वाटिकन सिटी, 14 जनवरी, 2013 (वीआर, अंग्रेज़ी) संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने येसु के
बपतिस्मा के पर्वोत्सव पर 13 जनवरी को वाटिकन सिटी स्थित सिस्टीन चैपल में 20 शिशुओं
को बपतिस्मा संस्कार प्रदान किया।
शिशुओं को बपतिस्मा संस्कार देने के बाद संत
पापा ने उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा, "जो खुशी येसु के जन्म पर्व में आरंभ
हुई थी येसु के बपतिस्मा के साथ वह पूर्ण हो गयी है। येसु के बपतिस्मा के साथ ही पूजनविधि
में ख्रीस्तमस काल समाप्त हो गया है।"
संत पापा ने कहा, "येसु के बपतिस्मा के
महोत्सव की खुशी उन शिशुओं के लिये द्विगुणित हुई है जो आज के दिन बपतिस्मा संस्कार ग्रहण
कर रहे हैं। बपतिस्मा संस्कार के द्वारा इन नवशिशुओं में जीवित और सक्रिय पवित्र आत्मा
उतरा है और इससे बच्चों को कलीसियाई जीवन प्राप्त हुआ है।"
विदित हो कि येसु के
बपतिस्मा के पर्वोत्सव पर प्रत्येक वर्ष नये बच्चों का संत पापा द्वारा बपतिस्मा संस्कार
दिये जाने की परंपरा का आरंभ संत पापा धन्य जोन पौल द्वितीय के कार्यकाल में हुआ था।
इस दिन संत पापा वाटिकन में कार्यरत कर्मचारियों के शिशुओं को बपतिस्मा संस्कार देते
थे।
संत पापा ने कहा "येसु का बपतिस्मा तृत्वमय ईश्वर की सही अभिव्यक्ति है जो
येसु के ईश्वर होने, ईश्वर द्वारा भेजे जाने और मसीही होने का साक्ष्य है। यह इसायस नबी
द्वारा की गयी उस भविष्यवाणी की पूर्णता है जिसमें उन्होंने कहा था, ‘ईश्वर अपने पूरे
सामर्थ्य से पाप का विनाश करेगा। वह अपनी शक्ति से बुराई करने वालों हथियारों को छीन
लेगा।"
संत पापा ने कहा,"येसु का हथियार है क्रूस पर फैला उनका हाथ। येसु की शक्ति
है उसका दुःख, जिसे उन्होंने हमारे लिये उठाया जो दुनिया की शक्ति से भिन्न है।"
संत
पापा ने अबोध शिशुओं के माता-पिता को इस बात की याद दिलायी कि उन्होंने बच्चों के बपतिस्मा
द्वारा अपने विश्वास का साक्ष्य दिया है। बपतिस्मा ख्रीस्तीय होने और कलीसिया का सदस्य
होने की खुशी का भी साक्ष्य है।
संत पापा ने कहा कि जो हम विश्वास करते उस खुले
तौर पर बिना शर्त के लोगों को दिखा पाना आसान कार्य नहीं है।
उन्होंने कहा, "कई
लोग ऐसा सोचते हैं कि येसु के साथ संबंध बढ़ाना अपनी स्वतंत्रता को सीमित करने के समान
है क्योंकि येसु का अनुसरण करना हमें उस पूर्ण जीवन की ओर ले जाता है स्वकेन्द्रित नहीं
पर ईश्वर और पड़ोसियों के लिये खुला है।"
संत पापा ने कहा,"येसु को जानने और
उसे दूसरों को बताने से बड़ा और कोई अनुभव नहीं है और इसी येसु की संगति में मानव सच्ची
स्वतंत्रता का अनुभव प्राप्त करता है।"