2013-01-06 20:40:12

प्रभु प्रकाश का पर्व, 6 जनवरी, 2013


नबी इसायस 60, 1-6
एफेसियों के नाम 3, 2-3, 5-6
संत मत्ती 2, 1-12
जस्टिन तिर्की,ये.स.
नसीरुद्दीन की कहानी
मित्रो, आज मैं आपलोगों को एक व्यक्ति के बारे में बताता हूँ उसका नाम था नसीरुद्दीन। एक शाम को नसीरुद्दीन रास्ते के किनारे कुछ खोज रहा था। वह घुटनों के बल जमीन में रेंग रहा था और किसी वस्तु की खोज में लगा हुआ था। कई लोगों ने नसीरुद्दीन को व्यस्त देखा पर किसी ने कुछ कहा नहीं । उधर से ही एक शिक्षक गुज़र रहे थे। जब उन्होंने नसीरुद्दीन को परेशान देखा तो उन्होंने उसे टोका, भाई नसीरुद्दीन क्या खोज रहे हो। तब नसीरुद्दीन ने जवाब दिया मैंने अपने घर की घर की चाभी खो दी है। तब उस शिक्षक ने उससे पूछा कि चाभी कहाँ खो दी है तुमने। नसीरुद्दीन ने कहा कि चाभी तो उसने घर ही में ही खोया है। तब शिक्षक ने कहा कि यदि तुमने अपनी चाभी घर में खोयी है तो फिर यहाँ रास्ता किनारे क्यों ढूँढ़ रहे हो। तब नसीरुद्दीन ने कहा कि गुरुजी मैं अपनी चाभी यहाँ खोज रहा हूँ क्योंकि यहाँ उजाला है। मित्रो,, कई बार हम सही वस्तुओं को ग़लत जगह में खोजते हैं। हमें इस बात की प्रसन्नता होती है कि हमें खोज रहें हैं पर हम उस वस्तु को कभी प्राप्त नहीं कर सकते हैं। ज्योतिषियों ने सही येसु की तलाश की और सही समय पर सही स्थान में येसु को पाया, जहाँ येसु ने अपने को प्रकट किया था।

मित्रो, हम रविवारीय आराधना विधि चिन्तन कार्यक्रम के अन्तर्गत पूजन-विधि पंचांग के प्रभु-प्रकाश के लिये प्रस्तावित पाठों के आधार पर मनन-चिंतन कर रहें हैं। आज के पाठ संत मत्ती के सुसमाचार के दूसरे अध्याय के 1 से 12 पदों में तीन ज्ञानियों की चर्चा की गयी है जो येसु को देखने आये थे। आइये अभी हम प्रभु के दिव्य वचनों को ध्यान से सुनें।




संत मत्ती, 2, 1-12
येसु का जन्म यहूदिया के बेतलेहेम में राजा हेरद के समय में हुआ था।इसके बाद ज्योतिषी पूर्व से येरुसालेम आये और कहने लगे,"यहूदियों के नवजात राजा कहाँ हैं? हमने उनका तारा देखा उदित होते हुए देखा है। हम उन्हें दण्डवत करने आये हैं।" यह सुन कर राजा हेरोद और सारा येरुसालेम घबरा गया। राजा ने सब महायाजकों और यहूदी जाति के शास्त्रियों की सभ बुला कर उन से पूछा, "मसीह कहाँ जन्म लेंगे ? " उन्होंने उत्तर दिया, यहूदिया के बेथलेहेम में, क्योंकि नबी ने इसके विषय में यह लिखा है- हे बेथलेहेम, यूदा की भूमि ! तू यूदा के प्रमुख नगरों में किसी से कम नहीं है. क्योंकि तुझ में एक नेता उत्पन्न होगा, जो मेरी प्रजा इस्राएल का चरवाहा बनेगा।" हेरोद ने बाद में ज्योतिषियों को चुपके से बुलाया और उन से पूछताछ कर यह पता कर लिया कि वह तारा ठीक किस समय उन्हें दिखाई दिया था। फिर उसने उन्हें बेथलेहेम भेजते हुए कहा, "जाइए, बालक का ठीक-ठीक पता लगाइए औऱ उस पाने पर मुझे ख़बर दीजिए, जिससे मैं भी जाकर उसे दण्दवत करुँ। वे राजा की बात मान कर चल दिये। उन्होंने जिस तारे को उदित होते देखा था, वह उनके आगे-आगे चलता रहा, और जहाँ बालक था, उस जगह के ऊपर पहुँच कर ठहर गया। वे तारा देख कर बहुत आनन्दित हुए। घऱ में प्रवेश कर उन्होंने बालक को उसकी माता मरियम के साथ देखा और उसे साष्टांग प्रणाम किया। फिर अपना-अपना संदुक खोल कर उन्होंने उसे सोना, लोबान और गंधरस की भेंट चढ़ायी। उन्हें स्वप्न में यह चेतावनी मिली कि वे हेरोद के पास नहीं लौटें। इसलिये वे दूसरे रास्ते से अपने देश चले गये।

