एकान्तवासी सन्त पौल को थेबेस के पौल नाम से भी
जाना जाता है। वे मिस्र के ख्रीस्तीय भिक्षु तथा सन्त जेरोम के मित्र थे। मिस्र में जन्में
पौल, 15 वर्ष की आयु में, अनाथ हो गये थे तथा सम्राट त्रायानुस देचियुस के दमन काल के
दौरान जंगलों में जा छिपे थे। उस समय रोमी अधिकारी ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों को चुन
चुन कर मार रहे थे। पौल भी ख्रीस्तीय थे यह बात अधिकारियों से छिपी रही थी किन्तु उनका
एक मुँहबोला भाई उनकी सम्पत्ति हड़पना चाहता था तथा अधिकारियों से शिकायत उनकी करना चाहता
था। भाई की बेवफाई का किस्सा जा न लेने के बाद पौल उजाड़ प्रदेश में चले गये। उस समय
उनकी उम्र 22 वर्ष की थी।
कुछ समय एकान्त में रहने के बाद पौल ने इसी जीवन शैली
को अपना लिया तथा इसी में आनन्दविभोर होने लगे। वे दिन रात ईश्वर पर मनन चिन्तन किया
करते तथा साधु जीवन व्यातीत किया करते थे। उनका एकान्तवास तब भंग हुआ जब एक दिन मठाधीश
सन्त अन्तोनी उनसे मिलने आये। सन्त अन्तोनी ने पौल को वृद्ध और बीमार पाया। कुछ ही समय
बाद एकान्तवासी भिक्षु पौल की मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के समय भी सन्त अन्तोनी उनके
साथ थे। उन्होंने पौल के पार्थिव शव को उस लबादे में लपेटा था जो उन्हें सन्त अनास्तासियुस
द्वारा भेंट स्वरूप अर्पित किया गया था। किंवदन्ती हैं कि दो शेरों ने भिक्षु पौल के
लिये कब्र खोदने में सन्त अन्तोनी की मदद की थी। एकान्तवासी सन्त पौल का निधन लगभग 342
ई. में हो गया था। उनके जीवन का वृत्तान्त सन्त जेरोम द्वारा लिखित "वीता पाओली" में
निहित है जो लैटिन तथा ग्रीक दोनों भाषाओं में उपलब्ध है। प्रथम ख्रीस्तीय भिक्षु, एकान्तवासी
सन्त पौल का पर्व 15 जनवरी को मनाया जाता है। वे फिलीपिन्स स्थित सान पाबलो शहर के संरक्षक
सन्त घोषित किये गये हैं।
चिन्तनः "तुम सारे हृदय से प्रभु का भरोसा करो;
अपनी बुद्धि पर निर्भर मत रहो। अपने सब कार्यों में उसका ध्यान रखो। वह तुम्हारा मार्ग
प्रशस्त कर देगा।" (सूक्ति ग्रन्थ 3:5-6)।