2012-09-20 11:38:01

प्रेरक मोतीः सन्त अन्द्रेया किम तायगोन (1821-1846)


वाटिकन सिटी, 20 सितम्बर सन् 2012:

सन्त आन्द्रेया किम तायगोन कोरियाई मूल के प्रथम काथलिक पुरोहित थे। 18 वीं शताब्दी के अन्त में, कोरिया में, लोकधर्मी काथलिक विश्वासियों के धर्म प्रचार के परिणामस्वरूप शनैः शनैः काथलिक धर्म ने जड़ पकड़ना आरम्भ कर दिया था। इसी पृष्ठभूमि में, सन् 1836 ई. के आसपास, फ्राँस से पेरिस के मिशनरियों का कोरिया आगमन हुआ।

आन्द्रेया किम तायगोन के माता पिता ने काथलिक धर्म का आलिंगन कर लिया था जिसके लिये उनके पिता को शहीद होना पड़ा था क्योंकि, कनफ्यूशन धर्म का पालन करनेवाले तत्कालीन कोरिया में, अन्य धर्मों का पालन वर्जित था। 15 वर्ष का आयु में किम पुर्तगाल शासित माकाओ चले गये थे जहाँ उन्होंने बपतिस्मा संस्कार ग्रहण किया तथा दर्शन और ईशशास्त्र के अध्ययन हेतु गुरुकुल में भर्ती हो गये। नौ वर्ष तक अध्ययन करने के उपरान्त, सन् 1844 में, आन्द्रेया किम शंघाई में पुरोहित अभिषिक्त किये गये। अपने पुरोहिताभिषेक के बाद वे पुनः अपनी मातृभूमि कोरिया लौटे गये ताकि कोरियाई लोगों को सुसमाचार का प्रकाश दिखा सकें।

19 वीं शताब्दी के दौरान, कोरिया में, होसेओन वंश के शासनकाल में, ख्रीस्तीय धर्म को अत्यधिक प्रताड़ित किया गया। हज़ारों ख्रीस्तीयों को कारावासों में बन्द कर दिया गया तथा ख्रीस्तीय विश्वास का परित्याग न करनेवालों को मौत के घाट उतार दिया गया। ख्रीस्तीय धर्मानुयायी गुप्त रूप से अपने धर्म पालन के लिये बाध्य हो गये। ऐसे कठिन समय में आन्द्रेया किम ने लोगों में ख्रीस्तीय विश्वास की ज्योत जगाई किन्तु सन् 1846 ई. में, 25 वर्षीय काथलिक पुरोहित आन्द्रेया किम तायगोन को कड़ी यातनाएँ दी गई तथा सेओल की हान नदी के तट पर लाकर, उनके सिर को धड़ से अलग कर, उन्हें मार डाला गया।

छः मई सन् 1984 ई. को सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय ने, कोरिया में अपनी प्रेरितिक यात्रा के दौरान, कोरियाई काथलिक पुरोहित एवं शहीद आन्द्रेया किम तायगोन को सन्त घोषित कर वेदी का सम्मान प्रदान किया था। शहीद फादर किम के साथ साथ कोरिया के 103 शहीदों को भी इसी अवसर पर सन्त घोषित किया गया था। इनमें कोरिया के लोकधर्मी पौल चोंग हासंग भी सम्मिलित हैं। सन्त आन्द्रेया किम तायगोन तथा कोरिया के शहीदों का स्मृति दिवस 20 सितम्बर को मनाया जाता है।


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