2012-10-31 07:48:54

प्रेरक मोतीः सन्त वोल्फगांग (934 ई.-994 ई.)


वाटिकन सिटी, 31 अक्टूबर सन् 2012:

वोल्फगांग का जन्म जर्मनी में सन् 934 ई. में हुआ था। सन् 972 ई. से 994 ई. तक वे जर्मनी में रेगन्सबुर्ग के धर्माध्यक्ष थे। वोल्फगांग की शिक्षा-दीक्षा राईखेनाओ में बेनेडिक्टीन मठवासियों के अधीन हुई थी। ट्रियर में वे एक काथलिक स्कूल में अधायपक थे तथा बाद में विर्ट्सबुर्ग के काथलिक विश्वविद्यालय में प्राध्यपक। सन् 964 ई. में वे आईनसीड्ल्न स्थित बेनेडिक्टीन मठ में भर्ती हो गये थे। सन् 971 ई. में वोल्फगांग पुरोहित अभिषिक्त किये गये तथा सन् 972 ई. में रेगन्सबुर्ग के धर्माध्यक्ष नियुक्त कर दिये गये थे।

अपनी धर्माध्यक्षीय प्रेरिताई के काल में धर्माध्यक्ष वोल्फगांग ने कई मठों की स्थापना की तथा धर्मप्रान्तीय पुरोहितों के सुधार हेतु कई पहलें आरम्भ की। इसके अतिरिक्त, वे एक धर्मोत्साही उपदेशक होने के साथ साथ अपने कल्याणकारी कार्यों के लिये विख्यात हो गये थे। वोल्फगांग के सरलता एवं सादगी से परिपूर्ण जीवन से प्रभावित होकर जर्मनी एवं ऑस्ट्रिया के कई लोगों ने ख्रीस्तीय धर्म का आलिंगन कर लिया था। सम्राट हेनरी द्वितीय भी उनके छात्र रहे थे जिन्होंने धर्माध्यक्ष की पहलों को पूर्ण समर्थन प्रदान किया था।

सन् 1052 ई. में धर्माध्यक्ष वोल्फगांग सन्त घोषित किये गये थे। सन्त उलरिख़ तथा सन्त कॉनराड के साथ साथ सन्त वोल्फगांग को भी दसवीं शताब्दी के महान सन्तों में गिना जाता है। सन्त वोल्फगांग का पर्व 31 अक्टूबर को मनाया जाता है।


चिन्तनः "धन्य हैं मन के दीन क्योंकि स्वर्गराज्य उन्हीं का है।" (सन्त मत्ती 5: 3)








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