2012-12-02 20:03:53

वर्ष ‘स’ के आगमन का पहला रविवार 2 दिसंबर, 2012


येरेमियस 33, 14-16
1थेसलनीकियों के नाम पत्र 3, 12-4, 2
संत लूकस 21, 25-28, 34-36
जस्टिन तिर्की, ये.स.

एक ड्राइवर की कहानी
मित्रो, आज आप लोगों को मैं एक कहानी बताता हूँ जिसे अर्थर नामक एक धर्मगुरु ने बताया था। उन्होंने एक ड्राइभर की कहानी बतायी थी। ओकलाहोमा नामक एक ड्राइवर था। वह ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं था। उसके पिता ने उससे कहा कि वह गाड़ी चलाना सीख ले। उसने अपने पिता की बात मान ली और गाड़ी चलाना सीखा। जब उसे ड्राइविंग की लाइसेंस मिल गयी तब वह काम की तलाश करने लगा। एक कम्पनी ने उसे गाड़ी चलाने का काम दिया। वह रोज ऑफिस जाता और दिन भर गाड़िया चलाता था। वह पूरी लग्न से गाड़ी चलाता। रास्ते में सबका सम्मान करता और गाड़ी चलाने के बाद वह बड़े ही सम्मान के साथ गाडी को गाराज़ में रख देता था। उसने कभी भी गाड़ी चलाने के कार्य को एक बोझ नहीं समझा । वह सुबह से शाम तक गाड़ी चलाता और शाम को घर आता। फिर दूसरी सुबह उतनी ही उत्साह से गाड़ी निकालता और गाड़ी को साफ-सुथरा करता और फिर लोगों की सेवा में गाड़ी चलाने लग जाता। जब वह 23 साल गाड़ी चलाने के बाद सेवामुक्त हुआ तो उसकी मालिक के कम्पनी ने उसे पुरस्कार दिया। पुरस्कार देते हुए मालिक ने कहा कि ओकलाहोमा ने 23 सालों में 9 लाख किलोमीटर की दूरी तय की है। और सबसे बड़ी बात तो यह कि उसने इस दूरी में कभी भी न दुर्घटना का शिकार हुआ न किसी को अपनी गाड़ी से दुर्घटना का शिकार बनाया। उसके मालिक ने उससे कहा कि वह बधाई का पात्र है। पुरस्कार देने के बाद ओकलाहोमा से पूछा गया कि उसके अच्छे और सुरक्षित ड्राइविंग का क्या राज है? ओकलाहोमा ने सिर्फ एक वाक्य में जवाब दिया। ‘रास्ते को देख कर गाड़ी चलाओ’। मित्रो, ध्यान देकर चलने, सावधान रहने सोच-विचार कर निर्णय लेकर आगे बढ़ने से हम तो सुरक्षित होते ही हैं और यह जग भी सुरक्षित हो जाता है और हम अपने गंतव्य स्थान तक सकुशल पहुँच पाते हैं।
मित्रो, रविवारीय आराधना-विधि चिन्तन कार्यक्रम के अंतर्गत पूजन-विधि पंचांग के आगमन के पहले रविवार के लिये प्रस्तावित पाठों के आधार पर हम मनन-चिंतन कर रहे हैं। आज प्रभु हमें बताते हैं कि हमें सावधान रहना है। हमें ध्यान देकर अपना कदम बढ़ाना है और उन्हीं बातों को करना है जिससे हम सुरक्षित पिता के पास पहुँचें। आइये, आज हम संत लूकस रचित सुसमाचार को सुनें जिसे 21वें अध्याय के 25 से 36 पदों से लिया गया है।
संत लूकस 21, 25-36
सूर्य, चंद्रमा और तोरों में चिह्न प्रकट होंगे। समुद्र के गर्जन और बाढ़ से व्याकुल हो कर पृथ्वी के राष्ट्र व्यथित हो उठेंगे। लोग विश्व पर आने वाले संकट की आशंका से आतंकित होकर निष्प्राण हो जायेंगे, क्योंकि आकाश की शक्तियाँ विचलित हो चायेंगी। तब लोग मानव पुत्र को अपने सामर्थ्य और महिमा के साथ बादल पर आते हुए देखेंगे। जब ये बाते होने लगेंगी, तो उठ कर खड़े हो जाओ और सिर ऊपर उठाओ, क्योंकि तुम्हारी मुक्ति निकट है। सावधान रहो कहीं ऐसा न हो कि भोग-विलास, नशे और इस संसार की चिन्ताओं से तुम्हारा मन कुण्ठित न हो जाये और वह दिन फन्दे की तरह अचानक तुम पर आ गिरे। क्योंकि वह दिन समस्त पृथ्वी के सभी निवासियों पर आ पड़ेगा। इसलिए जागते रहो तुम उन सब आने वाले संकटों से बचने और भरोसे के साथ मानव पुत्र के सामने खड़े होने योग्य बन जाओ।
मित्रो, मेरा पूरा विश्वास है कि आप लोगों आज के प्रभु के वचनों को ध्यान से सुना है और आपके द्वारा प्रभु के वचन को सुनने से आपके परिवार के सदस्यों को प्रभु की कृपा अवश्य ही मिलेगी। मित्रो, कई बार हम इस बात पर विचार नहीं करना चाहते हैं कि प्रभु आने वाले हैं। हमने लोगों को प्रभु के प्रथम आगमन के बारे में बड़े उत्साह से बातें करते हुए सुना है पर जब भी प्रभु के दूसरे आगमन के बारे में बातें की जातीं हैं तों व्यक्ति को भय होता है। मित्रो, आज के सुसमाचार पर अगर आपने ध्यान दिया होगा तो पाया होगा कि आज के पाठ हमें येसु के पहले आगमन की तैयारी के रूप में दिये गये हैं पर येसु के दूसरे आगमन के बारे में भी बातें करते हैं।



