2012-09-21 11:29:24

वर्ष ‘ब’ 21वाँ रविवार - 26 अगस्त, 2012


योशुवा का ग्रंथ 24, 1-2, 15-18
एफ़ेसियों के नाम 5, 21-32
संत योहन 6, 60-69

जस्टिन तिर्की,ये.स.
12 साल का लड़का
मित्रो, आज आप लोगों को एक कहानी बताता हूँ जो द्वितीय विश्व युद्ध के समय घटी थी। बताया जाता है कि नाजि़यों में यहूदियों को समाप्त करने का भूत सवार था। वे खोज-खोज कर यहूदियों को मार रहे थे। कई बार वे यहूदियों के पूरे गाँव के लोगों को मारते और उन्हें किसी प्रकार एक साथ दफ़ना देते थे। कई बार तो लोगों को घायलावास्था में ही दफ़न कर दिया जाता था। एक दिन की बात है कि नाज़ियों ने एक गाँव के यहूदियों को मारा और लोगों को दफ़ना दिया। गढ़े में फेंके किये गये लोगों में से एक बालक जो 12 साल का था वहाँ से बच निकला। पर वह घायल हो गया था और उसके कपड़े-लत्ते गंदे हो गये थे और वह थका-हारा, डरा-सहमा गाँव की ओर गया जहाँ ईसाई लोग रहा करते थे। जब वह विभिन्न दरवाज़ों से होकर गुज़रता था तो वे अपना दरवाज़ा बन्द कर देते थे। वह यहूदी बालक आगे बढ़ता ही गया यह सोचते हुए कि कोई-न-कोई तो उसे तो शरण देगा ही। जब वह आगे बढ़ा तो उसने देखा कि एक दरवाज़ा खुला है और एक महिला वहाँ पर खड़ी है। तब वह जल्दी से उसकी ओर बढ़ा पर उस महिला ने भी घर का दरवाज़ा बन्द करना चाहा तब उस बालक ने कहा "माँ जी क्या आपने मुझको नहीं पहचाना। मैं ईसा मसीह हूँ जिसे आप बहुत प्यार करते हैं।" ऐसा कहना था कि उस महिला का मन परिवर्तन हो गया और उसने तुरन्त उस बालको अपने घर में आश्रय दिया। उसे नहलाया धुलाया और नये कपड़े पहनने को दिये और उस बालक को नया जीवन दिया। उस महिला ने उस बालक की आवाज़ में येसु को पहचाना और उसे अपनाया। उस महिला ने जीवन में एक निर्णय लिया जिसमें उसने येसु को अपनाया। मित्रो, येसु कई रूपों में हमारे सामने आते हैं कई घटनाओं में हमारे सामने आते हैं, कई बार हमें आवाज़ देते हैं हमारा दरवाज़ा खटखटाते हैं ताकि हम उन्हें जाने पहचाने येसु के साथ रहने का निर्णय लें। येसु का साथ देने का निर्णय इतना आसान तो नहीं है पर उसके साथ रहने का आनन्द अद्वितीय है।

मित्रो, रविवारीय आराधना विधि चिन्तन कार्यक्रम के अन्तर्गत पूजन विधि पंचांग के वर्ष के 21वें रविवार के लिये प्रस्तावित पाठों के आधार पर हम मनन-चिन्तन कर रहे हैं। प्रभु आज हमें इस बात के लिये आमंत्रित कर रहे हैं कि हम उन पर विश्वास करें और येसु को स्वीकारें, हम उसके मूल्यों को गले लगायें और येसु को लगातार ग्रहण करते रहें। आइये आज हम संत योहन के सुसमाचार के 6वें अध्याय के 60 से 69 पदों को सुनें जिसमें प्रभु एक ऐसी सच्चाई के बारे में बता रहे हैं जो कड़वी है पर जीवनदायी है।

