संत पापा के लिए कलीसियाई एकतावर्द्धकता प्राथमिक महत्व की
वाटिकन सिटी 31 अगस्त 2012 (सीएनएस) आस्ट्रिया स्थित वियेन्ना के कार्डिनल क्रिस्टोफ
शेनबोन ने कहा कि अपने भूतपूर्व छात्रों के साथ कलीसियाई एकतावर्द्धकता के मुद्दे पर
विचार विमर्श करने का संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें का निर्णय उनके द्वारा मसीही एकता की
खोज को दिये जानेवाले महत्व को दर्शाता है। आस्ट्रियाई कार्डिनल शोनबोन जो प्रोफेसर
जोसेफ राटसिंगर के छात्र रहे हैं उन्होंने 30 अगस्त को वाटिकन रेडियो से बात करते हुए
कहा कि संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें सन 1977 से ही प्रतिवर्ष अपने भूतपूर्व छात्रों के
साथ तीन दिवसीय विचार विमर्श का आयोजन करते हैं जिसे राटसिंगर स्टूडेंट सर्कल कहा जाता
है। उन्होंने कहा कि यह तथ्य कि संत पापा ने इस वर्ष की बैठक के लिए कलीसियाई एकतावर्द्धकता
को चुना जो चिह्न है कि उनके लिए कलीसियाई एकतावर्द्धकता का सवाल प्राथमिक महत्व का है।
यह इस लिए भी विशेष है क्योंकि काथलिक कलीसिया द्वितीय वाटिकन महासभा के शुरू होने की
50 वीं वर्षगाँठ का समारोह मनाने की तैयारी कर रही है। इस महासभा ने ही कलीसिया के कलीसियाई
एकतावर्द्धकता संबंधी एजेंदा को तय किया था। 31 अगस्त से कास्तेल गोंदोल्फो में सम्पन्न
हो रही संत पापा के भूतपूर्व विद्यार्थियों की तीन दिवसीय विचार विमर्श बैठक का आधार
कार्डिनल वाल्टर कास्पर की हारवेस्टिंग द फ्रुटस नामक पुस्तक है। यह पुस्तक वाटिकन द्वितीय
महासभा के बाद आंगलिकन, लुथरन, मेथोडिस्ट और पुर्नजागृत समुदायों के साथ काथलिक कलीसिया
के संबंध और ईशशास्त्रीय संवाद के जरिये पहुँचे समझौतों का संग्रह है। 3 दिवसीय विचार
गोष्ठी में लगभग 40 लोग शामिल हो रहे हैं। कार्डिनल शोनबोन के कहा कि यह अकादमिक सर्कल
है जहाँ तर्कों की महत्ता है। इस वार्षिक अध्ययन बैठक के लिए संत पापा की मनोदशा न केवल
अकादमिक लेकिन भूतपूर्व छात्रों के प्रति पिता तुल्य तथा बंधुत्व की होती है। राटसिंगर
स्टूडेंट सर्कल, सन 1977 से ही ग्रीष्मकाल में आयोजित की जाती रही है जिसमें प्रोफेसर
जोसेफ रातसिंगर अर्थात वर्तमान संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें के अनेक विद्यार्थी शामिल होते
रहे हैं। जर्मनी के विभिन्न विश्वविद्यालयों में वर्तमान संत पापा द्वारा ईशशास्त्र का
अध्यापन करते समय इन छात्रों ने उनके निर्देशन में अपने शोध पत्रों को प्रस्तुत किया
था। संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने अपने अकादमिक कैरियर के दौरान जर्मनी के बान मुसंटर,
तुबिनगेन और रीगेंसबुर्ग के विश्वविद्यालयों में 26 वर्षों तक ईशशास्त्र का अध्यापन किया
था। वे सन 1977 में म्यूनिख और फ्रेंइसिंग के महाधर्माध्यक्ष नियुक्त किये गये थे।