2012-07-30 20:46:47

वर्ष ‘ब’ का सत्रहवाँ रविवार - 29 जुलाई, 2012


राजाओं का दूसरा ग्रंथ 4,. 42-44
एफ़ेसियों के नाम 4, 1-6
संत योहन 6, 1-15

जस्टिन तिर्की, ये.स.
मित्रो, आज आपको एक घटना के बारे में बताता हूँ जो फिलीपींस की राजधानी मनीला में मेरे साथ घटी थी। गर्मी का समय था। उस दिन मैं यूनिवर्सिटी ऑफ फिलीपींस के कैपस में अपने अध्ययन के सिलसिले में गया हुआ था। जब सारा काम समाप्त हो गया तो मैं ठंठे पानी की तलाश में एक छोटे से होटेल के पास पहुँचा। मैंने पीने के लिये ‘स्पराइट’ माँगी और दुकानदार ने मुझे हरे रंग की बोतल पकड़ा दी। थका-मांदा मैं स्पराइट पीने वाला था कि मैंने अनुभव किया कि कोई मेरी बगल में है। एक सात साल का लड़का मेरी ओर ताक रहा था। मैंने उससे पूछा कि वह भी ‘स्पराइट’ पीयेगा। तब उसने सिर हिलाते हुए ‘हाँ’ कहा। मैंने उसके लिये भी एक बोतल मंगायी। और एक पैकेट बिस्किट भी माँगे। उधर दुकानदार मेरे लिये बिस्किट और ‘स्पराइट’ दे ही रहा था कि मैंने सुना वह बालक अपने कुछ साथियों को बुला रहा है। देखते-देखते वहाँ पर पाँच अन्य छोटे-छोटे बच्चे जमा हो गये। मैंने उनसे पूछा कि वे कौन हैं? तब उसने बताया की मिसेल, टीना और माइकल उसके भाई-बहन हैं और जोयस और अन्हेलो उसके चचेरे भाई-बहन हैं। मैंने कहा सबों को मिठाई चाहिये। रायन नामक उस बालक ने तपाक से कहा कि ‘हाँ’ सबके लिये चाहिये। मैंने उनके लिये उस दुकान से आम का ‘जूस’ खरीदा और कुछ बिस्किट और उन्हें विदा किया। उस दिन के बाद से जब भी मैं यूनिवर्सिटी जाता अगर वे उस कैपस के मैदान में खेलते होते तो दूर से ही हाथ हिलाकर मुझे अपना प्यार दिखाते। मेरा उनके साथ एक नया रिश्ता बन गया था। मैंने उन्हें कुछ दिया पर उन्होंने मुझे जो कुछ दिया वह भुलाये नहीं भूलता। मैं सोचता रहा रायन नामक उस नन्हें बालक ने ‘स्पराइट’ और बिस्किट अकेले नहीं खाया पर उसे वह बाँटना चाहा और बाँटने की खुशी अपार है। बाँटने से देने वाले को तो खुशी मिलती ही है पाने वाले को भी यह लगता है कि इस दुनिया में अच्छे लोग हैं लगता है भगवान उनके आस-पास है।
मित्रो, रविवारीय आराधना विधि चिन्तन कार्यक्रम के अंतर्गत पूजन-विधि पंचांग वर्ष के सतरहवें रविवार के प्रस्तावित पाठों के आधार पर हम मनन चिन्तन कर रहे हैं। आज के सुसमाचार में एक घटना का वर्णन है जिसमें देने के सुख और चमत्कार के बारे बताया गया है।

