सन्त थियोदोसियुस चेनोबियार्ख का जन्म, सन् 423 ई. में, काप्पादोसिया में हुआ था जो वर्तमान
तुर्की में है। उन्होंने काप्पादोसिया से जैरूसालेम की पैदल तीर्थयात्रा की थी। इसी तीर्थयात्रा
के दौरान थियोदोसियुस की मुलाकात सन्त सिमियोन से हो गई थी। इन्हीं की संगति में थियोदोसियुस
ने जैरूसालेम तथा पवित्रभूमि के पुण्य तीर्थों की यात्रा की तथा प्रभु येसु ख्रीस्त के
जीवन पर गहन मनन-चिन्तन किया। इस तीर्थयात्रा के दौरान उन्हें जैरूसालेम तथा बेथलेहेम
के बीच एक गिरजाघर के शीर्ष का पद प्रदान किया गया था किन्तु थियोदोसियुस पहाड़ों में
जाकर एकान्तवास करना चाहते थे। इस दौरान उन्हें एक आध्यात्मिक गुरु की ज़रूरत महसूस हुई
और उन्होंने मठवासी लौंजिनुस को अपना गुरु मान लिया। कुछ समय अपने गुरु के साथ रहने के
उपरान्त थियोदोसियुस पुनः चिन्तनशील जीवन यापन के लिये पहाड़ों में निकल गये।
थियोदोसियुस
की सिद्धि से आकर्षित होकर बहुत से लोगों ने उनका अनुसरण किया। अपने अनुयायियों के लिये
थियोदोसियुस ने एक मठ की स्थापना की जिसमें ग्रीस और आरमेनिया के युवा, मठवासी जीवन यापन
के लिये, भर्ती हो गये। इनके लिये थियोदोसियुस ने अलग-अलग मठों एवं गिरजाघरों का निर्माण
करवाया। इसी समय, थियोदोसियुस को जैरूसालेम के प्राधिधर्माध्यक्ष ने फिलीस्तीन के समस्त
मठवासी समुदायों की भेंट का कार्यभार सौंपा। अपनी भेंटों के दौरान थियोदोसियुस ने यूटीखियेनवाद
के अपधर्म के प्रति मठवासियों को सचेत कराया तथा प्रभु ख्रीस्त के सुसमाचार को भ्रामक
उपदेशों से दूर रखने का परामर्श दिया। तत्कालीन सम्राट अनास्तासियुस प्रथम यूटीखियेन
की शिक्षाओं के प्रति संवेदनशील थे इसलिये उन्होंने थियोदोसियुस को देश से निकाल दिया।
सम्राट अनास्तासियुस की मृत्यु के बाद नये सम्राट जस्टीन ने थियोदोसियुस को पुनः
फिलीस्तीन बुलवा लिया। फिलीस्तीन में ही, मठवासी जीवन के संस्थापक, थियोदोसियुस ने अपने
जीवन के अन्तिम वर्ष रोगावस्था में व्यतीत किये। सन् 529 ई. में, 105 वर्ष की आयु में,
सन्त थियोदोसियुस का निधन हो गया। पवित्रभूमि स्थित तीन राजाओं की कोठरी में उनकी समाधि
है। लोगों का विश्वास है कि येसु के जन्म पर उनके दर्शन करने आये तीन राजा इसी कोठरी
में ठहरे थे। सन्त थियोदोसियुस का पर्व 11 जनवरी को मनाया जाता है।
चिन्तनः
"धन्य है वह मनुष्य, जिसे प्रज्ञा मिलती है, जिसने विवेक पा लिया है! उसकी प्राप्ति चाँदी
की प्राप्ति से श्रेष्ठ है। सोने की अपेक्षा उस से अधिक लाभ होता है। उसका मूल्य मोतियों
से भी बढ़कर है। तुम्हारी कोई अनमोल वस्तु उसकी बराबरी नहीं कर सकती। उसके दाहिने हाथ
में लम्बी आयु और उसके बायें हाथ में सम्पत्ति और सुयश हैं। उसके मार्ग रमणीय हैं और
उसके सभी पथ शान्तिमय" (सूक्ति ग्रन्थ 3: 13-17)।