सुसमाचार पाठ – संत योहन 6,60-69

येसु के बहुत-से शिष्यों ने उनकी यह शिक्षा सुन कर कहा, " यह तो कठोर शिक्षा है। इस कौन मान सकता है।" यह जान कर कि मेरे शिष्य इस पर भुनभुना रहे है येसु ने उनसे कहा, "क्या तुम इसी से विचलित हो रहे हो।जब तुम मानव पुत्र को वहाँ आरोहण करते देखोगे जहाँ वह पहले था तो क्या कहोगे। आत्मा ही जीवन प्रदान करता है, मांस से कुछ लाभ नहीं होता। मैंने तुम्हें जो शिक्षा दी है वह आत्मा और जीवन है। फिर भी तुम लोगों में से अनेक विश्वास नहीं करते। येसु तो आरंभ से ही यह जानते थे कि कौन विश्वास नहीं करते और कौन मेरे साथ विश्वासघात करेगा। उन्होंने कहा, "इसलिये मैंने तुम लोगों से यह कहा कि कोई भी मेरे पास तबतक नहीं आ सकता, जबतक कि उसे पिता से यह वरदान न मिल जाये।" इसके बाद बहुत-से शिष्य अलग हो गये और उन्होंने उनका साथ छोड़ दिया। इसलिये येसु ने बारहों से कहा, "क्या तुम लोग भी चले जाना चाहते हो। सिमोन पेत्रुस ने उन्हें उत्तर दिया, " प्रभु ! हम किसके पास जायें आपके शब्दों में ही अनन्त जीवन का संदेश है। हमने विश्वास कर लिया और हम जान गये है कि आप ईश्वर के भेजे हुए परमपावन पुरुष हैं " येसु ने उनसे कहा, " क्या मैंने तुम बारहों को नहीं चुना ? तब भी तुम में से एक शैतान है। "

वरदान असीमित
मित्रो, अभी हमने प्रभु के दिव्य वचनों को सुना है। मेरा विश्वास है कि जब भी हम प्रभु की वाणी को सुनते हैं तो हमारे लिये और हमारे परिवार के लिये एक बड़ा वरदान है। मित्रो, मैं इस सच्चाई पर भी आस्था रखता हूँ कि जब ईश्वर का वरदान किसी के जीवन या परिवार में आता है तो इससे सिर्फ़ एक व्यक्ति को लाभ नहीं होता है इससे पूरे समाज और कलीसिया को लाभ होता है। मित्रो, आज प्रभु की जिस वाणी ने मुझे प्रभावित किया वह है उसके कई शिष्य प्रभु से अलग हो गये। मित्रो, आपने ग़ौर किया है कि जब प्रभु ने लोगों को रोटियाँ खिलायीं थी तो लोगों की संख्या बढ़ती जा रही थी वे उसे खोज रहे थे। लोग प्रसन्न थे। शारीरिक भूख की संतुष्टि होने से लोग अनायास ही उसकी ओर खिंचे चले जा रहे थे। पर जैसे ही प्रभु येसु आध्यात्मिक भूख मिटाने की बात करते हैं लोगों को यह बहुत भारी लगने लगता है। प्रभु ने आज लोगों से कहा था कि जब तक वे प्रभु का मांस नहीं खायेंगे और उसका लहू नहीं पीयेंगे वे उसके शिष्य नहीं हो सकते हैं। लोगों ने कहा कि यह शिक्षा कठिन हैं।

निर्णय लेना सीखें
मित्रो, आज प्रभु हमें बताना चाहते हैं कि हमें अपने जीवन में निर्णय लेना सीखना है। हम यह निर्णय लेना है कि अपने जीवन को कैसे संवारेंगे हमें जीवन में निर्णय लेना है कि किस कार्य करने से हमारी आत्मा को शांति मिल पायेगी। मित्रो, आपने ग़ौर किया होगा कि हम सभी लोग शांति की तलाश करते हैं चाहते हैं कि हमारा मन दिल शांत रहे और हम प्रसन्न रहें, हम संतुष्ट रहें। मित्रो, हम इसी शांति को पाने के लिये लगातार प्रयास करते रहते हैं। शांति को खोज करना हर मानव की स्वामाविक इच्छा है जिसे ईश्वर ने सबके दिल में डाल दिया है। येसु भी इसको ठीक से जानते हैं और इसीलिये वे कहते हैं कि हमें न केवल रोटी खाने की आवश्यकता है पर हमें आध्यात्मिक भोजन की आवश्यकता है और उस भोजन को सिर्फ़ येसु ही दे सकते हैं। मित्रो, अगर येसु के जीवन पर मनन-चिन्तन करें तो हम पायेंगे कि येसु का मिशन ही था कि वे लोगों को उस भोजन को दें जिससे मानव को नया जीवन प्राप्त हो। प्रभु चाहते थे कि लोगों का शारीरिक भूख तो मिटे ही पर इससे लोग उस भोजन के लिये तरसें जिससे जीवन मिलता है।