येसु गलीलिया अर्थात् तिबेरियस के समुद्र के उस पार चले गये। एक विशाल जनसमूह उनके पीछे हो लिया, क्योंकि लोगों ने उन चमत्कारों को देखा तो जिन्हें येसु बीमारों के लिये करते थे। येसु पहाड़ी पर चढ़े और वहीँ अपने शिष्यों के साथ बैठ गये। यहूदियों का पास्का पर्व निकट था । येसु ने अपनी आँखे ऊपर उठायीं और देखा कि एक विसाल जनसमूह उनकी ओर आ रहा है और उन्होंने फ़िलिप से यह कहा, “हम इन्हें खिलाने के लिये कहाँ से रोटियों खरीदें? उन्होंने फ़िलिप की परीक्षा लेने के लिये यह कहा। वह तो जानते ही थे कि वह क्या करेंगे। फ़िलिप ने उन्हें उत्तर दिया, "दो सो दीनार की रोटियाँ भी इतनी नहीं होंगी कि हर एक को थोड़ी-थोड़ी मिल सके।" उनके शिष्यों मे से एक, सिमोन पेत्रुस के भाई अंद्रेयस ने कहा, "यहाँ एक लड़के के पास जौ की पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ है, पर यह इतने लोगों के लिये क्या है? येसु ने कहा, "लोगों को बैठा दो।" उस जगह बहुत घास थी, लोग बैठ गये। पुरुषों की संख्या लगभग पँच हज़ार थी। येसु ने रोटियाँ ले ली, धन्यवाद की प्रार्थना पढ़ी और बैठे हुए लोगों में उन्हें उनकी इच्छा पार बँटवायी। उन्होंने मछलियाँ भी इसी तरह बँटवायीं। जब लोग खा कर तृप्त हो गये, तो येसु ने अपने शिष्यों से कहा, "बचे हुए टुकड़े बटोर लो, जिससे कुछ भी बरबाद न होने पाये।" इसलिये शिष्यों ने उन्हें बटोर लिये और उन टुकड़ों से बारह टोकरे भरे जो लोगों के काने के बाद जौ की रोटियों से बच गये थे। लोग येसु का यह चमत्कार देख कर बोल उठे, "निश्चय ही यह नबी हैं, जो संसार में आने वाले हैं।" येसु समझ गये कि वे आकर मुझे राजा बनाने के लिये पकड़ ले जायेंगे, इसलिये वह फिर अकेले ही पहाड़ी पर चले गये।
मित्रो, मेरा पूरा विश्वास है कि आप लोगों ने आज के सुसमाचार को ध्यान से सुना है और प्रभु की आशिष से आपका पूरा परिवार लाभान्वित हुआ है। आज प्रभु चाहते हैं कि हमें पूर्ण आध्यात्मिक संतुष्टि दें। मित्रो, आज जिस बात ने मुझे प्रभावित किया है वह है येसु के द्वारा दिखाया गया समस्या के समाधान का तरीका। हममें से प्रत्येक जन जीवन में समस्याओं का सामना करता है। एक बार किसी ने मेरे जीवन में बहुत समस्यायें तो दूसरे ने कहा कि हमें कोई एक ऐसा व्यक्ति बताओ जिसके पास कोई समस्या नहीं है। मित्रो, हम सभी कोई समस्याओं का समाधान अपने-अपने तरीके से खोजते हैं और अपने ही तरीके से इस पर विजय भी प्राप्त करते हैं। हम पैसा खर्च करते हैं, दूसरों से मदद माँगते हैं, दूसरों से सलाह लेते हैं और हम उन लोगों के पास जाते हैं जिन्होंने समस्याओं का समाधान किया है। हम गिरजा, गुरुद्वारा, मंदिर और मसजिद जाकर भगवान से दुआ और आशिष माँगते हैं ताकि हमारी समस्याओं का समाधान हो सकें। समय बीतता है, हमारी समस्यायें समाप्त हो जाती हैं और हम मजबूत होकर जीवन में आगे बढ़ने लगते हैं। मित्रो, आज प्रभु के सामने भी एक बड़ी समस्या है उसे पाँच हज़ार लोगों को खिलाना है। लोग उसका उपदेश सुनते-सुनते खाना-पीना भूल गये हैं, पर एक समय आया जब उनके लिये भोजन का इन्तजाम करना ज़रूरी हो गया था। येसु ने अपने चेलों से कहा कि वे कोई उपाय करें पर उन्हें कुछ नहीं सूझ रहा था। फिलिप ने समस्या की गंभीरता को उज़ागर करते हुए कहा कि वे जितना भी दीनार या रुपया खर्च करें वो कम ही था। पाँच हज़ार लोगों के लिये रोटियाँ उपलब्ध करा पाना आसान नहीं था। एक दूसरे शिष्य अन्द्रेयस ने संभवतः शर्माते हुए कहा था कि एक लड़के के पास पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ हैं। पर उसकी वाणी से लाचारी साफ झलक रही थी। उसने कहा कि उसे पता चला है कि पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ हैं पर यह उनके लिये उँट के मुँह में जीरा के समान है। मित्रो, आपने ग़ौर किया होगा कि जिसने भी समस्या के समाधान का प्रयास किया अन्त में अपने आपको लाचार या कमजोर पाया। उसे लगा कि समस्या बड़ी है व्यक्ति उसके सामने एक छोटा-सा प्राणी मात्र है।
