2012-09-21 11:36:23

वर्ष ‘ब’ का पच्चीसवाँ रविवार, 23 सितंबर, 2012


प्रज्ञा ग्रंथ 2, 12,17-20
याकूब का पत्र 3, 16-4,3
संत मारकुस 9,30-37
जस्टिन तिर्की, ये.स.
दीपक की कहानी
मित्रो, आज आप लोगों के व्यक्ति के बारे में बताता हूँ जिसका नाम था दीपक। वह एक मछुआरा था और मछली मार करके अपनी जीविका चलाता था । वह रोज समुद्र में मछली पकड़ने जाता और लौटने के बाद मछली बेचता और उसी से जो आमदनी मिलती उससे परिवार का भरण-पोषण करता था। दोपहर को वह रोज दिन आराम करता था। एक दिन कि बात है शनिवार का दिन था। दीपक समुद्र से मछली पकड़ कर लाया और मछली बेचने के बाद जो पैसे मिले उससे भोजन ग्रहण किया और पेड़ की छाया में बैठ कर आराम करने लगा। ठीक उसी समय एक व्यक्ति उधर से गुजरा और धूप होने के कारण वह भी उसी पेड़ की छाया में सुस्ताने के लिये बैठ गया। दीपक और उस टूरिस्ट के बीच बातचीत होने लगी। उस धनी टूरिस्ट ने कहा कि तुम क्यों आराम कर रहे हो तुम्हें मछली नहीं पकड़ना है। तब दीपक ने कहा कि उसने काफी मछलियाँ पकड़ लीं हैं औऱ अब वह मछली पकड़ने के लिये बाहर नहीं जायेगा। तब उस व्यक्ति ने दीपक से कहा कि अगर वह ज्यादा मछली पकड़ेगा तो उसे अधिक पैसे मिलेंगे तो वह और एक नाव खरीद सकता है तो उसे और अधिक पैसे मिलेंगे। दीपक ने कहा कि क्यों वह एक और नाव ख़रीदेगा। उस धनी दूरिस्ट ने कहा कि अगर वह और एक नाव खरीदेगा तो और अधिक मछली पकड़ेगा और अधिक पैसे कमायेगा। तब दीपक ने कहा कि उससे क्या होगा। तब उस धनी दूरिस्ट ने कहा कि अगर तुम अधिक पैसे कमाओगे तो तुम आराम से रहोगे और खुश रहोगे। दीपक न तपाक से ज़वाब दिया साहब मैं तो आराम से हूँ मैं तो खुश हूँ। मैंने अपना काम कर लिया है परिवार खुश है मैं भी खुश हूँ। आप तो देख ही रहे हैं कि मैं तो बस सुस्ता रहा हूँ और दुनिया की सुन्दरता का अवलोकन कर रहा हूँ। कई बार हम सोचते हैं कि हमारे पास अधिक पैसे होने से हम सुखी होंगे।कई बार हम सोचते हैं कि हमारा नाम बड़ा हो तो हम प्रसन्न रहेंगे और कई बार हम सोचते हैं कि खुशी का अर्थ है बढ़ा होना अधिक होना दूसरों को काम काम कराना और खुद आराम करना। पर वास्तविक आनन्द तो खुद मेहनत करने और जीवन की संतुष्टि पाने में है। मित्रो, रविवारीय आराधना विधि चिन्तन कार्यक्रम के अन्तर्गत पूजन-विधि पंचांग के वर्ष ‘ब’ के 25वें रविवार के लिये प्रस्तावित पाठों के आधार पर हम मनन चिंतन कर रहे हैं। आज प्रभु हमें बताना चाहते हैं कि हम प्रभु के लिये कार्य करें चाहे या कार्य छोटा-ही क्यों न हो हम दिल से करें और इसे एक ऐसा उपहार बनायें जिससे प्रभु भी प्रसन्न रहें और हमारे दिल को भी सुकून मिले। अगर हम बड़ा होना चाहें तो हम अपने कर्मों से बड़ा बने न कि सिर्फ बात से। आइये आज हम प्रभु के वचन को सुनें जिसे संत मारकुस के सुसमाचार के सातवें अध्याय के 30 से 37पदों से लिया गया है।

