2012-09-15 08:28:06

प्रेरक मोतीः सन्त वालेरियन (दूसरी शताब्दी)


वाटिकन सिटी, 15 सितम्बर सन् 2012:

फ्राँस में लियों के धर्माध्यक्ष पोथीनुस के साथ साथ, सन् 177 ई. में, लियों के शहीदों का नरसंहार मार्क आओरेलियो के युग में हुआ था। कहा जाता है कि ईश्वरीय हस्तक्षेप के फलस्वरूप मारसेलुस नामक एक ख्रीस्तीय पुरोहित शालोन-सुर-साओने निकल भागने में सफल हो गये थे जहाँ उन्हें पनाह दी गई। मारसेलुस के मेज़बान एक ग़ैरविश्वासी एवं मूर्तिपूजक थे। मेज़बान को मंगल, बुध और मिनेरवा देवी-देवताओं की पूजा करते देख मारसेलुस ने उन्हें सुसमाचार का प्रकाश दिखाया जिसके परिणामस्वरूप मेज़बान ने ख्रीस्तीय धर्म का आलिंगन कर लिया था।

उत्तर की ओर यात्रा करते समय राज्यपाल प्रिसकुस से मारसेलुस की मुलाकात हुई जिन्होंने उन्हें अपने यहाँ आने का निमंत्रण दिया। मारसेलुस ने निमंत्रण स्वीकार कर लिया किन्तु जब उन्होंने देखा कि प्रिसकुस धार्मिक अनुष्ठान की तैयारी कर रहे थे तब उन्होंने, उनसे यह कहकर कि वे ख्रीस्तीय धर्मानुयायी थे, माफी मांग ली। बस क्या था पास खड़े लोगों में हंगामा मच गया। उन्होंने इसे उनका अपमान माना तथा मारसेलुस को जान से मार डालने का निश्चय कर लिया। उन्होंने मारसेलुस की टांगों को दो पड़ों से बाँध दिया। राज्यपाल ने मारसेलुस से आग्रह किया कि वे अपनी जान बचाने के लिये शनि देव की मूर्ति के आगे नतमस्तक हो जायें तथा पूजा में भाग लेलें। मारसेलुस ने इनकार कर दिया जिसके बाद उन्होंने उन्हें पेड़ पर यों ही लटका रहने दिया। तीन दिन बाद मारसेलुस की मृत्यु हो गई।

रोमी शहीदनामे के अनुसार, साओने नदी के तट पर, शहीद सन्त मारसेलुस के साथ जो व्यक्ति थे वे थे वालेरियन जिनका पर्व 15 सितम्बर को मनाया जाता है। कहा जाता है कि मारसेलुस के संग वालेरियन भी बन्दीगृह से भागने में सफल हो गये थे किन्तु बाद में आऊतुन के निकट तोरनुस में विश्वास के ख़तिर मौत के घाट उतार दिये गये थे। सन्त वालेरियन का पर्व 15 सितम्बर को मनाया जाता है।

चिन्तनः अत्याचारों एवं उत्पीड़न के बावजूद ईश्वर में अपने विश्वास को हम कदापि न खोयें बल्कि उदार कार्यों एवं सतत् प्रार्थना द्वारा सम्बल प्राप्त करें।








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