2012-10-18 09:35:44

प्रेरक मोतीः सन्त लूकस (दूसरी शताब्दी)


वाटिकन सिटी, 18 अक्टूबर सन् 2012:

चिकित्सकों एवं वैद्यों के संरक्षक सन्त लूकस, सुसमाचार तथा प्रेरित चरित ग्रन्थ के लेखक हैं। कोलोसियों को प्रेषित पत्र में सन्त पौल लूकस को प्रिय वैद्य कहकर सम्बोधित करते हैं। बाईबिल आचार्यों के अनुसार सन्त लूकस ने सुसमाचार की रचना लगभग सन् 70-80 ई. के आसपास की थी।

प्राचीन परम्परा के अनुसार लूकस ग़ैर यहूदी तथा अन्ताखिया के निवासी थे। आरम्भिक कलीसियाई इतिहासकार यूसेबियुस के अनुसार लूकस का जन्म सिरिया के अन्तियोख या अन्ताखिया में हुआ था। उनका यह भी मानना है कि लूकस का जन्म एक दास परिवार में हुआ था तथा जिस परिवार में उनके पिता सेवक थे उसी परिवार ने लूकस को चिकित्सक का प्रशिक्षण दिया था ताकि परिवार में हमेशा एक चिकित्सक मौजूद रह सके। केवल सन्त पौल ही लूकस को वैद्य कहकर नहीं पुकारते बल्कि इतिहासकार यूसेबियुस, सन्त जेरोम, सन्त ईरेनियुस तथा दूसरी शताब्दी के कायुस भी लूकस के चिकित्सक होने की बात करते हैं।

लूकस की ख्रीस्तीय प्रेरिताई एवं मिशन के लिये हमें नवीन व्यवस्थान के प्रेरित चरित ग्रन्थ तथा सन्त पौल के पत्रों पर दृष्टिपात करना होगा। प्रेरित चरित ग्रन्थ के अनुसार अन्ताखिया में कलीसिया की स्थापना लूकस द्वारा की गई थी। सन्त पौलुस की प्रेरितिक यात्राओं में लूकस उनके साथी थे। रोम की यात्रा उन्होंने सन्त पौल के साथ की थी तथा जब, सन् 67 ई. के आसपास, पौल कारावास में थे तब भी लूकस उनके साथ थे। तिमोथी को प्रेषित दूसरे पत्र के चौथे अध्याय के 11 वें पद में सन्त पौल लिखते हैः "केवल लूकस मेरे साथ है। मारकुस को अपने साथ ले कर आओ, क्योंकि मुझे सेवाकार्य में उन से बहुत सहायता मिलती है।"

सुसमाचार लेखक रूप में सन्त लूकस पर यदि ग़ौर करें तो येसु मसीह की जीवनी लिखते समय लूकस के पास सन्त मारकुस का सुसमाचार था तथा सन्त मत्ती रचित सुसमाचार की कुछ सामग्री उपलब्ध थी। सन्त लूकस द्वारा रचित सुसमाचार, विशेष रूप से, ग़ैरयहूदियों के लिये लिखा गया था इसलिये जो बातें ग़ैरयहूदियों के समझ से बाहर थी या उनके लिये कम महत्व रखती थीं, उन्हें सन्त लूकस ने अपने सुसमाचार में नहीं लिखा।

सन्त लूकस येसु मसीह के इस धरती पर जीवन के चश्मदीद गवाह नहीं थे और वे इस बात को स्वीकार भी करते हैं। वस्तुतः, सुसमाचार तथा प्रेरित चरित ग्रन्थ को लिखने की प्रेरणा एवं सूचना सन्त लूकस को सन्त पौल के सम्पर्क में रहकर ही मिली जैसा कि अपने सुसमाचार की प्रस्तावना में वे सपष्ट करते हैः "जो प्रारम्भ से प्रत्यक्षदर्शी और सुसमाचार के सेवक थे, उन से हमें जो परम्परा मिली, उसके आधार पर बहुतों ने हमारे बीच हुई घटनाओं का वर्णन करने का प्रयास किया है। मैंने भी प्रारम्भ से सब बातों का सावधानी से अनुसन्धान किया है; इसलिए श्रीमान् थेओफ़िलुस, मुझे आपके लिए उनका क्रमबद्ध विवरण लिखना उचित जान पड़ा, जिससे आप यह जान लें कि जो शिक्षा आप को मिली है, वह सत्य है" (लूकस 1:1-3)।

सन्त लूकस ने अपने सुसमाचार में सर्वत्र इस तथ्य पर बल दिया कि येसु मसीह समस्त मानवजाति के लिये मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करने आये थे। उनके सुसमाचारों में पापियों एवं परित्यक्तों के प्रति प्रभु येसु की विशेष सहानुभूति एवं संवेदना का चित्रण हमें मिलता है।

सन्त पौल के निधन के बाद, सन्त लूकस के बारे में जो बयाँ मिले हैं वे परस्पर विरोधी हैं। कुछेक आरम्भिक लेखकों का दावा है कि सन्त लूकस शहीद हुए थे जबकि अन्यों का कहना है कि वे दीर्घकाल तक जिये। कुछ के अनुसार लूकस ने ग्रीस में और कुछ अन्यों के अनुसार गौल में सुसमाचार का प्राचर किया था। प्राचीन परम्परानुसार, ग्रीस में सुसमाचार लेखन के बाद, 84 वर्ष की आयु में, लूकस का निधन हो गया था। चिकित्सकों के संरक्षक, सन्त लूकस का पर्व, 18 अक्टूबर को मनाया जाता है।


चिन्तनः प्रभु येसु ख्रीस्त के सुसमाचार के साक्षी बनने हेतु सन्त लूकस हमारी प्रेरणा के स्रोत बनें।








All the contents on this site are copyrighted ©.