2013-02-01 09:58:21

वर्ष ‘स’ का चौथा रविवार, 3 फरवरी, 2013


नबी येरेमियस का ग्रंथ 1, 5-5, 17-19
कुरिंथियो के नाम 12, 31-13,13
संत लूकस 4, 21-30
एक बुढ़िया की कहानी
मित्रो, आज आप लोगों को एक बुढ़िया की कहानी बताता हूँ जो एक छोटे-से शहर में रहा करती थी। वह शहर बहुत ही छोटा था पर लोगों के आकर्षण का केन्द्र था। कई लोग गर्मी के मौसम में छुट्टियाँ बिताने वहाँ आया करते थे। एक बार वहाँ उस देश की रानी वहाँ छुट्टी मनाने आयीं थी। रानी को एक आदत थी कि वह चुपचाप अपने निवास से निकलती और किसी के भी घर चली जाती और उनका हाल-ख़बर लेती थी। लोग भी उनकी बहुत तारीफ़ किया करते थे। बुढ़िया को रानी के अपने शहर में आने का पता नहीं था। एक दिन की बात है बुढ़िया का अपने पड़ोसी से झगड़ा हो गया था। जमकर गाली-गलौज़ हुआ। बुढ़िया बहुत गुस्से में थी। और उसने अपने को घर में बंद कर लिया। कई लोग आये और उसके घर का दरवाज़ा खटखटाये पर उसने दरवाज़ा नहीं खोला।उस गाँव का प्रधान वहाँ आया और खटखटाया पर उसने दरवाज़ा नहीं खोला। वह भीतर ही भीतर कहती रही खटखटाते रहो खटखटाते रहो शाम तक खटखटाते रहो मैं दरवाज़ा खोलने वाली नहीं हूँ। शाम के वक्त किसी ने और दरवाज़ा खटखटाया। उस बुढ़िया ने वही कहा खटखटाते रहो शाम तक खटखटाते रहो मैं दरवाज़ा खोलने वाली नहीं हूँ। उसके वैसा कहने पर भी उस व्यक्ति ने दरवाज़ा खटखटाना ज़ारी रखा। बुढ़िया ने दरवाज़ा नहीं ही खोला। जब आगंतुक के जाने का पद्चाप सुना तो बुढ़िया मुस्कुरायी और कहा कि मज़ा आ गया।उसने सोचा कि उसने सबों को अच्छा पाठ पढ़ाया है। सबको बता दी की कि मैं कौन हूँ और मुझे नाराज़ करने से मैं कितनी बुरी हो सकती हूँ। उस बुढ़िया ने अपने होंठ चबाते हुए कहा कि मैने सबों मज़ा चखाया है और एक कुटिल मुस्कुराहट के साथ सोने चली गयी। जब दूसरे दिन उन्होंने दरवाज़ा खोला तो लोगों ने बताया कि शाम को उसके घर रानी आयीं थी। पर उसने दरवाज़ा नहीं खोला। तब उसे आत्मग्लानि हुई। उसके चेहरे का रंग उड़ गया और उससे गलती हो गयी। पर समय बीत गया था और पश्चात्ताप करने के अलावा बुढ़िया के पास और कुछ बचा ही नहीं था। आवेश में आकर गुस्से से लाल होकर या अपने घमंड में चूर होकर अच्छी और भली बातों को नकार देने से उस अवसर को गँवा देते हैं जिससे हमारा जीवन सफल हो सकता है जिससे हमें जीवन की खुशी मिल सकती है।

मित्रो, रविवारीय आराधना विधि चिंतन कार्यक्रम के अंतर्गत पूजन विधि पंचांग के वर्ष ‘स’ के चौथे रविवार के लिये प्रस्तावित सुसमाचार पाठों के आधार पर हम मनन चिन्तन कर रहे हैं। आज के प्रभु के वचनों में हम पाते हैं कि लोगों ने येसु को नकार दिया। उसे शहर के बाहर निकाल दिया और यहाँ तक कि उन्हें जान से भी मार डालने की योजना बनायीँ।





लूकस, 2, 20-30

मित्रो,आइये हम प्रभु के दिव्य वचनों को सुने जिसे संत लूकस रचित सुसमाचार के चौथे अध्याय के 21 से 30 पदों से लिया गया है।

