नबी आमोस 7, 12-15 एफेसियों के नाम 1, 3-14 संत मारकुस 6, 7-13 जस्टिन तिर्की,
ये.स.
नीलमणि की कहानी
मित्रो, आज आप लोगों को एक कहानी बताता हूँ जिसे
मुम्बई के पूर्व धर्माध्यक्ष ने अपने कहानी संकलन में बताया है। उनके अनुसार एक बार एक
नौकरी के लिये एक विज्ञापन निकाला गया था। उस नौकरी के लिये कई लोगों ने अपने आवेदन भरे
थे। आवेदन पत्र में नाम, गाँव, जिला, थाना और कार्य-अनुभवों को भरने के लिये खाली स्थान
थे। सब आवेदन कर्त्ताओं ने बिना किसी परेशानी के उन खाली जगहों को भर दिया। जब वे आवेदन
पत्र के अंतिम सवाल पर पहुँचे तो सब रुक गये और कुछ देर सोचने लगे। अंतिम सवाल था कि
क्या आपमें नेतृत्त्व का गुण है। सब ही आवेदन कर्त्ताओं ने कुछ देर सोचा और फिर अपना
जवाब लिखकर जमा कर दिया। कुछ दिनों के बाद कई लोगों को उस कम्पनी में नौकरी के लिये बुलावा
आया। कम्पनी के मैनेजर ने सभी नये सदस्यों को एक-एक कर बुला कर मुलाकात की और उन्हें
कम्पनी का काम समझा दिया। उस दल में एक नीलमणि नाम की एक लड़की थी वह गाँव से आयी थी।
उसे भी नौकरी के लिये चुन लिया गया था। जब उसे मैनेजर ने बुलाया तो वह थोड़ी-सी सहमी
हुई थी। जब मैनेजर ने कहा वह एक सवाल पूछना चाहता है तो वह और भी झेंप गयी। मैनेजर ने
उससे पूछा कि उसने आवेदन पत्र ऐसा क्यों लिखा था कि उसमें नेतृत्त्व का गुण नहीं है पर
उसमें नेताओं के पीछे चलने का गुण है। तब नीलमणि ने कहा कि सर मैंने समझा नहीं। मैनेजर
ने फिर से पूछा कि तुमने ऐसा क्यों लिखा कि तुममें नेतृत्त्व का गुण नहीं है पर नेताओं
के पीछे चलने का गुण है। तब नीलमणि ने कहा कि उसने वही लिखा है जो सच है। उसने यह भी
बताया कि मैं दूसरों की बतायी गयी बातों को ठीक से सुनती हूँ, उसका पालन करती हूँ और
उसका प्रचार भी वफा़दारी से करती हूँ। मैनेजर बहुत प्रसन्न हुआ और कहा कि नीलमणि यह तुम्हारी
बहुत बड़ी विशेषता है और इसी खूबी के कारण हमारी कम्पनी ऩे तुम्हें शुरु में ही क्षेत्रीय
मैनेजर के पद पर नियुक्त किया है। ऐसा सुन कर नीलमणि के आँखों में आश्चर्यजनक प्रसन्नता
के साथ आँसू छलक आये।
मित्रो, रविवारीय आराधना विधि चिन्तन कार्यक्रम के अन्तर्गत्
पूजन-विधि पंचांग के वर्ष के 15वें रविवार के लिये प्रस्तावित पाठों के आधार पर मनन-चिन्तन
कर रहें हैं। आज प्रभु का हमारे लिये यह आमंत्रण है कि हम उसकी बातो के प्रचार के लिये
निकल पड़ें ताकि प्रभु की बातों को सुनकर अधिक-से-अधिक लोगों को इसका लाभ मिले। लोग प्रभु
के पीछे चलें। लोग उनके आदर्शों पर चल कर सुख और शांति को पायें और अपना जीवन सफ़ल बनायें।
आइये
हम आज के प्रभु के दिव्य वचनों पर चिन्तन करें जिसे संत मारकुस रचित सुसमाचार के 6वें
अध्याय के 7 से 13 पदों से लिया गया है।
सुसमाचार मारकुस 6,7-13
येसु बारहों
को अपने पास बुलाकर और उन्हें अपदूतों पर अधिकार दे कर, दो-दो करके, भेजने लगे। येसु
ने आदेश दिया कि वे लाठी के सिवा रास्ते के लिये कुछ भी नहीं ले जाये - न रोटी, न झोली,
