यूरोप में जेल प्रशासन के निदेशकों के सम्मेलन के प्रतिभागियों के लिए संत पापा का संदेश
वाटिकन सिटी 22 नवम्बर 2012 (सेदोक) संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने यूरोपीय संघ में
जेल प्रशासन के निदेशकों के 17 वें कांफ्रेस के लगभग 200 प्रतिभागियों को वाटिकन स्थित
क्लेंमेंटीन सभागार में 22 नवम्बर को सम्बोधित किया। उन्होंने कहा कि आपराधिक न्याय से
जुडे मामले जनता और सरकार की ध्यान में बराबर लाये जाते रहे हैं विशेष रूप से ऐसे समय
में जब आर्थिक और सामाजिक असमानता तथा बढ़ते व्यक्तिवाद के कारण अपराध की जड़ों को पोषण
मिल रहा है। न्यायिक प्रक्रिया के दौरान अपराध और सज़ा से जुडे न्यायिक पहलूओं तक वाद
विवाद को सीमित करने का झुकाव होता है ताकि तथ्यों के अनुरूप शीघ्रतापूर्वक परिणाम या
सज़ा के फैसले तक पहुँचा जा सके। न्यायपालिका द्वारा दिये गये सज़ा को किस प्रकार लागू
किया जाता है इस पर कम ध्यान दिया जाता है। न्याय के मापदंड में मानवीय प्रतिष्ठा और
मानवाधिकारों के अपरिहार्य तत्व भी हैं। संत पापा ने कहा कि न केवल सिद्धांत के
रूप में लेकिन अपराध या गलती करनेवाले की प्रतिष्ठा और उसे समाज में पुनः स्थापित करने
की दृष्टि से पुनःप्रशिक्षण के लिए ठोस समर्पण की जरूरत है। जेल में पुर्नवास तथा परिपक्वता
की प्रक्रिया से गुजरने के लिए कैदी की निजी जरूरत के साथ ही यह वास्तव में समाज की भी
अपनी जरूरत है क्योंकि बाद में समाज जनहित के लिए उसके योगदान को फिर से पा सकता है और
इस प्रकार की प्रक्रिया कैदी को फिर से अपराध करने से रोकती तथा समाज के लिए कम खतरा
बनाती है। इस दिशा में हाल के बरसों में काफी प्रगति हुई है तथापि बहुत कुछ किया जाना
शेष है। संत पापा ने कहा कि जेल के वातावरण को और अधिक प्रतिष्ठामय बनाने, कैदियों
के प्रशिक्षण को समर्थन देते हुए और अधिक वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराये जाने का सवाल मात्र
नहीं है लेकिन मानसिकता में परिवर्तन की भी जरूरत है ताकि कैदियों के मानवाधिकारों के
प्रति सम्मान पर होनेवाला वाद विवाद न्याय को वास्तव में लागू करने से जुड़ा हो।
संत
पापा ने कहा कि न्याय का अभ्यास करने में दोषी पाये व्यक्ति को केवल सज़ा दी जाये लेकिन
यह जरूरी है कि सज़ा देते समय उन्हें ठीक करने तथा सुधार करने के लिए यथासंभव उपाय किये
जायें। यह मह्तवपूर्ण है कि कारावास ऐसी परिस्थिति को जन्म न दे कि पुर्नप्रशिक्षण की
भूमिका शिक्षा विरोधी हो जाये तथा विरोधाभास रूप में अपराध करने के झुकाव को बढावा दे
और यह समाज के लिए खतरा बने। संत पापा ने प्रतिभागियों से कहा कि जेल प्रशासन के
निदेशक होने के नाते वे उनके साथ सार्थक योगदान दे सकते हैं जो समाज में न्याय के प्रसार
के लिए जिम्मेदार हैं। उन्होंने कहा कि जेल प्रशासन के अधिकारियों की भूमिका सांसदों
से भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि पर्याप्त संरचनाएं और संसाधन होने के बावजूद
पुर्नप्रशिक्षण की रणनीतियों की प्रभावशीलता उनकी संवेदनशीलता, क्षमता और सजगता पर निर्भर
करती है। जेल अधिकारियों का काम वह चाहे किसी भी स्तर हो आसान नहीं है। इसलिए जेल प्रशासन
से जुड़े सबलोगों के समर्पण और सजगता से डयूटी करने की वे सराहना करते हैं। संत पापा
ने कहा कि जेल में कैदियों की स्थिति पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है जो अपने जीवन
के अर्थ तथा निजी प्रतिष्ठा के मूल्य को खोने के महान खतरे में होते हैं तथा निराश और
निरूत्साह हो सकते हैं। जेलों में विदेशी कैदियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए व्यक्ति
के प्रति गहन सम्मान, कैदियों के पुर्नवास के लिए समर्पण तथा शिक्षित समुदाय को बढ़ावा
देने की जरूरतें पहले से कहीं अधिक बढ़ गयी हैं। संत पापा ने कहा कि कैदियों की ओर से
भी प्रशिक्षण की अवधि में जेल अधिकारियों और संस्थानों के साथ सहयोग करने की इच्छा होना
जरूरी है। लेकिन आशा करने और प्रतीक्षा करना पर्याप्त नहीं होगा और कैदियों को अकेलेपन
और व्यर्थ होने के भाव से बाहर निकालने के लिए पहल और प्रयास किये जाने होंगे। ऐसी परिस्थिति
में आध्यात्मिक सहायता और सुसमाचार के रूपों का प्रसार महत्वपूर्ण है जो कैदियों में
विद्यमान गहन और अच्छे पहलूओं को बाहर निकाले, सौंदर्य की इच्छा तथा जीवन के लिए उत्साह
को जगाये ताकि वे अपने अंदर ईश्वर के प्रतिरूप होने की छवि को पुनः पा सकें। संत
पापा ने कहा कि जहाँ नवीनीकरण की संभावना के लिए विश्वास है तो जेल में पुर्नप्रशिक्षण
के कार्य किये जा सकते हैं और ये ऐसे अवसर बन सकते हैं कि पास्काई रहस्य के माध्यम से
ख्रीस्त द्वारा अर्जित मुक्ति जो बुराई पर विजय की गारंटी देती है इसका स्वाद कैदी भी
पा सकते हैं।