प्रेरक मोतीः सन्त जोसाफाट कुनसेविच (1580 ई. -1683 ई.)
वाटिकन सिटी, 12 नवम्बर सन् 2012:
सन्त जोसाफाट कुनसेविच का जन्म पोलैण्ड के व्लादीमीर
में, 1580 ई. में, हुआ था। उन्हें ख्रीस्तीय एकता के शहीद कहा जाता है। सन् 1604 ई. में,
जोसाफाट ने लिथुआनिया स्थित बाज़िलियन मठ में प्रवेश किया तथा सन् 1609 ई. में वे बीज़ेनटाईन
रीति के काथलिक पुरोहित अभिषिक्त किये गये।
रोम की काथलिक कलीसिया से अलग होने
वाले पूर्वी रीति की कलीसिया के सदस्यों को उन्होंने ख्रीस्तीय एकता का पाठ पढ़ाया था
जिसके परिणामस्वरूप यूक्रेन, लिथुआनिया तथा बेलारूस के अनेक ख्रीस्तीयों ने काथलिक कलीसिया
के परमाध्यक्ष का आधिपत्य स्वीकार कर लिया था।
सन् 1617 ई. में जोसाफाट, विटेब्स्क
के धर्माध्यक्ष नियुक्त किये गये थे और इसके कुछ ही माहों बाद पोलोट्स्क के महाधर्माध्यक्ष
अभिषिक्त किये गये थे। महाधर्मप्रान्त में उन्होंने कई सुधार किये तथा बाज़िलियन धर्मसमाज
में भी सुधारों का सिलसिला आरम्भ किया।
रोम की काथलिक कलीसिया से अलग होने वाले
पूर्वी रीति की कलीसिया के सदस्यों को एकता के सूत्र में बाँधने हेतु उन्हें घोर विरोध
का भी सामना करना पड़ा। सन् 1623 ई. में ख्रीस्तीय एकता का विरोध करनेवाली एक उग्र भीड़
ने उनपर आक्रमण कर उन्हें मार डाला था। अपने सुधार कार्यों एवं रोम की पवित्रपीठ के प्रति
अपनी निष्ठा के कारण जोसाफाट को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा, इसीलिये सन् 1867 ई. में
काथलिक कलीसिया ने उन्हें सन्त घोषित कर वेदी का सम्मान प्रदान किया। शहीद सन्त जोसाफाट
कुनसेविच का पर्व 12 नवम्बर को मनाया जाता है।
चिन्तनः "जो मेरे लिए
न्याय चाहते थे, वे उल्लसित होंगे और निरन्तर कहेंगे, ''प्रभु की जय! उसने अपने सेवक
को सुख-शान्ति प्रदान की।'' तब मेरी जिह्वा तेरे न्याय का बखान करेगी और दिन भर तेरी
स्तुति करेगी (स्तोत्र ग्रन्थ 35:27-28)।