न फेंटे में पैसा। वे पैरों में चप्पल बाँधे और दो करते नहीं पहने। उन्होंने उन से कहा
- जिस घर में ठहरने जाओ, नगर से विदा होने तक वहीं रहो। यदि किसी स्थान पर लोग तुम्हारा
स्वागत न करें और तुम्हारी बातें न सुनें, तो वहाँ से निकल कर उन्हें चेतावनी देने के
लिये अपने पैरों की दूल झाड़ डालो। वे चले गये। उन्होंने लोगों को पश्चात्ताप का उपदेश
दिया, बहुत-से अपदूतों को निकाला और बहुत-से रोगियों पर तेल लगा कर उन्हें चंगा किया।
मित्रो,
मेरा विश्वास है कि आपने प्रभु के दिव्य वचनों को ध्यान से ग़ौर किया है। मेरा यह भी
विश्वास है कि प्रभु के वचन से आपके दिल को प्रेरणायें दीं हैं। वैसे तो आज के सुसमाचार
में वर्णित घटना के बारे में बातें करते हुए हम लोगों को यह कहते हुए सुनते हैं कि येसु
अपने शिष्यों को अपना संदेश देने के लिये भेजते हैं। और मित्रो,, यह बात सही ही है। प्रभु
चाहते हैं कि हम उनके प्रेम के संदेश को दुनिया के कोने-कोने में फैलायें। न केवल जगत्
गुरु येसु पर हर गुरु या हर भला व्यक्ति यही चाहता है कि उसके शिष्य उसकी बातों को सीखें.
उसके द्वारा सिखाये गये मूल्यों औऱ सिद्धांतों को दूसरों को बतायें ताकि भलाई का साम्राज्य
फले-फूले। मित्रो, यदि आप आज के प्रभु के वचनों पर बारीकी से विचार करेंगे तो आप पायेंगे
कि इसमें भला कार्य करने के या कोई ईश्वरीय मिशन को पूरा करने के लिये निर्देश दिये गये
हैं।
गृह-त्याग आज प्रभु के इन निर्देशों मे निहित पाँच बिन्दुओं पर हम
विचार करेंगे। सबसे पहले प्रभु कहते है कि हमें लोगों तक पहुँचना है हमें अपना घर छोड़ना
है हमें घर-घर जाना है।येसु का मानना था कि यदि हम प्रचारक हैं यदि हम चाहते हैं लोग
ईश्वर को जाने पहचाने और उनकी इच्छा के अऩुसार अपना जीवन बितायें तो यह आवश्यक है हमें
उनके पास जाना है। कई बार ऐसा सुनने को मिलता है कि हम आशा करते हैं कि लोग हमारे दरवाज़े
पर आयें ताकि हम उन्हें जीवन के मोतियों को बाँट सकें । पर मित्रो, प्रभु के अऩुसार सुसमाचार
प्रचार का या जीवन में कुछ बड़ा हासिल करने का छोटा पर महत्त्वपूर्ण नुस्खा है कि हम
बाहर निकलें।
दो-दो शिष्य मित्रो, अब आइये हम प्रभु की दूसरी बात पर गौ़र करें।
शायद आपको आश्चर्य होगा कि प्रभु क्यों अपने शिष्यों को दो-दो करके भेज रहे हैं। मित्रो,
इसमें पहली बात जानने योग्य है वह यह कि उन दिनों में यहूदी और ग्रीक परंपरा में जब
कोई संदेश भेजा जाता था तो साधारणतः दो व्यक्तियों को भेजा जाता था यह सुनिश्चित करने
के लिये कि समाचार अवश्य ही पहुँचे। अगर एक को कुछ हो गया तो दूसरा उस मिशन को पूरा करेगा
या फिर एक को कुछ हो गया तो दूसरा उसकी सहायता करेगा। मित्रो, आज हमें प्रभु इस बात को
बताना चाहते हैं कि सुसमाचार के प्रचार के लिये हमें एक-दूसरे व्यक्ति से सहयोग लेने
की आवश्यकता है। मित्रो, प्रभु चाहते हैं कि आपसी सहयोग समझदारी और प्रोत्साहन से ही
भले कार्य को आगे बढ़ाया जा सकता है दुनिया को बेहतर बनाया जा सकता है।
ईश्वर
