2012-08-06 12:21:36

कास्टेल गोन्दोल्फोः रविवारीय देवदूत प्रार्थना से पूर्व दिया गया सन्त पापा का सन्देश


कास्टेल गोन्दोल्फो, 06 अगस्त सन् 2012 (सेदोक): रोम शहर के परिसर में कास्टेल गोन्दोल्फो स्थित प्रेरितिक प्रासाद के झरोखे से, रविवार 05 अगस्त को, मध्यान्ह देवदूत प्रार्थना से पूर्व, तीर्थयात्रियों एवं पर्यटकों के समुदाय को सम्बोधित कर सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने कहाः

"अति प्रिय भाइयो एवं बहनो,

इस रविवार के लिये निर्धारित शब्द की पूजन पद्धति में सन्त योहन रचित सुसमाचार के छठवें अध्याय का पाठ जारी रहता है। हम कफरनहूम के यहूदी सभागृह में हैं जहाँ रोटियों के गुणन के बाद येसु अपना विख्यात प्रवचन जारी कर रहे थे। लोग उन्हें राजा बनाने की कोशिश कर रहे थे, किन्तु येसु पहले पहाड़ पर और फिर कफरनाहूम की ओर चले गये। उन्हें न देखकर लोगों ने उन्हें ढूँढ़ना शुरु कर दिया था, लोग झील के दूसरे छोर तक उन्हें खोजने के लिये नावों पर सवार हो गये थे तथा अन्ततः उन्होंने उन्हें खोज लिया था। परन्तु येसु इस बात से भलीप्रकार परिचित थे कि लोग क्यों इतने उत्साह के साथ उनका अनुसरण कर रहे थे अस्तु, उन्होंने उनसे स्पष्ट शब्दों में कहा, "तुम मेरी तलाश कर रहे हो इसलिये नहीं कि तुमने संकेत देखें हैं बल्कि इसलिये कि तुमने रोटियाँ खाई हैं तथा उन्हें खाकर तुम तृप्त हुए हो। सन्त योहन रचित सुसमाचार के छठवें अध्याय के 26 वें पद में हम पढ़ते हैः "ईसा ने उत्तर दिया, ‘‘मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ- तुम चमत्कार देखने के कारण मुझे नहीं खोजते, बल्कि इसलिए कि तुम रोटियाँ खा कर तृप्त हो गये हो।"

सन्त पापा ने आगे कहा, "येसु लोगों की मदद करना चाहते थे कि वे अपनी ज़रूरतों को पूरी करनेवाली सामग्री की तत्काल संतुष्टि से परे जायें तथा भौतिक चीज़ों से कहीं अधिक महत्वपूर्ण चीज़ों पर ध्यान दें। प्रभु ने उनके समक्ष अस्तित्व के उस क्षिजित को खोलना चाहा जो खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने तथा व्यवसाय में विकसित होने की दैनिक चिन्ता मात्र तक सीमित नहीं है। येसु उस भोजन की बात कर रहे थे जो कभी समाप्त नहीं होता, कभी ख़राब नहीं होता, और जिसे खोजना एवं जिसका स्वागत करना हर एक के लिये महत्वपूर्ण है। वे कहते हैः "नश्वर भोजन के लिए नहीं, बल्कि उस भोजन के लिए परिश्रम करो, जो अनन्त जीवन तक बना रहता है और जिसे मानव पुत्र तुम्हें देगा ; क्योंकि पिता परमेश्वर ने मानव पुत्र को यह अधिकार दिया है।''

सन्त पापा ने कहा, "जनसमुदाय येसु की बात तब भी समझ नहीं पाया, लोगों ने सोचा कि उस चमत्कार को जारी रखने के लिये प्रभु येसु नियमों के पालन का आग्रह कर रहे थे अस्तु उन्होंने येसु से पूछाः "ईश्वर की इच्छा पूरी करने के लिए हमें क्या करना चाहिए?" येसु का उत्तर स्पष्ट हैः "ईश्वर की इच्छा यह है- उसने जिसे भेजा है, उस में विश्वास करो"। अस्तित्व का केन्द्र, जो हमारी प्रायः कठिन जीवन यात्रा को पूर्ण अर्थ एवं दृढ़ आशा प्रदान करता है वह है येसु में विश्वास, येसु से साक्षात्कार। यह केवल किसी विचार, भाव, धारणा अथवा योजना के अनुसरण की बात नहीं है अपितु एक जीवन्त व्यक्ति रूप में येसु से साक्षात्कार करने की बात है। पूरी तरह से उनके द्वारा तथा उनके सुसमाचार द्वारा अभिभूत हो जाने की बात है। येसु हमें आमंत्रित करते हैं कि हम मानव अस्तित्व तक ही सीमित न रहें बल्कि अपने मन के द्वारों को, ईश्वरीय क्षितिज तक, विश्वास के क्षितिज तक खोलें। वे एक ही कार्य का आग्रह करते हैं कि हम ईश योजना का पालन करें तथा "उनमें विश्वास करें जिन्हें ईश्वर ने भेजा है" (पद संख्या 29)।

