वाटिकन सिटी, 26 नवम्बर, 2012 (सीएनए) वाटिकन सेक्रेटरी ऑफ स्टेट कार्डिनल तारचिसियो
बेरतोने ने एक पत्र प्रेषित कर पुरोहितों और धर्मसमाजियों से अपील की है कि वे येसु के
पुरोहित रूप में अपने परिधान धारण करें।
कार्डिनल बेरतोने ने उक्त आधिकारिक पत्र
15 अक्तूबर को लिखे पर इसे वाटिकन पर्यवेक्षक और पत्रकार सान्द्रो मजिस्तेर द्वारा पूरे
रोमन कूरिया के लिये 19 नवम्बर को प्रकाशित किया गया।
पत्र में कहा गया है कि
वाटिकन में कार्यरत पुरोहित और धर्मसमाजी का कर्तव्य है कि मौसम के अनुसार वे पूरी मर्यादा
के साथ अपने धर्मसमाजी वस्त्र धारण करें।
वाटिकन ने पत्र की प्रति वाटिकन के
सभी विभागों को भेज दी है।
‘साला स्ताम्पा’ के अन्द्रेया तोरनियेली ने इस पत्र
के बारे मे अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि वाटिकन द्वारा प्रेषित पत्र सीधे तौर पर
वाटिकन में कार्यरत पुरोहितों और धर्मसमाजियों को संबोधित किया गया है पर इसका प्रभाव
वाटिकन परमधर्मपीठ की दीवारों तक ही सीमित नहीं है।
उन्होंने कहा कि पुरोहितों
और धर्मसमाजियों से अपने धर्मसमाजी परिधान पर ध्यान दिलाकर वाटिकन चाहती है कि वे उनके
लिये उदाहरण बनें जो बाहर से एक तीर्थयात्री रूप में रोम आते हैं।
कार्डिनल बेरेतोने
का पत्र धन्य जोन पौल द्वितीय के उस पत्र की याद दिलाता है जिसे उन्होंने सन् 1982 में
लिखा गया था जिसमें उन्होंने अपने विकर से अपील की थी कि वे कलीसियाई धर्मसमाजी वस्त्र
पर एक अध्ययन करें ताकि इसे लागू करने की पहल की जा सके।
कार्डिनल बेरतोने ने
धर्मध्यक्षों से भी अपील की है कि वे वाटिकन कार्यालयों में अपने धर्माध्यक्षीय परिधान
पहनें ताकि यह दूसरों के लिये भला नमूना प्रस्तुत करें।
कार्डिनल ने कहा कि
कार्डिनल और धर्माध्यक्ष ‘कैसोक’ और ‘कलर्जी कॉलर’ पहनें, मोन्सिन्योर काला सुटान और
सफेद कॉलर और पुरोहित ‘कैसोक और केप’ ( धर्मसमाजी लबादा और गले का वस्त्र) पहनें।
विदित
हो कि कार्डिनल बेरेतोने के नये ज्ञापन सन् 1994 के पत्र के साथ मिलाकर समझने की आवश्यकता
है जिसमें पुरोहितों एवं धर्मसमाजियों के जीवन और मिशन की चर्चा की गयी है। इसमें कहा
गया है कि कि धार्मिक रूप से ‘उदासीन’ और ‘उपभोक्तावादी’ समाज के लिये यह और ही अधिक
महत्वपूर्ण है कि पुरोहित और धर्मसमाजी, समुदाय के द्वारा आसानी से पहचाने जायें। उनका
परिधान उनके ईश्वरीय होने और उसके संस्कारों को बाँटने वाले के रूप में उनके समर्पण
की की एक विशेष पहचान है।
उन्होंने कहा, "पुरोहित मुख्यतः अपने व्यवहार से पहचाने
जाते हैं पर उनका परिधान विश्वासियों तथा अन्य लोगों को इस बात की मदद देता है कि वे
ईश्वर और कलीसिया के कार्यकर्ता है।"