न्यूयॉर्क, 30 नवम्बर, 2012 (वीआर, अंग्रेज़ी) संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव बानकी
मून न कहा, "प्रत्येक राष्ट्र का यह दायित्व है कि वह उन राष्ट्रीय नीतियों को लागू करें
जिससे नारियों के विरुद्ध होने वाली हिंसा का अन्त हो।"
यूएन महासचिव ने उक्त
बात उस समय कही जब उन्होंने 28 नवम्बर को बुधवार को विश्व में मानवाधिकारों के हनन पर
रोक लगाने के लिये राष्ट्रों से अपील की।
उन्होंने कहा, "प्रत्येक संगठन, समुदाय
और व्यक्ति का यह दायित्व है कि वह नारियों के विरुद्ध होने वाली हिंसा, विचार धारा,
परंपरा और नीतियों का विरोध करे।"
नारियों और बालिकाओं के विरुद्ध होने वाली हिंसा
मानवाधिकार हनन का सबसे आम घटना है। बान-की-मून ने कहा कि 10 में 7 नारियों को अपने जीवन
काल में मारपीट, बलात्कार, दुर्व्यवहार या अपमान झेलना पड़ता है।
विदित हो कि
सन् 1999 में ही जेनरल असेम्बली ने 25 नवम्बर को नारियों के विरुद्ध हिंसा समाप्त करने
के लिये अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाने का आह्वान किया था। इस आह्वान के द्वारा उन्होंने इस
सरकारों अन्तरराष्ट्रीय संगठनों और स्वयं सेवी संस्थाओं से अपील की थी कि वे नारियों
पर हो रहे अत्याचार के विरुद्ध में जागरुकता फैलाने के लिये कार्य करें।
बान
की मून ने कहा, "प्रत्येक व्यक्ति और राष्ट्र का यह दायित्व है कि वह इससे संबंधित कानून,
नीति और योजनाओं को सशक्त बनाये ताकि उन नारियों को न्याय मिल सके जिन्हें हिंसा या प्रताड़ना
का सामना करना पड़ा हो।"
महासचिव ने कहा कि हिंसा उन सामाजिक मनोभावों से उत्पन्न
होते हैं जो नारियों और बालिकों को नाचीज़ समझते हैं। यह भय, उदासीनता और अनभिज्ञता के
कारण बढ़ता जाता है और यह इसलिये आगे बढ़ता है क्योंकि परिवार और समुदाय इस नारियों का
भाग्य मानते हैं। इसीलिये नारियाँ भी ऐसी हिंसा को चुपचाप सहती चली जातीं हैं।
महासचिव
ने उन सरकारों की सराहना की जिन्होंने ‘युनाइट’ नामक योजना का समर्थन किया है इसके तहत्
वे सन् 2008 में नारी संगठनों द्वारा आरंभ किये गये अभियान का समर्थन करेंगे ताकि नारियों
को हिंसा से बचाया जा सके और हिंसा करने वालों को सजा मिल सके।