जैसा चुनते, वैसा बनते
मित्रो, मानव की सबसे बड़ी चुनौती है कि वह अपने जीवन में निर्णय ले कि उसे क्या करना है। चुनाव के बारे में यह बात महत्त्वपूर्ण है कि हम जैसा चुनते हैं वैसा ही बनते हैं। कई बार आपने अपने परिवारों में देखा होगा कि एक ही परिवार का एक व्यक्ति सही चुनाव करता है और अपने जीवन को सफल और सुन्दर औऱ सार्थक बनाता है वहीं दूसरा व्यक्ति जीवन में ग़लत संगति का चयन करता है और गलत बातों और सोचों में अपना समय बिताता है और जीवन से भटक जाता है। अगर आप अपने जीवन पर ही ग़ौर करेंगे तो आप पायेंगे कि हमारा जीवन चुनाओं से भरा हुआ है। हम जब हम सुबह में जागते हैं तब ही से हमें बस चुनाव ही करना पड़ता है कि हम क्या करें किसको पहले करें किन बातों को न करें और किन चीजों को कितना करें कितना खायें कहाँ करें कैसे करें हमारा जीवन चुनावों की चुनौतियों से भरा पड़ा है। किसी ने सही ही कहा है कि जो सही चुनता है वही सिकन्दर है।

मित्रो, चुनाव के बारे में एक और बात है वह है कि जब हमें सही और गलत के बारे में चुनाव करना है तो हमें कम परेशानी होती है पर जब हमें यह निर्णय लेना है कि दो सही चीज़ों में हम किसको चुनें तब यह हमारे लिये बहुत ही कठिन हो जाताहै कि किसको अपनायें। मित्रो, आज प्रभु हमें आमंत्रित कर रहे हैं कि हमें प्रभु को चुनना है क्योंकि प्रभु ही हमें जीवन दे सकते हैं। और इस संबंध में प्रभु की बातें बहुत कड़वी हैं । वे कहते हैं कि यदि हम चाहते हैं कि वास्तविक शांति को पायें तो हमें सदा ही येसु को चुनना है। और इस संबंध में प्रभु किसी प्रकार का समझौता नही करना चाहते हैं। वे कहते हैं कि उनकी शिक्षा कठिन है पर जीवनदायी है।

जीवन और शांतिदायी निर्णय
मित्रो. कई बार हमारे निर्णय न तो जीवनदायी होते हैं और न ही वे शांति देने वाले होते हैं पर मनुष्य कई बार उन बातों विचारों और कर्मों के पीछे चलने लगता है जिससे जीवन को क्षणिक सुख प्राप्त होता है। कई बार हमने लोगों को यह कहते हुए सुना है कि आज्ञा मानना कठिन लगता है ध्यान से पढ़ना कठिन लगता है वफादार दोस्त बने रहना कठिन लगता है बुरी संगति और बुरे लतों से दूर जाना कठिन लगता है जब लोग बुराई करने लगते हैं तो उन्हें क्षमा करना और उनके साथ जीना कठिन लगता है। जब हम देखते हैं कि दुनिया बाहरी चीज़ों धन दौलत शान शौकत, व्यक्तिगत लाभ और क्षणिक सुख को महत्त्व देती है तो ऐसे समय में यह उन बातों को जीवन में महत्त्व देना कठिन हो जाता है जो हमे सच्ची शांति दे सकते हैं।

शब्दों में अनन्त जीवन

आज प्रभु न हमें केवल आमंत्रित कर रहे हैं बल्कि चुनौती देते हुए कह रहे हैं कि क्या हम भी प्रभु को छोड़ देना चाहते हैं। क्या हमारा जवाब संत पीटर के समान होगा कि प्रभु हम कहाँ जायें आपके शब्दों में ही तो अनन्त जीवन है। मित्रो, क्या हम उस महिला के समान जिसने उस सात साल के बालक को अपने घर में जगह दिया क्या हम भी विभिन्न सांसारिक चुनौतियों के बावजूद प्रभु को जगह दे पायेंगे। क्या हम जीवन को चुनेंगे या क्षणिक सुख को क्या हम जीवन को चुनेंगे या मृत्यु को। बात स्पष्ट है प्रभु को चुनने वालों को दुःख और बलिदान का सामना करना पड़ता है पर प्रभु के साथ रहने वाले का पुरस्कार है दिल में शांति, संतोष और सच्चा अनन्त जीवन।








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