क्रिसमस के उपलक्ष्य में रोमी कार्यालय के धर्माधिकारियों के लिए संत पापा का संदेश
वाटिकन सिटी 21 दिसम्बर 2012 (सेदोक, वी आर वर्ल्ड) संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने क्रिसमस
के उपलक्ष्य में रोमी कार्यालय के अधिकारियों को शुक्रवार को दिये गये सम्बोधन में कहा
कि परिवार की रक्षा स्वयं मानव की अपनी रक्षा है और यह स्पष्ट होता है कि जब ईश्वर को
इंकार किया तो मानव की प्रतिष्ठा भी लुप्त हो जाती है। यह रिपोर्ट जिसे बहुधा संत
पापा का " स्टेट ओफ द चर्च " अड्रेस भी कहा जाता है इसमें संत पापा ने इस वर्ष सम्पन्न
प्रमुख कलीसियाई घटनाओं का जिक्र किया। उन्होंने मेक्सिको और क्यूबा की प्रेरितिक यात्रा
को विश्वास की शक्ति का अविस्मरणीय साक्षात्कार कहा। इटली के मिलान में आयोजित परिवारों
के विश्व दिवस समारोह, लेबनान का दौरा तथा मध्य पूर्व के धर्माध्यक्षों की धर्मसभा के
बाद तैयार किये गये प्रेरितिक उदबोधन का लोकार्पण, नवीन सुसमाचार प्रचार पर विश्व के
धर्माध्यक्षों की धर्मसभा, विश्वास वर्ष का उदघाटन तथा द्वितीय वाटिकन महासभा के आरम्भ
होने की 50 वीं वर्षगाँठ का उन्होंने स्मरण किया। संत पापा ने कहा कि ये सब घटनाएँ
इतिहास के इस क्षण के मौलिक शीर्षकों के बारे में कहते हैं - परिवार (मिलान), विश्व में
शांति की सेवा तथा विभिन्न धर्मों के मध्य संवाद (लेबनान), हमारे दैनिक जीवन में येसु
के संदेश की उदघोषणा उन लोगों के लिए करना जिन्होंने अबतक येसु का साक्षात्कार नहीं किया
है तथा अनेक लोग जो बाहर से येसु को जानते हैं लेकिन वस्तुतः उन्हें नहीं पहचानते या
स्वीकार नहीं करते हैं। उन्होंने विशेष रूप से परिवार तथा संवाद की प्रकृति पर अपना सम्बोधन
केन्द्रित रखा। संत पापा ने कहा कि मिलान की बैठक ने दिखाया कि आज भी परिवार मजबूत
और जीवंत हैं। लेकिन इससे इंकार नहीं है कि संकट की अवस्था है जो इसकी नींव के लिए ही
खतरा है, विशेष रूप से पाश्चात्य देशों में। संत पापा ने माना कि आज की दुनिया में व्यापक
रुप से विद्ममान " समर्पण करने से इंकार, " स्वतंत्रता और आत्म सिद्धि की एक झूठी समझ
तथा पीड़ा से बचने की इच्छा पारिवारिक जीवन के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से हैं। संत
पापा ने रेखांकित किया कि केवल आत्म दान में ही मनुष्य मानवता की गहराई की खोज करता है।
जब इस प्रकार के समर्पण को कम आंका जाता है तो मानव अस्तित्व की प्रमुख छवियां जैसे-
माता, पिता, बच्चे होने का अपरिहार्य तत्व तथा मानव होने की भावना विलुप्त होने लगती
हैं। परिवार के लिए परवाह और चिंता केवल काथलिक कलीसिया की नहीं है। संत पापा ने संवाद
करने के तीन प्रमुख क्षेत्रों पर कहा कि मानव और मानवजाति के हर संघर्ष में कलीसिया
उपस्थित रहे। सरकार, समाज के साथ संवाद करे जिसमें संस्कृति और विज्ञान तथा अंततः धर्मों
के साथ संवाद हो। यह सहअस्तित्व से जुड़ी ठोस समस्याओं तथा समाज, देश और मानजाति के बारे
में है। इस प्रकिया में एक दूसरे को स्वीकार करने के लिए सीखना नितांत जरूरी है। इस लक्ष्य
हेतु न्याय और शांति की साझेदार जिम्मेदारी मनपरिवर्तन का मार्गदर्शक सिद्धांत हो। संत
पापा ने कहा कि शांति और न्याय का संवाद केवल व्यावहारिकता से नैतिक मूल्यों की खोज मात्र
नहीं हो। उन्होंने अन्य धर्मों के साथ संवाद के बारे में दो बुनियादी नियमों के बारे
में कहा- संवाद का लक्ष्य धर्मपरिवर्तन नहीं लेकिन समझदारी है। इस अर्थ में यह सुसमाचार
प्रचार और मिशन से भिन्न है। दूसरा, दोनों पक्ष अपनी-अपनी अस्मिता के प्रति सचेत रहते
हैं तथा संवाद, सवाल के स्थान पर नहीं है। संत पापा ने सुसमाचार प्रचार पर अपने चिंतन
को समाप्त करते हुए कहा कि वचन की उदघोषणा उन परिस्थितियों में प्रभावी है जहां मनुष्य
तत्परता की भावना में सुन रहा है कि ईश्वर उसे अपने समीप लेंगे। जहाँ मानव आंतरिक रूप
से खोज कर रहा है वह अपने प्रभु की ओर जाने के पथ में है।