2012-11-06 08:45:14

प्रेरक मोतीः सन्त लियानार्द (निधन - 559 ई.)


वाटिकन सिटी, 06 नवम्बर सन् 2012:

सन्त लियोनार्द फ्राँस के सन्त हैं जो राजनैतिक क़ैदियों, युद्धबन्दियों, बन्धकों, गर्भवती एवं प्रसव पीड़ा में पड़ी महिलाओं और साथ ही घोड़ों एवं घुड़सवारों के भी संरक्षक हैं।

अज्ञात सूत्रों के अनुसार, लियोनार्द फ्राँस के राजा क्लोविस प्रथम के राजदरबार के कर्मचारी थे। राजा क्लोविस प्रथम उनके धर्मपिता भी थे जिन्होंने उन्हें अपने राज्य में एक ज़िम्मेदार पद पर नियुक्त करना चाहा था किन्तु लियोनार्द का झुकाव आध्यात्मिक एवं पारलौकिक के प्रति अधिक था। सन्त रेमिजियुस उनके मित्र थे और उन्हीं की संगति में उन्हें ईश्वर एवं अनन्त का ज्ञान मिला। उन्हीं के सरल एवं निष्कपट जीवन से प्रभावित होकर लियोनार्द ने ख्रीस्तीय धर्म का आलिंगन कर लिया था तथा लीमोजेस में भिक्षु जीवन यापन करने लगे थे।

राजा क्लसोविस प्रथम ने उन्हें अपने राज्य में बहुत सी भूमि प्रदान कर दी जहाँ उन्होंने अपने लिये एक कुटिया तथा आश्रम की स्थापना कर डाली थी। राजा क्लोविस की रानी उस समय गर्भवती थी तथा बहुत कष्ट भोग रही थी। बताया जाता है कि राजा क्लोविस ने लियोनार्द को एक गधी पर बैठा दिया तथा कहा कि वे भूमि के कोने कोने तक जाकर रानी साहिबा के लिये प्रार्थना करें। दिन-दिन भर लियोनार्द गधी पर सवार भू-क्षेत्र का चक्कर लगाया करते थे तथा रानी के लिये प्रार्थना किया करते थे। उनकी प्रार्थनाएँ सुनी गई तथा रानी साहिबा ने, सुरक्षित रूप से, एक शिशु को जन्म दिया। सम्पूर्ण राज्य में खुशहालियाँ मनाई गई तथा उस भू-क्षेत्र का नाम लियोनार्द रख दिया गया। राजा क्लोविस से समर्थन प्राप्त कर लियोनार्द ने यहाँ एक मठ की भी स्थापना की। यही मठ बाद में नोबलाक के मठ नाम से विख्यात हो गया। इसीलिये, फ्रांस के लीमोसीन प्रान्त स्थित लियोनार्द नगर को नोबलाक तथा सन्त लियोनार्द को नोबलाक के लियोनार्द कहा जाता है। मठवासी भिक्षु लियोनार्द का निधन, सन् 559 ई. में, हो गया था। सन्त लियोनार्द का पर्व, 06 नवम्बर को, मनाया जाता है।

चिन्तनः "पृथ्वी के शासको! न्याय से प्रेम रखो। प्रभु के विषय में ऊँचे विचार रखो और निष्कपट हृदय से उसे खोजते रहो; क्योंकि जो उसकी परीक्षा नहीं लेते, वे उसे प्राप्त करते हैं। प्रभु अपने को उन लोगों पर प्रकट करता है, जो उस पर अविश्वास नहीं करते" (प्रज्ञा ग्रन्थ 1:1-2)।








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