प्रभु प्रकाश का अर्थ
मित्रो, मेरा पूरा विश्वास है कि आप सबों प्रभु के दिव्य वचनों को ध्यान से सुना है और दिव्य वचन को सुनने से आपको और आपके परिवार के सदस्यों को आध्यात्मिक लाभ प्राप्त हुए हैं। मित्रो, आज हम जिस त्योहार को मनाते हैं इसे प्रभु प्रकाश या 'एपिफनी' के नाम से जाना जाता है। 'एपिफनी' एक ग्रीक शब्द है जिसका अर्थ है 'प्रकट करना' या 'प्रकाशित करना' । मित्रो, बताया जाता है कि एपिफनी का त्योहार क्रिसमस या बड़ा दिन कहे जाने वाले 25 दिसंबर से भी पुराना त्योहार है। इस त्योहार को इस बात को याद किया जाता है कि इसी दिन तीन मजूषियों ने एक तारा देखा और उसके इशारे पर उन्होंने येसु को पहचाना।


तीन ज्ञानियों के उपहार
मित्रो, आज के सुसमाचार में मुझे एक बात बहुत ही प्रभावकारी लगी। वह थी तीन ज्ञानियों की दृढ़ इच्छा प्रभु को पाने की। मित्रो, कई बार पहले भी मैंने इस पाठ पर मनन किया था पर मैंने इस बात पर विचार किये थे कि पूरब के तीन राजाओं ने येसु को क्या-क्या उपहार दिये। कई लोगों के विचार भी मैने सुने और पाया कि उनके विचार उपहारों पर केन्द्रित थे। यह सही भी है कि पंडितों ने येसु के लिये सर्वोत्तम उपहार लाया था।


तीव्र इच्छा
पर मित्रो, अगर हम ज्ञानियों के जीवन पर मनन करेंगे तो हम उनके जीवन में तीन बातों की झलक देखते हैं। पहली तो है कि वे येसु की खोज में लगे हुए थे। वे चाहते थे कि अपने जीवन में वे ईश्वर को जानें देखे और उन्हें अपना सर्वस्व दान कर दें। मित्रो, किसी भी अच्छे कार्य को पूरा करने के लिये जो गुण होने चाहिये वह है उस अच्छाई को पाने की तीव्र इच्छा। अगर हममें तीव्र इच्छा है कि हम अपने जीवन में प्रभु को पायें तो हम प्रभु को अवश्य ही पायेंगे। प्रभु प्रकाश की दूसरी बात जो मुझे अच्छी लगती है वह है कि जब हमारे मन-दिल में अच्छे विचार आ जाते हैं तो उसे पूरा करने के लिये ईश्वर अनेक उपाय कर देते हैं। वे इसके लिये हमें अनेक तारों को भेजते हैं और कई बार तो चमकीले तारे को भेजते हैं ताकि हम उसके इशारे के सहारे अपने गंतव्य स्थान तक पहुँच सकें। कभी-कभी हम सोचते हैं कि चमकीला तारा प्राचीन काल ही मे ही दिखाई पड़ता था आज हमारे मार्गदर्शन के लिये कोई नहीं है। पर यह बात सच नहीं है। प्रभु जब से इस धरा पर आये हैं हमारा मार्गदर्शन करते ही रहे हैं। कई बार वे हमें अपने मित्रों के द्वारा कई बार हमारे माता-पिताओं के द्वारा कई बार हमारे गुरुजनों के द्वारा तो कई बार हमारी आत्मा ही हमें बताती है कि हमें क्या करना चाहिये। यह हमें बताती है कि हमें किधर जाना है ताकि हम प्रभु को प्राप्त कर सकें । कई बार हम सफलतायें प्राप्त करते हैं पर कई बार हम अपनी मानवीय कमजोरी के शिकार हो जाते हैं और मार्ग से भटक जाते हैं।




