2012-12-04 15:41:17

ख्रीस्तायन नामक 6 घंटों वाली हिन्दी फिल्म रिलीज


इंदौर भारत 4 दिसम्बर 2012 (ऊकान)- प्रभु येसु पर एक काथलिक पुरोहित द्वारा हिन्दी भाषा में निर्मित 6 घंटों वाली फिल्म 2 दिसम्बर को इंदौर में रिलीज की गयी। इस फिल्म को बनाने में 7 वर्ष लगे। इस फिल्म को बनाने में लगभग दो सौ प्रशिक्षु कलाकारों और तकनीकि स्टाफ ने काम किया। दिव्य शब्द संघ पुरोहित जेओ जोर्ज एसडीबी की अनोखी फिल्म का नाम " ख्रीस्तायन " रखा गया है जिसका अर्थ है ख्रीस्त के अनुयायी। फिल्म के अधिकांश भाग की सूटिंग मध्य प्रदेश में की गयी है लेकिन कलाकारों की टीम ने भारत के उत्तरपूर्वी प्रांतों सहित दस राज्यों का दौरा किया। इस टीम में 200 से अधिक लोग शामिल हुए जो वैज्ञानिक, प्रोफेसर, डाक्टर, शिक्षक, सामाजिक कार्यकर्त्ता, किसान, नास्तिक, विद्यार्थी, मीडियाकर्मी, पुरोहित तथा धर्मबहनें हैं। हिन्दु युवक अंकित शर्मा ने येसु की भूमिका का रोल निभाया है। कलाकारों के 80 प्रतिशत से अधिक लोग फ्रेंडस ओफ जीजस हैं जो दूसरे धर्मों के हैं।
ख्रीस्तायन नामक फिल्म में भारतीय सामाजिक सांस्कृतिक पृष्ठभूमि तथा भारतीय संगीत का सौंदर्य शामिल है। इसमें हाल के कुछ श्रेष्ठ गीतकारों और संगीतकारों ने योगदान दिया है। फादर जोर्ज ने फिल्म की पटकथा लिखी तथा कलाकारों के परिधानों और मेककप का सुपरविजन किया।
उन्होंने कहा कि येसु जीवित और प्यारे ईश्वर हैं, हमारे साथ और हममें उपस्थित हैं। इसलिए हमें उन्हें हमारे मध्य भारतीय के रूप में अनुभव करने की जरूरत है। सार्वभौमिक ख्रीस्त में इस विश्वास को सामाजिक सांस्कृतिक विश्वदर्शन के तहत फिल्मांकित किया गया है। उन्होंने कहा कि एशिया संदर्भ में इस फिल्म का निर्माण करने की अवधारणा उनके मन में तब आयी जब वे ईशशास्त्र के विद्यार्थी थे और देहधारण के अर्थ के बारे में जानकारी पाया।
फादर जोर्ज ने कहा कि दुनिया भर में धर्मों को क्या हो रहा है इसे जानने की उनकी इच्छा तथा विभिन्न सम्प्रदायों का विभाजन, अफवाहों, फतवों, धर्म निष्कासनों, चरमपंथ तथा धर्म के नाम पर होनेवाली हत्याएँ इन सबने फिल्म बनाने के लिए उनके जुनून को और बढावा दिया। उन्होंने कहा कि फिल्म में येसु को ऐसे नबी के रूप में प्रस्तुत किया गया है जो महिलाओं का सशक्तिकरण तथा उन्हें समाज में मर्यादापूर्ण स्थान देने के लिए समर्पित हैं। येसु जिन्हें पर्यावरण की परवाह है, तथा जो शोषितों की रक्षा करते एवं आशावाद और सकारात्मक मनोवृत्ति का पाठ पढ़ाते हैं।
हिन्दु शिक्षाशस्त्री नीतू जोशी ने कहा कि इस फिल्म को 50 साल पहले बनाया जाना चाहिए था। यह फिल्म ख्रीस्त और ईसाईयत के बारे में फैली अनेक भ्रांतियों और गलत धारणाओं को दूर करेगी।








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