अपना ख़्याल रखें
मित्रो, काथलिक कलीसिया के पूजन विधि के अनुसार हम येसु के आगमन के पहले रविवार के पाठों पर मनन-चिन्तन कर रहे हैं। आज के पाठों के द्वारा हमें जिस बात को विशेष तौर पर बताना चाहते हैं वह है कि हम सावधान रहें। प्रभु हमें कहते हैं कि हमारा ध्यान उन बातों पर लगा रहे जो हमें जीवन देते हैं। मित्रो, आपने मैं याद करता हूँ जब कभी मैं अपने घर छोड़ता था तो मेरी माँ मुझसे कहा करती थी ठीक से रहना या कहा करती थी पढ़ाई लिखाई पर ध्यान देना। मित्रो, कई बार हमने इन बातों को ध्यान नहीं दिया पर आज जब मैं इस पर गौर करता हूँ तो मुझे लगता है कि यह चेतावनी मात्र नहीं है। अगर सच पूछा जाये तो ‘सावधान रहो’ कहने में बोलने वाले का प्यार है, उसकी कामना है और उसकी प्रार्थना भी है। मित्रो, अगर कोई व्यक्ति के दिल में हमारे लिये ये तीन बातें हैं तो और हमारे रिश्ते में और क्या की कमी हो सकती है। इन तीन बातों को लेकर ही तो हमारा संबंध दूसरे व्यक्ति से मजबूत होता है। और अगर हम सब लोगों के साथ इसी प्रकार का संबंध बनाते जाते हैं तो ये जग भी कितना सुन्दर बन जायेगा।
मित्रो, मैंने तो आपलोगों को मेरी माँ के बारे में बताया। पर सत्य तो यह है कि अलग-अलग भाषाओं में लोग इसी सावधान रहो की बात को अपने-अपने तरीके से प्रस्तुत करते हैं। अंग्रेजी में भी लोग कहते हैं ‘टेक केर’ अर्थात् ‘अपना ख्याल रखिये’। दूसरी भाषाओं और संस्कृति में भी लोग इसी बात को कई तरह से व्यक्त करते हैं। कोई कहते हैं ध्यान रहे कोई कहते हैं अपना ख्याल करना कोई कहते स्वस्थ पर ध्यान देना संभल के चलना। मित्रो, ये बातें बहुत छोटी हैं पर अगर हम इन पर विचार करते हैं तो ये उन सब बातों को कह देती हैं जिसे एक व्यक्ति उसके लिये कहता है जिसकी वह चिन्ता करता है जिसे वह प्रेम करता है। मित्रो, आज जब मैंने प्रभु को इसी बात को बताते हुए सुना तो मुझे खुशी हुई। प्रभु आज हम से कह रहे हैं कि हम सावधान रहें। सावधान अर्थात् हम ध्यान देकर जीवन जीयें। इसका मतलब यह भी है कि हम जब भी कोई नया कदम उठायें हम सोच समझ कर ही उठायें। और हम उन्हीं बातों को करें जिसे करने के बाद हमें कोई पश्चात्ताप न हो।

