वाटिकन सिटी, 30 जनवरी, 2013 (सेदोक, वी.आर.) बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत
पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने वाटिकन स्थित पौल षष्टम् सभागार में एकत्रित हज़ारों तीर्थयात्रियों
को विभिन्न भाषाओं में सम्बोधित किया।
उन्होंने अंग्रेजी भाषा में कहा, ख्रीस्त
में मेरे अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, विश्वास वर्ष में हम आज ‘विश्वास’ विषय पर धर्मशिक्षामाला
को जारी रखें। आज हम ख्रीस्तीय विश्वास की घोषणा में वर्णित सृष्टिकर्त्ता ईश्वर पर चिन्तन
करें जिन्हें ‘सर्वशक्तिमान पिता’ कहा गया है।
आज की दुनिया में कई मानव समुदायों
में ‘पितृत्व’ या ‘पिता होना’ संकट के दौर से गुज़र रहा है फिर भी धर्मग्रंथ हमें बतलाता
है कि ईश्वर को ‘पिता’ कह कर पुकारने का क्या अर्थ है?
पिता ईश्वर की उदारता
असीम है, वे वफ़ादार और क्षमाशील हैं; उन्होंने दुनिया को इतना प्यार किया कि इसकी मुक्ति
के लिये अपने एकलौते पुत्र को दे दिया।
येसु अदृश्य ईश्वर को एक दयालु पिता के
रूप में प्रकट करते हैं जो अपनी संतान को कभी नहीं छोड़ता है। उन्होंने अपने बच्चे-बच्चियों
को इतना प्यार किया कि क्रूस को भी गले लगा लिया।
ईश्वर ने हमें येसु में अपना
दत्तक पुत्र-पुत्रियाँ बनाया है। येसू का क्रूस हमें दिखलाता है कि हमारे ईश्वर कितने
‘शक्तिशाली’ हैं। शक्ति के बारे में मानव की सीमित अवधारणा से उनका सामर्थ्य बहुत ऊपर
है।
उनका धैर्यपूर्ण प्रेम इस बात से प्रकट होता है कि वे बुराई पर अच्छाई से,
मृत्यु पर जीवन से और पाप के बंधन को मुक्ति से जीत लेते हैं। येसु के क्रूस पर चिन्तन
करते हुए आज हम सर्वशक्तिमान पिता ईश्वर के पास आयें और उनसे कृपा की याचना करें कि वे
हमें अपनी शक्ति और भरोसे से भर दें ताकि हम उनकी प्रेममयी दया और मुक्तिपूर्ण शक्ति
पर विश्वास करें।
इतना कह कर संत पापा ने अपनी धर्मशिक्षा समाप्त की।
उन्होंने
‘पोन्तिफिकल नोर्थ अमेरिकन कॉलेज’ में ईशशास्त्रीय प्रशिक्षण में भाग ले रहे सदस्यों
का अभिवादन किया।
इसके बाद कोरिया, कनाडा ‘मेरिका और देश-विदेश के तीर्थयात्रियों,
उपस्थित लोगों तथा उनके परिवार के सदस्यों को प्रभु के प्रेम, और शांति की कामना करते
हुए उन्हें अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।