नम्रता
मित्रो, अगर हम ज्ञानियों की दूसरी खूबी के बारे में विचार करें तो हम पायेंगे कि इन ज्ञानियों की दूसरी विशेषता थी वह है उनकी नम्रता। ये तीनों ज्ञानी तो थे पर घमंडी नहीं थे। सच पूछा जाये तो हम उन्हें इसी लिये ज्ञानी कह सकते हैं क्योंकि उनमें नम्रता का गुण कूट-कूट कर भरा हुआ था। जब कभी उन्हें लगा कि वे अपने मार्ग से भटक रहे हैं वे दूसरों से पूछते हैं कि उन्हें क्या करना है। मित्रो, आपने गौर किया होगा कि वे आम लोगों से तो पूछते हैं येसु को पाने के लिये राजा हेरोद के पास जाने से भी उन्हें कोई हिचक नहीं हुई। उन्होंने पूरे विश्वास के साथ राजा हेरोद से पूछा कि यहूदियों को नवजात राजा कहाँ है। मित्रो, सच पूछा जाये तो यह काम आसान नहीं था। एक राजा से ही यह पूछना कि वहाँ का राजा कौन है। और जैसा हमें जानकारी दी गयी है कि राजा हेरोद इससे भयभीत हुआ। उसने अपने मन में ठान ली कि वह उस नये राजा को जीवित नहीं छोड़ेगा। ज्ञानियों के राजा हेरोद के पास जाना यही दिखाता है कि ये तीन मजूषी हर हालत में चाहते थे कि वे येसु को पायें। मित्रो, अब तक हमने विचार किये हैं कि तीन राजाओं में कौन-कौन से दो महान् गुण थे जिनके कारण उन्होंने अन्त में येसु को पाया। पहला गुण था उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति, दूसरा गुण है उनकी विनम्रता।

समर्पण
मित्रो, ज्ञानियों का तीसरा गुण था उनका समर्पण। येसु को खोजना उसके पाने के लिये विनम्र होना दो महत्त्वपूर्ण गुण हैं पर इनसे भी एक और बड़ा गुण इन तीनों में विद्यमान था वह है उनका समर्पण। मित्रो, मेरा विश्वास है कि आपने गौर सुना होगा कि किस तरह से तीनों राजाओं ने येसु को पाने के बाद सोना लोबान और गंधरस की भेंट चढ़ायी। अपने दान देने के पहले उन तीनों ने येसु को साष्टांग प्रणाम किया। यह यही दिखाता है कि येसु के बारे में सिर्फ़ जानकर ही वे संतुष्ट नहीं हुए । उन्होंने यह निश्चित कर लिया कि वे अपना सारा जीवन येसु के लिये ही समर्पित कर देंगे। मित्रो, आज दुनिया की समस्या यह नहीं है कि हम सत्य अच्छी और भली बातों को नहीं जानते हैं। हम इन्हें जानते हैं पर समस्या है हम सत्य के लिये न्याय के लिये भलाई के लिये अपने आपको समर्पित नहीं कर पाते हैं।

येसु की प्राप्ति
मित्रो, प्रभु प्रकाश का त्योहार आज हमें बुला रहा है। आसमान का तारा हमें टिमटिमाकर ललकार रहा है और इशारा कर रहा है कि प्रभु येसु का जन्म हुआ। कह रहा है कि अंधकार का अन्त हो गया है। वह यह भी कह रहा है कि अगर हम जीवन के चमकीले भले और सच्चे तारे के पीछे चलते रहेंगे तो हम येसु के पास अवश्य ही पहुँचेंगे। और यह सच भी है मित्रो,, अगर व्यक्ति के पास दृढ़ इच्छा शक्ति है नम्रता है और समर्पण है तो वह कैसे अंधकार में भटक सकता है। उसे तो जीवन की सच्ची शांति खुशी और संतुष्टि तो मिलेगी ही। अगर नसीरुद्दीन के समान नहीं जो अपनी चाभी को गलत ज़गह में खोज रहा था पर पूरब के उन ज्ञानियों की तरह येसु की खोज सही निर्देश पर सही मार्ग पर और सही स्थान में खोजें तो हम प्रभु के प्रकाश से प्रकाशित होंगे ही।








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