समय बरबाद न करें
मित्रो, प्रभु तो बहुत ही स्पष्ट शब्दों में हमें बता रहे हैं कि हमें इस बात का ध्यान देना है कि हम खाते-पीते न रह जायें और अपना समय बरबाद न कर दें। प्रभु हमसे चाहते हैं कि हम उन्हीं बातों को करें जो उचित है और ईश्वर की नज़र में महत्त्वपूर्ण है।प्रभु चाहते हैं कि हम उन आदतों में न फसें जो हमें प्रभु से दूर ले जाती है। प्रभु हमसे कह रहे हैं कि यदि हमें प्रभु से मिलने के लिये तैयार होना है तो हमें चाहिये कि हम उसके लिये उन गुणों की माला बनायें जो प्रभु को पसंद आये। प्रभु चाहते हैं कि हमारा जीवन दुनिया की मोह माया और जंजाल में न फँसा रहे। मित्रो, आप हमें पूछेंगे कि कौन-सी बातें ऐसी हैं जो हमें ईश्वर से दूर करती है। मेरा तो अनुभव ऐसा है कि वैसी बातें जिन्हें करने के बाद हमारे दिल में खुशी नहीं मिलती है वैसी बातें जिससे सिर्फ़ मेरा कल्याण होता हो और दूसरों की क्षति होती हो। ऐसे कार्य जिससे हम सिर्फ अपने बारे में चिंता करने के जाल में फंसते जाते हैं। तो हम जान जायें कि इस प्रकार की स्वार्थी भावना से येसु प्रसन्न नहीं हो सकते हैं। अगर हम येसु के जीवन पर ही जरा गौर करें तो हम पायेंगे येसु का जीवन देने के लिये थे। येसु का जीवन था लोगों को परिपूर्ण करने के लिये । येसु का जीवन था लोगों को प्रेम शांति और न्याय का मार्ग दिखाने के लिये।
चुनौती-अच्छा भला व सच्चा बनना
मित्रो, जब हम मानव जीवन पर गौर करते हैं तो हम पाते हैं कि मानव की कमजोरी यह नहीं है कि वह यह नहीं जानता है कि उसे क्या करना है। उसकी कमजोरी यह भी नहीं है कि वह इसे नहीं कर सकता है। मानव की कमजोरी यह है कि वह इन सब बातों को जान कर भी उसे नहीं करता है। वह जानता है कि भला अच्छा और सच्चा कार्य करने से ही हम येसु के योग्य बनते हैं । ऐसा ईमानदारी का जीवन जीने से ही हम वास्तविक खुशी मिलती है पर हम या तो इसे नहीं करते हैं या तो हम इसे स्थगित कर देते हैं या हम अच्छे कार्यों के साथ समझौता करने लगते हैं कभी करते हैं या कभी नहीं करते हैं। और अगर हमने अपने जीवन से प्रभु का ध्यान हटा लिया तो हम जीवन के डगर से भटक जायेंगे। हम ईश्वर के योग्य नहीं बन पायेंगे।
इसीलिये प्रभु आज हमें आमंत्रित करते हुए कह रहे हैं कि तुम सावधान रहो तुम जागते रहो। अगर हम इसे उस ड्राइवर के शब्दों में बताना चाहेंगे जो कभी कोई दुर्घटना शिकार नहीं किया तो हम कह सकते हैं कि हमें अपने जीवन की गाड़ी को चलाना तो रास्ता देखकर ध्यान देकर और जागते हुए। अगर हमने ऐसा करना सीख लिया तो हम सदा ईश्वर के करीब रहेंगे और जब भी येसु आये हम न दुनिया से डरेंगे न ही इस दुनिया से विदा होने से और येसु के दूसरे आगमन से। हम सदा प्रभु के रहेंगे और प्रभु के लिये जीयेंगे और उसी के साथ अनन्तकाल तक राज्य करेंगे।








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