द्वितीय वाटिकन महासभा में शामिल रहे धर्माध्यक्षों के लिए संत पापा का संदेश
वाटिकन सिटी 12 अक्तूबर 2012 (सेदोक, वीआरवर्ल्ड) संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने द्वितीय
वाटिकन महासभा में प्रतिभागी रहे धर्माध्यक्षों और रोम में उपस्थित विभिन्न धर्माध्यक्षीय
सम्मेलनों के अध्यक्षों को 12 अक्तूबर को वाटिकन स्थित प्रेरितिक प्रासाद के क्लेंमेंतीन
सभागार में सम्बोधित किया। उन्होंने अपने सम्बोधन में इस तथ्य पर चिंतन प्रस्तुत किया
कि विश्व के हर क्षेत्र में सुसमाचार की उदघोषणा करने, चर्च की सेवा करने तथा ख्रीस्त
से मिले आदेश के प्रति आज्ञाकारिता के द्वारा हर रीति के धर्माध्यक्ष कलीसिया की सार्वभौमिकता
की ठोस अभिव्यक्ति को व्यक्त करते हैं। संत पापा ने द्वितीय वाटिकन महासभा में शामिल
रहे धर्माचार्यों का विशेष रूप से हार्दिक अभिवादन किया।
संत पापा ने द्वितीय
वाटिकन महासभा पर अपने इतिहास और अंतिम नियति के साथ समसामयिक कलीसिया की निरंतरता की
अभिव्यक्ति पर चिंतन करते हुए कहा कि ईसाईयत को अतीत की वस्तु जैसा नहीं समझा जाना चाहिए
और न ही ऐसा देखा जाना चाहिए जो सदैव अपनी दृष्टि को पीछे की ओर मोड़ती है लेकिन येसु
ख्रीस्त कल, आज और हमेशा के लिए एक हैं। संत पापा ने कहा कि ईसाईयत चिह्नित है अनन्त
ईश्वर की उपस्थिति से जिन्होंने युग में प्रवेश किया और सब समय उपस्थित हैं। द्वितीय
वाटिकन महासभा कृपा का समय था जिसमें पवित्र आत्मा ने हमें सिखाया कि कलीसिया अपनी यात्रा
में सदैव आधुनिक मानव से कहे लेकिन यह केवल उन्हीं के द्वारा हो सकता है जिनकी ईश्वर
में जडें गहरी हों तथा जो स्वयं को ईश्वर द्वारा निर्देशित होने दें तथा अपने विश्वास
को शुद्धता पूर्वक जीते हैं न कि उनके द्वारा जो क्षणिक आवेश का अनुसरण करते या आरामदायक
पथ चुनते हैं।
संत पापा ने कहा कि आज जो अनिवार्य और महत्वपूर्ण है वह है- ईश्वर
के प्रेम की रोशनी को हर नर-नारी के जीवन और दिल में लायें, हर युग में और सब जगह स्त्री
और पुरूष को ईश्वर के पास लायें। उन्होंने यह कामना व्यक्त की कि हर विशिष्ट चर्च, विश्वास
का वर्ष मनाते हुए सुसमाचार के स्रोत की ओर लौटने के लिए अवसर की खोज करे जो कि येसु
ख्रीस्त के साथ पूर्णबदलाव लानेवाला साक्षात्कार है।