सन्त पापा ने कहा, "मूसा ने इस्राएल को मन्ना यानि आकाश से आनेवाली रोटी खिलाई थी, जिससे ईश्वर ने स्वयं अपने लोगों को तृप्त किया था। येसु केवल कुछ प्रदान नहीं करते वे तो स्वतः को अर्पित कर देते हैं क्योंकि वे ही, "स्वर्ग से आनेवाली सच्ची रोटी हैं", और उनके साथ साक्षात्कार के द्वारा ही हम जीवन्त ईश्वर का साक्षात्कार करते हैं।

सन्त योहन रचित सुसमाचार के अनुसार, रोटी के गुणन का चमत्कार जारी रखने हेतु सबकुछ करने को तत्पर जनसमुदाय येसु से प्रश्न करता हैः "ईश्वर के कार्यों को सम्पादित करने के लिये हमें क्या करना चाहिये?" किन्तु येसु को जो जीवन की सच्ची रोटी हैं तथा सत्य हेतु सही अर्थों में हमारी भूख को संतुष्ट करते हैं, मानवीय श्रम से प्राप्त नहीं किया जा सकता; वे हमारे पास केवल ईश्वर के प्रेम के कारण वरदान स्वरूप आते हैं, ईश्वर के कृत्य रूप में जिसके लिये विनती करना तथा जिसका स्वागत किया जाना अनिवार्य है।

अन्त में सन्त पापा ने कहा, "प्रिय मित्रो, चाहे काम और समस्याओं से भरे दिन हों या फिर विश्राम एवं अवकाश के दिन, प्रभु हमें इस तथ्य को कदापि न भुलाने के लिये आमंत्रित करते हैं कि यदि भौतिक रोटी के लिये चिन्तित रहने तथा उसके लिये अपनी सारी शक्ति लगा देने की आवश्यकता है तो उससे भी अधिक महत्वपूर्ण एवं ज़रूरी है उनके साथ अपने रिश्ते को विकसित करने तथा अपने विश्वास को मज़बूत करने की जो ख़ुद "जीवन की रोटी" हैं और जो सत्य एवं प्रेम हेतु हमारी इच्छा को पूर्ण करते हैं। पवित्र कुँवारी मरियम, रोम के सान्ता मरिया माज्ज्योरे महागिरजाघर के अनुष्ठान के पर्व दिवस पर, विश्वास की हमारी तीर्थयात्रा में हमें समर्थन प्रदान करें।

इतना कहकर सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने उपस्थित भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सबपर प्रभु ईश्वर की शांति का आह्वान कर सबको अपनी प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।

तदोपरान्त सन्त पापा ने देश विदेश से कास्टेल गोन्दोल्फो पहुँचे तीर्थयात्रियों एवं पर्यटकों को विभिन्न भाषाओं में मंगलकामनाएँ अर्पित कीं। अँग्रेज़ी भाषा में उन्होंने कहा, "आज, यहाँ उपस्थित सभी अँग्रेज़ी भाषा भषियों का मैं हार्दिक अभिवादन करता हूँ तथा शुभकामना करता हूँ कि रोम में आपका पड़ाव सुखद रहे तथा आपको प्रभु येसु के ख्रीस्त निकट लाने में मदद प्रदान करे। आज के लिये निर्धारित सुसमाचार पाठ में येसु जनसमुदाय से कहते हैं: "मैं जीवन की रोटी हूँ।" जो मेरे पास आयेगा वह कभी भूखा नहीं रहेगा, जो मुझपर विश्वास करेगा उसे कभी प्यास नहीं लगेगी।" सन्त पापा ने कहा, "आइये हम उनमें अपने विश्वास की अभिव्यक्ति करें तथा उनका प्रतिज्ञाओं में आस्था रखें ताकि हम विपुल जीवन प्राप्त कर सकें। ईश्वर आप सबको आशीष दें।"








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