सुसमाचार पाठ मारकुस 7, 30-37
येसु और उनके शिष्य वहाँ से चल कर कलीसिया पर कर रहे ते येसु नहीं चाहते थे कि किसी को इसका पता चले, क्यों वह अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहे ते। येसु ने उनसे कहा, " मानव पुत्र मनुष्यों के हवाले कर दिया जायेगा । वे उसे मार डालेंगे औऱ मार जाले जाने के बाद वह तीसरे दिन जी उठेगा। शिष्य यह बात नहीं समझ पाते थे, किन्तु येसु से प्रश्न करने में उन्हें संकोच होता था। वे कफ़रनाहूम आये। घर पहुँच कर येसु ने शिष्यों से पूछा, " तुम लोग रास्ते में किस विषय पर विवाद कर रहे थे।" वे चुप रह गये, क्योंकि उन्होंने रास्ते में इस पर वाद-विवाद किया था कि हम में सबसे बड़ा कौन है। येसु बैठ गये और बारहओं को बुला कर उन्होंने उनसे कहा, " यदि कोई पहला होना चाहे, तो वह सबसे पिछला और सबका सेवक बने " । उन्होंने एक बालक को शिष्यों को बीच खड़ा कर दिया और उसे गले लगा कर उससे कहा, " जो मेरे नाम पर इन बालकों में से किसी एक का स्वागत करता है वह मेरा ही स्वागत करता है और जो मेरा स्वागत करता है, वह मेरा नहीं, बल्कि उसका स्वागत करता है जिसने मुझे भेजा है।


आम रास्ता से भिन्न
मित्रो, मेरा विश्वास है कि आप सबों ने प्रभु के वचनों को ध्यान से पढ़ा है। मेरा यह भी विश्वास है कि प्रभु के वचन के सुनने से आपको और आपके परिवार के सदस्यों और मित्रों पर प्रभु की आशिष मिली है। मित्रो जब भी प्रभु की वाणी पर ध्यान देते हैं तो हम पाते हैं कि वे हमारे लिये जो रास्ता दिखाते हैं वह नया हमेशा नया लगता है। यह आम दुनियावी रास्ता से जरा भिन्न होता है। मित्रो,आज के दिव्य वचनों में पाते हैं कि येसु के सोच और चेलों के सोच में ज़मीन आसमान का अंतर है। एक ओर तो हम पाते हैं कि दुनिया की सेवा करते-करते मृत्यु को गले लगाने की बात करते हैं। उधर दूसरी ओर चेलों में आपसी विवाद छिड़ा हुआ है कि उन्हें कौन-सा पद प्राप्त होगा। मित्रो, ऐसा नहीं है कि येसु कुछ हासिल नहीं करना चाहते हैं। वे तो चाहते हैं कि हमारा श्रम बेकार न जाये। येसु भी चाहते हैं कि हम जो भी भला कार्य करें उसके लिये हमें पुरस्कार प्राप्त हो। मित्रो, येसु के चेले भी चाहते हैं कि उनके त्याग और बलिदान का पुरस्कार उन्हें मिले। पर जब हम येसु के रास्ते और चेलों के रास्तों के बारे में विचार करते हैं तो हम पाते हैं कि ये अलग-अलग हैं।

सत्य का मार्ग
मित्रो, आपने ध्यान दिया होगा कि प्रभु कह रहे हैं कि उन्हें लोग पकड़ेंगे और मार डालेंगे। मित्रो, क्या आपने कभी विचार किया कि येसु क्यों ऐसी बातें कर रहें हैं । मित्रो,, आपको अवश्य ही मालूम होगा कि सत्य के मार्ग पर चलना उतना आसान नहीं होता। सत्य के मार्ग में चलने वालों को काँटो से होकर गुज़रना पड़ता है। प्रभु अपने प्रवचन के दरम्यान इस बात की पहले ही चर्चा की थी कि सत्य का मार्ग प्रेम का मार्ग ईमानदारी का मार्ग संकीर्ण मार्ग है। दुनिया के लोग उन मार्गों में चलना चाहते हैं जो चौड़ा है और जिससे होकर सब लोग गुज़रना नहीं चाहते हैं। श्रोताओ, हमने इस बात का अपने जीवन में अनुभव किया है कि जो मार्ग चौड़े दिखाई देते हैं यह ज़रूरी नहीं कि वे हमें जीवन की पूर्ण संतुष्टि दें। श्रोताओ, येसु की हरएक बात की यही विशेषता है कि वे उन बातों को बताते हैं ताकि इससे व्यक्ति का जीवन सही मायने में सुन्दर सार्थक और सफल हो।

