न्याय और शांति के लिये बनी परमधर्मपीठीय परिषद को संत पापा का संबोधन
वाटिकन सिटी, 3 दिसंबर, 2012 (सेदोक, वीआर) संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने 3 दिसंबर,
सोमवार को न्याय और शांति के लिये बनी परमधर्मपीठीय परिषद को संबोधित करते हुए कहा, "संत
पापा धन्य जोन पौल द्वितीय द्वारा सिखाये गये सामाजिक सिद्धांत कलीसिया के मिशन के अभिन्न
अंग हैं। आज हम उन्हें नये सुसमाचार प्रचार का भी महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं।" संत
पापा ने कहा, "द्वितीय वाटिकन महासभा के आरंभ होने के 50 वर्ष पूरे होने और विश्वास
के वर्ष में धर्माध्यक्षों की महासभा ने इस वर्ष को नये सुसमाचार प्रचार के लिये समर्पित
किया है। हमें चाहिये कि हम येसु मसीह और उसके सुसमाचार को व्यक्तिगत जीवन में तो स्वीकार
करें ही, सामाजिक संबंधों में में भी मानव दर्शन, मानव मर्यादा, स्वतंत्रता और रिश्तों
के साक्ष्य बनें।" संत पापा ने कहा, "अधिकार और कर्तव्य मात्र मानव के सामाजिक चेतना
के आधार नहीं हैं पर मुख्य रूप से वे प्राकृतिक नैतिक नियम पर आधारित है जिसे ईश्वर ने
प्रत्येक व्यक्ति के ह्रदय में लिख दिया है।" पोप ने कहा, "आज के युग की व्यक्तिगत
उपयोगितावादी प्रवृति मानव के महत्व को कम करते जान पड़ते हैं। अगर मानव एक ओर मानव की
मर्यादा की आवाज़ उठाता और दूसरी ओर नयी विचारधारा जैसे सुखवादिता, यौन और प्रजनन अधिकार
और राजनीति में अनियमित आर्थिक पूँजीवाद के अनुसार चलता है तो इससे समाज, विशेष करके
परिवार की प्राकृतिक नींव होती है।"
नये सुसमाचार से पूरे समाज को नयी मानवता
और संस्कृति प्राप्त होगी जो व्यक्तिवाद, उपभोक्तावादी, भौतिकवाद और तकनीकितंत्रवाद को
बदलकर भ्रातृत्ववाद उदारता, स्नेह और सहयोग की सस्कृति प्रदान करेगा। उन्होंने कहा
कि धन्य जोन तेईसवें ने कहा था कि एक ऐसे विश्व परिवार की स्थापना करें जिसका आधार हो
प्रेम - एक ऐसा प्रेम जो सार्वजनिक हित की भावना से प्रेरित हो। संत पापा ने कहा
कि कलीसिया का यह कार्य नहीं है कि वे अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को कानूनी और राजनीतिक
सलाह दे पर निश्चिय ही इस बात के लिये ज़िम्मेदार है कि वह न्याय के मापदंड और जीवन उपयोगी
दिशानिर्देश तो अवश्य ही दे सकता है। संत पापा ने आशा व्यक्त की कि कलीसिया के सामाजिक
सिद्धांत नये सुसमाचार प्रचार को प्रभावकारी बनाने में मददगार सिद्ध होगा।