मित्रो, अब आइये हम प्रभु के पास आयें वे हमसे क्या बताना चाहते हैं समस्याओं के समाधान के बारे में। प्रभु ने उन्हीं पाँच रोटियों और दो मछलियों को ले लीं धन्यवाद की प्रार्थना पढ़ी और रोटियों बाँटने के लिये दे दिया और पाँच हज़ार लोग खाकर तृप्त हो गये और 12 टोकरे भी बच गये। मित्रो, प्रभु हमसे आज चार बातें बताना चाहते हैं। पहली बात कि हम समस्या के समाधान के लिये मदद माँगे। जब भी हमारे जीवन में कोई समस्या आ जाये तो हम सिर्फ़ हाय-हाय न करें पर लोगों के पास जायें और उनसे मदद की गुहार करें। उनसे सलाह लें। हम जब लोगों को पास मदद और सलाह के लिये जायें तो यह न सोचें कि लोगों की सलाह, आर्थिक मदद और उनके बहुमूल्य समय से बढ़कर और कुछ नहीं है। मित्रो, प्रभु आज हमें बताना चाहते हैं कि मानवीय और आर्थिक मदद के अलावा एक और बात महत्त्वपूर्ण है वह ईश्वरीय या आध्यात्मिक मदद।
कई बार तो जब हम ईश्वर की दया और दुआ खोजने लगते हैं तो कई अन्य समस्यायों खुद-ब-खुद निकल जाती हैं या टल जाती हैं।
मित्रो, समस्या के समाधान में जो दूसरी बात हमें ध्यान देना प्रभु सिखला रहें हैं वह है कि प्रभु के लिये छोटी अच्छी बातें छोटी नहीं हैं वे बहुत बड़ी है। प्रभु को दिल से दिया गया छोटा दान बहुत बड़ा है। ईश्वर इसका उपयोग अपनी महिमा को दिखाने के लिये करते हैं। कई बार हम सोचते हैं कि यदि केवल मैं अकेले भला कार्य करुँ तो इससे क्या होने वाला है। कई बार यह भी सोचते हैं कि जो कुछ मुझमें अच्छा है वह सागर में एक बूँद के समान है या हम कहें सूर्य के सामने एक दीप जलाने के समान है। मेरा योगदान बहुत ही नगण्य है। पर मित्रो, प्रभु की पुकार है और उनका आमंत्रण है कि हम अपनी अच्छाई को देना सीखें जैसे उस बालक ने पाँच मछलियों को दिये और देखिये भूख के समय जो रोटी दो व्यक्तियों के लिये काफ़ी नहीं था पाँच हज़ार लोगों को तृप्त करने का कारण बन गया।
तीसरी बात, प्रभु चाहते हैं कि हम हर विपत्ति से हर तकलीफ़ से और हर चुनौती से जीवन में कुछ सीखें औऱ नया बनें और ईश्वर की महिमा के लिये कार्य करें। हर दुःख में कहीं न कहीं ईश्वरीय की इच्छा छिपी हुई है। ईश्वर हमारे जीवन में विपत्तियाँ आने की छूट देते हैं ताकि हम ईश्वर को न भूलें और अपने जीवन में आगे बढ़ सकें। कई बार हमने लोगों को यह कहते सुना है कि दुःख तकलीफ के समय में मैने जाना कि ईश्वर उन्हें कितना प्यार करते हैं।
इस प्रकार मित्रो, समस्या के समाधान में प्रभु हमसे कह रहे हैं कि हम प्रयास जारी रखें हिम्मत न हारें प्रभु के पास आयें दूसरी बात कि हम अपना जो कुछ भी भला और अच्छा है उसे प्रभु को दें तीसरी बात दुःख में प्रभु की इच्छा को पहचानें। मित्रो, विपत्ति के समय में एक अंतिम बात याद रखें वह है कि प्रभु ही हमें असल संतुष्टि दे सकते हैं। अगर हम अपने जीवन में प्रभु की इच्छा को देख सकें यदि हम सदा उसके वरदानों को पहचान सकें यदि हम सदा ही प्रभु की ओर मुढ़कर देखें तो अवश्य ही हमारा जीवन खुशियों से भर जायेगा। और हम उस खुशी को फिलीपींस के उस सात वर्षीय बालक रायन के समान बाँटने के लिये उत्साहित हो जायेंगे और उससे खुद को तो आनन्द और संतुष्टि मिलेगी ही जग में भलाई सच्चाई और अच्छाई का प्रचार-प्रसार होगा और एक नयी दुनिया का निर्माण होगा।








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