कुछ बनने की तमन्ना
चलिये हम आज के प्रभु की ही बातों को लें। येसु आज हमसे कह रहे हैं कि यदि कोई पहला होना चाहे तो सबका सेवक बनें। मित्रो, आपको मैं एक व्यक्तिगत अनुभव बतलाना चाहता हूँ । जब कभी मैं छोटे बच्चों से बातें करता हूँ और मेरे पास समय हो तो मैं उनसे पूछता हूँ कि वे बड़े होकर क्या बनना चाहते हैं। और बच्चों के ज़वाब बहुत ही मजेदार होते हैं। एक दिन मैंने कुछ बच्चों को पूछा था कि वे क्या बनना चाहते हैं तो जवाब आया कि वे टीचर बनेंगे डॉक्टर बनेंगे इंजीनियर बनेंगे फादर सिस्टर बनेंगे आदि-आदि। मैं बाईबल की बातों को याद कर यह उम्मीद करता रहा कि कोई कहे कि मैं सेवक बनुँगा। मैं निराश हुआ यह सोचकर कि कोई भी बच्चा सेवक नहीं बनना चाहता है। सब बच्चे बड़ा आदमी बनना चाहते हैं। मैं उस समय बहुत ही निराश हुआ जब एक बच्चे ने कहा कि वह चोर बनेगा। शायद अपने बड़े जनों से सुना होगा कि चोर बनने से बिना मेहनत के बहुत कमाई हो जाती है।

मित्रो, जो भी हो हम बड़ा व्यक्ति बनना चाहते हैं हम नाम कमाना चाहते हैं साथ ही हम चाहते ही कि प्रसन्न और संतुष्ट रहें।

प्रभु की वाणी में विरोधाभास
कितना अंतर है प्रभु की वाणी में और हमारे सोच मे। हम चाहते हैं कि हम तब ही प्रसन्न हो सकते हैं जब हम बड़े व्यक्ति बनेंगे। प्रभु कहते हैं कि बड़े व्यक्ति बनने के लिये हमें दूसरों का सेवक बनना है। यदि हम दूसरों की सेवा में अपना जीवन लगाते हैं तब हम खुश रह सकते हैं। मित्रो, एक दूसरी बात जिसे अभी मैं याद कर रहा हूँ वह है प्रभु की वह वाणी जिसमें प्रभु ने खुद को सेवक कहा है। उन्होंने यह भी कहा कि प्रभु सेवा करने के लिये इस दुनिया में आये हैं सेवा कराने के लिये नहीं। सेवा करना अर्थात दूसरों के लिये भला सोचना और भला करना। मित्रो, प्रभु तो मन-वचन और कर्म के पक्के थे। उन्होंने जो कहा वो किया भी।

सेवक की पहचान
सेवकों की सबसे बड़ी पहचान है कि वे अपनी इच्छा नहीं पर मालिक की इच्छा पूरी करते हैं। वे मालिक के निर्देशों के अनुसार ही अपने जीवन को सुन्दर और सफल बनाने पर भरोसा रखते हैं। मित्रो, सेवकों की दूसरी विशेषता है कि वे सदा ही उपलब्ध, उत्सुक और उत्साहित रहते हैं ताकि उनके कार्यों से दूसरों को प्रसन्नता मिले। सेवकों की तीसरी विशेषता होती है कि वे नम्र होते हैं। वे हमेशा सोचते हैं कि हर दूसरा व्यक्ति भला और अच्छा है। नम्र व्यक्ति सोचता है कि उसे कई नयी बातों को सीखना है और जिन बातों को उसने सीख ली है उसे पूरी वफ़ादारी से करते ही जाना है। मित्रो, आपने ग़ौर किया होगा कि प्रभु इन्हीं सब बातों को समझाने के लिये एक बच्चे को अपने शिष्यों के सामने ले आते हैं। वे उस बालक को शिष्यों के सामने खड़े करके बोलते हैं कि जो इस बालका का स्वागत करता है वह स्वर्गीय पिता का स्वागत करता है।

मित्रो, आपने इस बात पर भी ध्यान दिया होगा कि बच्चे में भी वे सारे गुण छिपे हुए हैं जो एक सेवक में होते हैं।

विनम्र बनें
प्रभु आज हमसे स्पष्ट रूप से कह रहे है कि यदि हम चाहते हैं हम जीवन की खुशी को पायें जीवन में सच्ची शांति का अनुभव करें तो हम बालकों के समान विनम्र बने। हमर उस मछुवारे दीपक के समान अपने छोटी ज़िम्मीदारी को भली-भाँति ईमानदारी से निभायें और परिवार की खुशी के लिये कार्य करें भले कार्यों को करने के लिये सदा उत्साहित रहें। ऐसा करते हुए हम कई बार इस दुनिया की दृष्टि में पिछलें भी क्यों न रहें ईश्वर की नज़रों में हम सदा पहले ही रहेंगे।








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