2012-09-06 18:17:54

भारत में रह रहे श्रीलंका के शरणार्थी अपने देश लौटने के इच्छुक नहीं


तमिलनाडु 6 सितम्बर 2012 (फीदेस) श्रीलंका में सन 1983 से लेकर 2009 तक चले गृहयुद्ध की समाप्ति के तीन साल बाद भी भारत में रह रहे तमिल मूल के अधिकांश श्रीलंका शरणार्थी वित्तीय कठिनाईंयों और मानवाधिकार हनन के भय से अपने देश नहीं लौटना चाहते हैं। भारत सरकार के एक आंकलन के अनुसार तमिलनाडु में तमिल मूल के लगभग एक लाख शरणार्थी जिन्में लगभग 68 हजार 112 सरकारी शिविरों में तथा 32 हजार लोग शिविरों के बाहर जीवन यापन कर रहे हैं।
अन्य रिपोर्टों के अनुसार उत्तर में मानवाधिकार हनन होने की खबरें हैं तथा सशस्त्र संघर्ष की अवधि के दौरान गमुशुदा हजारों लोगों की समस्या का समाधान पाने के लिए सरकार की अक्षमता भी है। मानवाधिकार संबंधी संयुक्त राष्ट्रसंघीय उच्चायुक्त के कार्यालय की वर्किंग ग्रुप ने देश में युद्ध से जुडें गुमशुदा हुए लोगों के लगभग 5 हजार मामले पंजीकृत किये हैं। मानवाधिकार संबंधी संयुक्त राष्ट्रसंघीय उच्चायोग द्वारा उपलब्ध कराये जा रहे आर्थिक मदद के बावजूद मात्र 5 हजार लोग श्रीलंका अपने घर वापस लौटे हैं। कुछ अन्यों के लिए अपने शरणार्थी पदवी को बनाये रखना ही अधिक लाभप्रद है।
श्रीलंका के उत्तरी क्षेत्र में जाफना तथा त्रिंकोमाल्ली के कुछ क्षेत्र अधिक स्थायी हैं जबकि अन्य क्षेत्रों में युद्ध के कारण बहुत विनाश हुआ तथा बुनियादी संरचनाओं का भी अभाव है। सन 1983 , 1987 की अवधि में अधिकांश शरणार्थी भारत आये। एक आंकलन के अनुसार भारत के शरणार्थी शिविरों में रह रहे लोगों की आधी आबादी का जन्म शिविरों में हुआ इसलिए वे श्रीलंका के बारे में बहुत कम जानते हैं।








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