2012-10-01 10:05:07

प्रेरक मोतीः सन्त तेरेसा - "येसु का नन्हा पुष्प" (1873-1897)


वाटिकन सिटी, 01 अक्टूबर सन् 2012:

लिसियुक्स की सन्त तेरेसा का जन्म, 02 जनवरी, सन् 1873 ई. को, फ्राँस में हुआ था। जन्म के समय उन्हें मारी फ्राँसिस तेरेसा मार्टिन नाम दिया गया था। वे फ्राँस की एक कारमेल मठवासी धर्मबहन थीं जिन्हें "शिशु येसु की सन्त तेरेसा" तथा "येसु का नन्हा पुष्प" शीर्षकों से भी पुकारा जाता है।

तेरेसा ने कम उम्र में ही प्रभु की बुलाहट सुनी तथा 15 वर्ष का आयु में, फ्राँस के नोरमान्दी स्थित लिसियुक्स के कारमेल मठ में समर्पित जीवन हेतु भर्ती हो गई। नौ वर्षों तक वे लिसियुक्स के मठ में विभिन्न क्षेत्रों में सेवा अर्पित करती रहीं किन्तु, इसी दौरान, वे तपेदिक रोग से ग्रस्त हो गई जिससे, 24 वर्ष की आयु में ही, 30 सितम्बर, सन् 1897 ई. को, उनका देहान्त हो गया था।

"एक आत्मा की कहानी" शीर्षक से संकलित, मठवासी धर्मबहन तेरेसा के पत्र, एक वर्ष बाद प्रकाशित किये गये तथा उनके निकट सगे-सम्बन्धियों एवं धर्मबहनों में वितरित किये गये। नन्हीं तेरेसा द्वारा लिखे गये इन पत्रों का प्रभाव इतना अधिक रहा कि वे फ्राँस में जगह-जगह लोक प्रिय हो गई। उनके लघु जीवन काल में लिखे पत्रों ने लोगों के जीवन को इस कदर प्रेरित किया कि उस युग के अनेक धर्मतत्व वैज्ञानिकों के लेख भी नहीं कर पाये थे।

सन्त पापा पियुस 11 वें ने, तेरेसा को, अपने "परमाध्यक्षीय काल का तारा" शीर्षक से सम्मानित किया। सन् 1923 ई. में तेरेसा धन्य तथा 1925 ई. में सन्त घोषित कर दी गई। सन् 1927 ई. में सन्त तेरेसा को, सन्त फ्राँसिस ज़ेवियर के साथ मिशन के संरक्षक घोषित किया गया तथा सन् 1944 में उन्हें जोन ऑफ आर्क के साथ फ्राँस की संरक्षिका घोषित किया गया। 19 अक्टूबर, सन् 1997 में, सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय ने लिसियुक्स की सन्त तेरेसा को काथलिक कलीसिया के 33 वाँ आचार्य घोषित किया था। काथलिक कलीसिया की वे सबसे कमउम्र आचार्या हैं।

सन्त तेरेसा की सन्त घोषणा के बाद उनके द्वारा लिखे पत्रों का संकलन "एक आत्मा की कहानी" विश्व विख्यात हो गया तथा सम्पूर्ण विश्व में "लिटिल फ्लावर" यानि लिसियुक्त का सन्त तेरेसा की भक्ति लोकप्रिय हो चली।

सन्त तेरेसा ने गुप-चुप रहकर जीवन यापन करना चाहा था, वे अज्ञात रहना चाहती थी, उन्होंने ख्याति, यश अथवा नाम की कभी कामना नहीं की थी तथापि, अपने पत्रों, कविताओं, एकांकियों, प्रार्थनाओं आदि से संकलित उनकी आध्यात्मिक आत्माकथा द्वारा वे सर्वत्र विख्यात और लोकप्रिय हो गई हैं। उनकी आध्यात्मिकता की गहराई ने अनेक विश्वासियों को प्रेरित किया है, जिसके बारे में वे कहा करती थीं, "मेरा रास्ता विश्वास और प्रेम से भरा है"। अपने छोटेपन एवं नगण्यता में उन्होंने इस विश्वास की अभिव्यक्ति की कि ईश्वर ही उनकी पवित्रता के स्रोत थे। वे एक छोटे नये रास्ते से स्वर्ग तक पहुँचना चाहती थीं, उन्होंने लिखा, "मैं एक ऐसी लिफ्ट की खोज में हूँ जो मुझे येसु तक ऊपर ले जाये।"

फ्राँस स्थित लिसियुक्स का महागिरजाघर सन्त तेरेसा को समर्पित है जो लूर्द के बाद फ्राँस का सर्वाधिक विशाल तीर्थस्थल बन गया है। लिसियुक्स की सन्त तेरेसा या लिटिल फ्लावर का पर्व, पहली अक्टूबर को, मनाया जाता है।


चिन्तनः लिसियुक्स की सन्त तेरेसा के शब्दों पर हम चिन्तन करें, वे लिखती हैं: "कभी कभी मैं आध्यात्मिक सूखे का अनुभव करती हूँ और ऐसी स्थिति में मेरा मन किसी भी विचार को व्यक्त करने में असमर्थ होता है तब, मैं धीरे धीरे "हे पिता हमारे और "प्रणाम मरिया" प्रार्थनाओं को दुहराती हूँ और ये प्रार्थनाएँ, अपने आप से बाहर निकलने में मेरे लिये पर्याप्त होती हैं तथा मुझे एक अदभुत ताज़गी प्रदान करती हैं।"








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