येसु सभागृह में उपस्थित लोगों से कहने लगे, धर्मग्रंथ का कथन आज तुम लोगों के सामने पूरा हो गया है। सबों ने उनकी प्रशंसा की। वे उनके मनोहर शब्द सुन कर अचम्भे में पड़े और कहने लगे, क्या यह योसेफ का बेटा नहीं है। येसु ने उनसे कहा, तुम लोग निश्चय ही मुझे यह कहावत सुना दोगे- ऐ वैद्य अपना ही इलाज़ करो। कफ़रनाहूम में जो कुछ हुआ है, हमने उसके बारे में सुना है- वह सब अपनी मातृभूमि में भी कर दिखाइए। फिर येसु ने कहा, मैं तुम से कहे देता हूँ – अपनी मातृभूमि में नबी का स्वागत नहीं होता। मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि जब एलियस के दिनों में साढ़े तीन वर्षों तक पानी नहीं बरसा और सारे देश में घोर अकाल पड़ा था, तो उस समय इस्राएल में बुहत-सी विधवाएँ थी। फिर भी एलियस उन में से किसी के पास नहीं भेजा गया - वह सिदोन के सरेप्ता की एक विधवा के पास ही भेजा गया था। और नबी एलिसेयस के दिनों में इस्राएल में बहुत-से कोढ़ी थे। फिर भी उनमें से कोई नहीं, बल्कि सिर्फ नामन ही नीरोग किया गया था। यह सुन कर सभगृह के सब लोग बहुत क्रुद्ध हो गये। वे उठ खड़े हो गये और उन्होंने येसु को नगर से बाहर निकाल दिया। जिस पहाड़ी पर उनका नगर बसा था, वे येसु को उसकी चोटी तक ले गये, ताकि उन्हें नीचे गिरा दे, परन्तु वह उनके बीच से निकल कर चले गये।

अस्वीकारा जाना
मित्रो, मेरा पूरा विश्वास है कि आप लोगों ने आज के सुसमाचार पाठ को ध्यान से सुना है और मैं इस बात को दृढ़ता से मानता हूँ आपके प्रभु के वचन को सुनने से आपको और आपके पूरे परिवार के सब सदस्यों को आध्यात्मिक लाभ हुए हैं। मित्रो, आज मुझे जिस बात ने प्रभावित किया वह है सुसमाचार की अंतिम तीन पंक्तियाँ। सच पूछा जाये तो इन तीन पक्तियों ने मेरे मन को झकझोर दिया। एक ओर तो येसु की तारीफ़ हो रही थी। लोग उससे मिलने के लिये टूट पड़ते थे, और कई तो दूर-दूर से उनसे मिलने आया करते थे, उनकी तारीफ़ किया करते थे तो दूसरी ओर उसके अपने ही लोग येसु की अच्छाइयों को नहीं पहचान पा रहे थे। येसु के निकट के ही लोग येसु को दिल से स्वीकार नहीं कर पा रहे थे। आज के सुसमाचार में तो नौबत यहाँ तक आयी कि वे उन्हें मार डालने पर उतारु हो गये। वे येसु को पर्वत की चोटी से ढकेल कर गिरा देना चाहते थे।

