मुहम्मद का अपमान करने वाले पर हिंसा के कोई निर्देश नहीं
मुम्बई, 6 अक्तूबर, 2012 (एशियान्यूज़) भारत के प्रसिद्ध मुसलिम बुद्धिजीवी मौलाना वहीदुद्दीन
ने कहा है कि मुसलमानों का पवित्र ग्रंथ कुरान मुहम्मद के विरुद्ध अपमानित शब्द का प्रयोग
करने वाले को सजा देने की वकालत नहीं करता है।
कुरान के पदों पर चिन्तन करते
हुए उन्होंने कहा कि खुद मुहम्मद को ‘झूठा’ ‘मूर्ख’ और ‘अपदूतग्रस्त’ कहा पर कहीं भी
इस बात का ज़िक्र नहीं मिलता कि यह मुसलमानों को इसके लिये हिसंक बदले लेने के लिये आमंत्रित
करे।
ठीक इसके विपरीत पवित्र ग्रंथ कुरान आज्ञा देता है कि जो मुहम्मद का विरोध
करते हैं या जो इसके विपरीत सोचते हैं उनके साथ शांतिपूर्ण वार्ता करनी चाहिये।
मालूम
हो, उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में जन्में मौलाना हिदुद्दीन का जन्म सन् 1925 में हुआ। उन्होंने
कुरान का अनुवाद अंग्रेजी भाषा में किया है।
यह भी विदित हो कि मौलाना वहिदुद्दीन
‘सेंटर ऑफ पीस एंज स्प्रिचुवालिटी’ के निदेशक हैं और उन्होंने कई किताबें लिखीं हैं।
उन्हें कई ‘देमीउरगुस पीस इंटरनैशनल अवार्ड’ सहित कई अन्य शांति पुरस्कारों से सम्मानित
किया गया है।
भारत सरतकार ने उन्हें पद्मभूषण पुरस्कार का सम्मान भी दिया है।
वहिदुद्दीन का मानना है कि प्राचीन समय से ही ईश्वर ने प्रत्येक शहर और समुदाय
के लिये नबियों को भेजा और उसके समकालीन अन्य नबियों ने मुहम्मद के प्रति नकारात्मक
रवैया अपनाया था।
उन्होंने कहा कि कुरान में 200 पद ऐसे हैं जो इस बात को स्पष्ट
करते हैं कि नबियों ने मुहम्मद के विरुद्ध जिन गलतियों को किया उन्हीं को आज ‘ईशनिन्दा’
या ‘अपमानपूर्ण शब्द’ कहा जाता है। कुरान में मुहम्मद के लिये झूठा (40, 24) अपदूतग्रस्त
(15,6) मूर्ख (7,66) आदि शब्दों का व्यवहार किया गया पर कुरान में ऐसा कहीं लिखा हुआ
नहीं है कि ऐसा करने वाले को कोड़ा लगाया जाय मृत्यु या किसी भी प्रकार की शारीरिक वेदना
दी जाये।
कुरान में कहा गया है कि जो मुहम्मद के विरुद्ध अपमानजनक बात करते तो
उन्हें कोई शारीरिक सजा नहीं दी जानी चाहिये बल्कि उन्हें शांतिपूर्ण तरीके से समझाना
चाहिये और अच्छे तर्क प्रस्तुत करना चाहिये ताकि वे बातों को समझ सके।
उन्होंने
यह भी कहा कि जो मुहम्मद के प्रति नकारात्मक रवैया अपनायेंगे उनका न्याय ईश्वर करेंगे
जो प्रत्येक व्यक्ति के ह्रदय को जानते हैं।
मौलाना वहीदुद्दीन ने कहा कि जो
मुहम्मद का कथित रूप से अपमानित करने की बात को लेकर शोर मचाना, बिल्कुल असमर्थनीय है।
इस तरह की नीति का समर्थन कर मुसलिम अपने को सदा के लिये नकारात्मक बना लेंगे और दुनिया
की प्रणाली को कदापि बदल नहीं पायेंगे।