2012-10-27 13:18:43

धार्मिक उदासीनता की संस्कृति के बावजूद आशान्वित


वाटिकन सिटी, 27 अक्तूबर, 2012 (सीएन) धर्माध्यक्षों की धर्मसभा ने 26 अक्तूबर शुक्रवार को नये सुसमाचार पर अपने संदेश जारी करते हुए कहा कि धर्म के प्रति उदासीनता की संस्कृति की बढ़ती चुनौतियों के बावजूद कलीसिया आशान्वित है क्योंकि येसु मसीह हमारे मुक्तिदाता है।

दुनिया के लोगों को संबोधित करते हुए करीब 7 हज़ार शब्दों में व्यक्त संदेश में कहा गया है कि कलीसिया दुनिया की समस्याओं से घिरी है - एक ओर धर्मसतावट तो दूसरी ओर पश्चिमी धार्मिक उदासीनता, फिर भी इससे डरने की कोई बात नहीं है क्योंकि येसु मसीह ने सबों के लिये मुक्ति संदेश दिया है।

संदेश में कहा गया है कि जो उस येसु मसीह पर विश्वास करते हैं जिन्होंने पाप और मृत्यु पर विजय प्राप्त की है उनके लिये निराश होने की कोई ज़रूरत नहीं है। येसु मसीह की आत्मा पूरे मानव इतिहास में सक्रिय है।

धर्मसभा इस बात की भी घोषणा किया कि ‘येसु मसीह इतिहास में कार्यरत है’ के सत्य के आधार पर ही नये सुसमाचार का कार्य जारी रहेगा।

घोषणा में यह भी कहा गया है कि विश्वास पर होनेवाले आध्यात्मिक अपमान को एक अवसर रूप में देखा जाना चाहिये और नास्तिकवादी और अनीश्वरवादी विचारों को भी ईश्वर को पाने की आकांक्षा रूप में देखते हुए और उसका सटीक जवाब दिया जाना चाहिये।

धर्मसभा की रिपोर्ट पर चिन्तन करते हुए मनीला के कार्डिनल मनोनीत महाधर्माध्यक्ष लुईस तागले ने कहा कि आज इस बात की ज़रूरत है कि गिरजा जाने वालों की संख्या में कमी होने और विभिन्न धर्मसतावट के बावजूद कलीसिया दुनिया को बताये कि वह जीवित है।

एशिया में कलीसिया की स्थिति की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि एशिया महादेश में ख्रीस्तीय अल्पसंख्यक हैं पर ख्रीस्तीयों को चाहिये कि वे अपने विश्वास को जीयें उसमें सुदृढ़ बनें, अपनी खुशी और आशा को व्यक्त करें न कि इस बात का इन्तज़ार करें कि परिस्थितियाँ बदल जायेंगी।

धर्मसभा ने घोषणा की है कि अगर धर्मप्रचारकों आंतरिक रूप से परिवर्तित हो नहीं होते तो विश्वास टिक नहीं पायेगा। संदेश में कहा गया है कि मन परिवर्तन और सुसमाचार को साथ चलने की आवश्यकता है।

धर्मसभा के अंतिम पारूप में इस बात पर भी विशेष बल दिया गया है कि नये सुसमाचार की घोषणा तब तक पूर्ण नहीं होगी जब तक यह परिवारों तक नहीं पहुँचती है। नया सुसमाचार परिवारों तक पहुँचे और उन्हें विश्वास की शिक्षा दे।

पारिवारिक जीवन ही वह प्रथम पाठशाला है जहाँ सुसमाचार लोगों के आम जीवन में प्रवेश करता है और दम्पतियों के वैवाहिक जीवन को मजबूत करता तथा बच्चों को धर्मशिक्षा प्रदान करता है।










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