नबी का अनादर
मित्रो, कई बार हमारे जीवन में ऐसी बातें हो जाया करतीं हैं। हमारी अच्छाइयों को दूसरे लोग देखते हैं पहचानते हैं और उसकी तारीफ़ करते हैं और उससे उनका जीवन भी सुन्दर और सफ़ल होता है पर हमारे अपने ही लोग वरदान पाने से वंचित रह जाते हैं। आज येसु मसीह ने सही ही कहा है कि अपने शहर में नबी का कोई आदर नहीं होता है। मित्रो, कई बार हमने अपने जीवन में यह अनुभव किया होगा कि हमारी अच्छी बातों को कोई ध्यान नहीं देता है कई बार हमें ऐसा लगता है कि हम सिर्फ़ अकेले ही सही मार्ग में चलने का प्रयास कर रहें हैं।
कई बार तो हमें ऐसा भी लगता है कि दुनिया में कुछ लोग ऐसे हैं जो हमारी बुराई करने में लगे हैं और हमें छोटा बनाने का प्रयास कर रहें हैं। कई बार यह सच्चाई और ही भारी पड़ती है जब हमें लगता है कि जो हमारे विरोध कर रहे हैं वे अपने करीबी लोग हैं। आज प्रभु के शब्दों से शक्ति पायें जिन्हें मालूम था कि अपने ही शहर या कस्बे में भला काम करने या भली बातें बोलने को लोग नज़रअंदाज़ कर देते हैं। कई बार हम इस बात को तो समझ लेते हैं कि लोग हमारी तारीफ़ न करें। हम इस बात को भी समझ लेते हैं कि लोग हमें कोई विशेष मान-सम्मान न दें। पर हमें इस बात से बहुत दुःख और परेशानी होती है जब वे हमारे अच्छे कार्यों के बावजूद हमारा तिरस्कार करते हैं, हमारी हँसी उड़ाते हैं। मित्रो, हमें आश्चर्य होता है पर यह सब कुछ प्रभु के साथ हुआ और जो भी प्रभु की इच्छा के अनुसार जीवन बिताते हैं उनके साथ भी ऐसा ही होता रहा है और होता रहेगा।
सब कुछ प्रभु की खातिर
मित्रो, काथलिक धर्म के इतिहास पर ग़ौर करने से एक पक्ष बिल्कुल साफ दिखाई पड़ता है वह है कि कई इस धर्म ने कई संत महात्मा और आम ख्रीस्तीयों को पैदा किये जिन्होंने अपना जीवन बख़ूबी और ईमानदारी से इसीलिये जीया क्योंकि उन्हें इस बात का दृढ़ विश्वास था कि उनका जीवन प्रभु के लिये है। उन्हें यह भी विश्वास था कि येसु के लिये दुःख सहना व्यर्थ नहीं जाता है।

विश्वास में दृढ़ बने
आज के प्रभु के दिव्य वचन हमें इस बात के लिये आमंत्रित करती है कि हम अपने विश्वास में स्थिर और मजबूत रहें। विश्वास में मजबूत होने का अर्थ है कि हम अच्छी बातों को जानें हम दूसरों की भलाई के बारे में सोचें और हम दूसरों के लिये भला कार्य करते रहें। ऐसा हम उस समय भी करना जारी रखें जब लोग हमारा विरोध करेंगे। कई बार हमने इस बात को भी सुना होगा कि जब हमारे अच्छे दिन होते हैं तो हमारे कई मित्र होते हैं। पर जब हम कुछ तकलीफ़ों से गुज़र रहे होते हैं तो हमारा साथ सब छोड़ देते हैं ऐसे समय में हमारे सामने अँधेरा छा जाता है। और हमारे साथ सदा साथ चलने वाली हमारी छाया भी हमारा साथ छोड़ देती है।

मार्ग में अकेला
आज प्रभु हमें इस बात के लिये आमंत्रित कर रहे हैं कि हम इस बात को जाने की सच्चाई भलाई और अच्छाई के मार्ग में कई बार हमें अकेला चलना पड़ता है। हम इस बात को जानें कि भलाई के मार्ग में चलने के लिये हमें धैर्य की आवश्यकता है। इस मार्ग में हमारी परीक्षा बार-बार ली जाती है। हाँ मित्रो, हम और एक बात याद करें कि भलाई और अच्छाई के मार्ग में हम अकेले होते हैं पर इसका सुख सिर्फ़ हमें नहीं मिलता है। हमारे भले जीवन से जग को तो सुख मिलता ही है इससे हमारे मन-दिल को भी आंतरिक सुख की प्राप्ति होती है वह अद्वितीय है। येसु ने इसे कर के दिखाया है।
येसु का मार्ग काँटों से भरा था लेकिन उन्होंने अपने जीवन के अल्पकाल से ही जितना किया उतना लोग वर्षों जीने पर भी नहीं कर पाते हैं। यह सिर्फ इसीलिये क्योंकि येसु का जीवन ईश्वर की महत्तर महिमा और लोगों की भलाई के लिये समर्पित था। प्रभु आज इस बात के लिये भी हमें आमंत्रित कर रहे हैं कि हम अपने घमंड के कारण अच्छी बातों का, अच्छे लोगों का और अच्छे कर्मों का गाँव की उस बुढ़िया के समान अनादर कर दें तो हमारे जीवन में सिर्फ़ पश्चात्ताप रह जायेगा और अगर हम भलाई अच्छाई और सच्चाई का साथ दें तो हमारा जीवन अल्प हो भी जाये पर सुरक्षित और ईश्वरीय कृपाओं से पूर्ण होगा।








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