वाटिकन सिटीः धर्माध्यक्षीय धर्मसभा में सन्त पापा ने सुसमाचार के महत्व पर डाला प्रकाश
वाटिकन सिटी, 09 अक्टूबर सन् 2012 (सेदोक): वाटिकन में, सोमवार से 13 वीं विश्व धर्माध्यक्षीय
धर्मसभा आरम्भ हो गई है जो तीन सप्ताहों तक जारी रहेगी। धर्माध्यक्षीय धर्मसभा
की 13 वीं सामान्य सभा के सत्रों का शुभारम्भ कर सोमवार को सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें
ने सुसमाचार की उदघोषणा के महत्व पर प्रकाश डाला। धर्मसभा के पहले दिन के विचार विमर्श
के लिये सन्त पापा ने दो प्रमुख विषयों पर बल दिया जो है, प्रभु येसु ख्रीस्त के सुसमाचार
की उदघोषणा के प्रति लगन तथा इस तथ्य की चेतना की पिता ईश्वर कलीसिया में अनवरत क्रियाशील
रहते हैं। धर्माध्यक्षीय धर्मसभा की 13 वीं सामान्य सभा का विषय हैः "ख्रीस्तीय धर्म
के प्रसार हेतु नवीन सुसमाचार उदघोषणा।" सन्त पापा ने कहा, "ईश्वर कौन है? मानवजाति
के साथ उनका क्या सम्बन्ध है? क्या सचमुच में ईश्वर कोई वास्तविकता है? यदि है तो वे
अपनी आवाज़ क्यों हमें सुनने नहीं देते? ये महान प्रश्न, अतीत के समान, आज भी मनुष्य
के दिलोदिमाग़ में बने हुए हैं।" "इनके उत्तर में", उन्होंने कहा, "सुसमाचार के
द्वारा, ईश्वर ने अपना मौन भंग किया; उन्होंने हमसे बातचीत की तथा मानव इतिहास में प्रवेश
किया। येसु उनके शब्द हैं, ईश पुत्र येसु ख्रीस्त, जिन्होंने हमसे प्रेम किया तथा इस
प्रकार पिता ईश्वर के असीम प्रेम का ज्ञान कराया। हमारी मुक्ति लिये उन्होंने मृत्यु
सही तथा मुर्दों में पुनः जी उठे।" सन्त पापा ने कहा कि कलीसिया के पास उक्त प्रश्नों
का यही उत्तर है। तथापि, एक और प्रश्न हमारे समक्ष उठता है और वह है हमारे युग के स्त्री
पुरुषों के बीच सत्य का प्रसार किस तरह किया जाये ताकि वे मुक्ति के बारे में ज्ञान प्राप्त
कर सकें? उन्होंने कहा कि नवीन सुसमाचार उदघोषणा कोई निश्चित्त कार्यक्रम नहीं है
बल्कि यह नये तरीके से सोचने, नये दृष्टि से विश्व को देखने तथा नये सिरे से सुसमाचार
के प्रेम सन्देश को जन जन में फैलाने का मार्ग है। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस मार्ग
पर चलने का अर्थ है समाज में व्याप्त वास्तविकताओं का सामना करना। ऐसे समाज का सामना
करना जो आज वैयक्तिकवादी एवं अन्यों के प्रति ग़ैरज़िम्मेदार हो चला है। उसमें ऐसी सोच
पनप चुकी है जो धर्म को एक व्यक्तिगत मामला मानने लगी है तथा जिसमें धर्म एवं विश्वास
के प्रति उपेक्षाभाव उत्पन्न हो गया है। सन्त पापा ने कहा कि इन नकारात्मक परिस्थितियों
में केवल निःस्वार्थ सेवा, उदारता तथा कठिन घड़ियों में भी ख्रीस्त के साक्षी बनने के
द्वारा ही सुसमाचार की उदघोषणा सम्भव हो सकती है। उन्होंने कहा कि कठिन परिस्थितियों
में दिया गया साक्ष्य ही विश्वसनीय साक्ष्य होता तथा सत्य के प्रचार का सामर्थ्य प्रदान
करता है।