्वारा आंतरिक रूप से हममें क्या परिवर्तन आता है और हमे अपने जीवन में क्या करना चाहिये। शायद आप यह कहना चाहेंगे कि उस समय तो हम इतने छोटे रहते हैं कि हमें तो पता ही नहीं चलता है कि उस बपतिस्मा समारोह में क्या हो रहा है।आपका सोचना भी सही है हम अपने बपतिस्मा के समय में इतने अबोध शिशु होते हैं कि हमसे इस संबंध में कुछ समझ पाने की आशा करना उचित न होगा। मित्रो, आज यहाँ पर मैं आपकेा यह भी बताना चाहूँगा कि बपतिस्मा एक संस्कार हैं। और संस्कार क्या है? संस्कार हैं र्इश्वरीय भीतरी कृपा का बाहरी रूप। यह एक ऐसा पावन समय है जब हम र्इश्वर की अनेक कृपायें पाते हैं। इस बपतिस्मा संस्कार के द्वारा हम एक अलग पहचान मिल जाती है ठीक उसी तरह जिस तरह की प्रभु येसु को एक विशिष्ट पहचान और दिव्य ताकत मिली और उन्होंने उसी शक्ति से अपना मिशन शुरु किया और पूरी मानव जाति को बचाया।

बपतिस्मा की तीन बातें
मित्रो, आज आइये हम इस बात से भी अवगत हो जायें कि येसु का बपतिस्मा क्यों इतना महत्व की बात है। पहली बात तो यह है कि पूर्वी काथलिक कलीसिया में येसु के बपतिस्मा को बहुत महत्व दिया है वे इस पर्व को प्रकाशना पर्व या ‘एपिफनी’ के पर्व के दिन ही मनाते हैं चुँकि इसी दिन येसु ने अपने आपको दुनिया को प्रकट किया। दूसरा कि इसी बपतिस्मा के दिन में र्इश्वर के तीन जन एक साथ प्रकट हुए अर्थात पिता परमेश्वर की वाणी सुनार्इ पड़ी और पवित्र आत्मा परमेश्वर कपोत के रूप में येसु पर उतरते हुए दिखार्इ पड़े। और प्रभु येसु तो खुद ही यह पिता परमेश्वर को यह कहते हुए सुन सके कि ‘तू मेरा प्रिय पुत्र है’। मित्रो, तीसरी महत्व की बात यह भी है कि बपतिस्मा की इस घटना का जिक्र चारों सुसमाचार लेखकों ने किया है।और इसी घटना के बाद प्रभु ने अपना सार्वजनिक जीवन शुरू किया।और इसी सप्ताह तक को ही ख्रीस्त जयन्ती काल माना जाता है।

मित्रो, कर्इ बार हमने लोगों को सुना है कि अपना बर्थ डे तो मना लेते हैं और आज के युग में तो बच्चों को कोर्इ तिथि याद हो या न हो अपने जन्मदिन की तिथि अवश्य याद रहती है। वैसे अपने जन्म तिथि याद करना अच्छी बात है पर आज
बपतिस्मा – ख्रीस्तीय पहचान

आज प्रभु येसु अपने बपतिस्मा दिवस की भी याद कराना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि अपने बपतिस्मा के दिन को याद करें। यदि हम इसे भूल भी जाये तो यह क्षमनीय है पर एक र्इसार्इ को जिसने प्रभु का बपतिस्मा लिया है यह बात कभी नहीं भूलना चाहिये कि बपतिस्मा के द्वारा हम र्इश्वर के पु़त्र बन जाते हैं। हमें अपनी सच्ची पहचान मिल जाती है। इसके द्वारा हम एक दूसरे के भार्इ-बहन बन जाते हैं। इसके द्वारा हम र्इश्वर के परिवार के सदस्य बन जाते हैं। मित्रो न केवल इतना हीे बपतिस्मा संस्कार हमें याद दिलाता है कि हमारा मिशन क्या है।यह हमे याद दिलाता है कि हमारा कार्य येसू के कार्य को आगे बढ़ाना है। हमारा कार्य है येसु के समान सच्चार्इ का प्रचार करना अच्छार्इ का साथ देना और भलार्इ के कार्य करना ताकि लोग इस दुनिया में हमारी उपसिथति से र्इश्वर की ओर अग्रसर हो सकें।
अपने बपतिस्मा के द्वारा प्रभु हमे याद दिलाना चाहते हैं कि हम अपने उन वचनों या करारों को याद करें जिसके द्वारा हमने यह वादा किया था कि हम सदा प्रकाश में चलेंगे हम सदा र्इश्वर प्रदत अच्छार्इयों की रक्षा करेंगे और सदा बुरी आत्माओं के प्रलोभनों को ठुकराते रहेंगे और अपनी पहचान एक अच्छे ख्रीस्तीय के रूप में बनाये रखेंगे।

अन्दरी की शक्ति पहचानें
मित्रो अगर हम संक्षेप में कहना चाहें तो येसु का बपतिस्मा हमें आमंत्रित करते हुए कह रहा है कि हम अपने अंदर की र्इश्वरीय शक्ति को पहचानें अपनी वास्तविक क्षमताओं को ठीक उस बाघ के बच्चे के समान पहचानें और दुनिया आकर्षण मे न ही डूब जायें न इससे बहक जायें लेकिन येसु का अनुसरण करते हुए इस दुनिया को अपने अच्छे कार्य से अच्छार्इ के लिये पे्ररित करें। र्इश्वर करे कि आपको यह वरदान मिले, आपके प्रियजनों को यह कुपा मिले और मुझे भी यही र्इश्वरीय शक्ति प्राप्त हो ।आमेन।










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