हमारे साथ तो मित्रो, किसी भी मिशन को सफलतापूर्वक पूरा करने के लिये चाहिये उचित
कदम उठा कर घर से बाहर निकलना और दूसरों का सहयोग लेना। अब प्रभु हमें एक तीसरी बात बताना
चाहते है जिससे हमारा मिशन सफल हो सकता है। वह है कि जब हम कोई भी भला कार्य करने निकलें
तो यह अपने मन रख लें कि आप अकेले कभी नहीं है ईश्वर आपके साथ हैं। मित्रो, आपको याद
होगा सुसमाचार में लिखा है ईश्वर ने अपने चेलों को अधिकार दिया। यह अधिकार ईश्वर की ओर
से दिया गया। जब ईश्वर हमें अधिकार देते हैं तो वे हमें वह विवेक देते हैं कि हम जीवन
के हर मोढ़ में सही निर्णय ले सकें और वीरतापू्र्वक ईश्वरीय कार्य को करते चलें जायें।
मित्रो, कई बार हमारे जीवन में हमने ऐसा भी अऩुभव किया है कि ईश्वरीय कार्य करने वाले
कम हैं या वे अकेले हैं या इससे कोई लाभ नहीं होता है या कई बार धर्म करे सो धक्का पाये
की स्थिति चरितार्थ होती है। फिर भी मित्रो, हम इस बात को कदापि न भूलें कि ईश्वर का
कार्य रुकने वाला नहीं है अगर एक शिष्य़ इस बात को ठीक से समझ ले कि वह अकेला नहीं है
और ईश्वरीय आशिष उसके साथ है तो मिशन आसान और संतोषप्रद हो जायेगा।
ईश्वर पर
भरोसा मित्रो, तो ये तो रही चौथी बात कि हमें ईश्वर पर पूरा भरोसा करना है और उसकी
अच्छाई को अपने जीवन में देख पाना है।
पश्चात्ताप और ह्रदय परिवर्तन मित्रो,
पाँचवी बात जिसे प्रभु हमें बताना चाहते हैं वह यह है कि हमें लोगों को पश्चात्ताप और
ह्रदय-परिवर्तन का संदेश देना है। मित्रो, प्रभु अपने शिष्यों को जब आदेश देते हैं तो
उन्हें इस बात को साफ-साफ बतलाते हैं कि क्या-क्या करना और क्या-क्या लेकर जाना है। येसु
चाहते हैं कि उसके शिष्य कम-से-कम सामान अपने साथ ले चलें ताकि उनका ध्यान अपने मिशन
में लगा रहे । वे पूरे उत्साह से बस प्रभु के बारे में बता सकें। येसु का मानना है कि
यदि व्यक्ति के पास कम-से-कम वस्तुएँ हों ताकि वे लौकिक चीज़ों में कम ध्यान दें और आध्यात्मिक
बातों में अपना ध्यान लगा सकें।
मित्रो, आपने गौ़र किया होगा कि प्रभु चाहते
हैं व्यक्ति के पास एक डंडा हो और एक जोड़ा चप्पल हो। ये दोनों वस्तुएँ किसी भी यात्रा
के लिये अति आवश्यक मानी जाती रही थी। मित्रो, मुझे तो येसु का वह निर्देश भी अर्थपूर्ण
लगा जिसमें वे कहते हैं कि घर-से-घर बदलते न रहो। येसु चाहते हैं कि कम सुविधाओं से ही
येसु का कार्य करें। ऐसा न हो कि घऱ बदलने की फि़राक में हम अपना समय लगा दें और प्रभु
का कार्य पूरा न हो। प्रभु को यह अच्छी तरह से मालूम है कि जब हम कोई अच्छा या भला कार्य
करते हो तो आज की दुनिया में मन को भटकाने वाले कई तत्व सामने आ जाते हैं और हमारे रास्ते
से भटकाने का प्रयास करते हैं इसीलिये प्रभु ने अपने शिष्यों को पहले ही आगाह कर दिया
है कि उनका ध्यान दुनिया की सुख-सुविधाओं और प्रलोभनों पर अटक गया तो ईश्वरीय मिशन की
गति धीमी हो जायेगी।
मित्रो, आज हमारे सामने प्रभु की एक पुकार है कि हम उस नीलमणि
की तरह अनुसरण करना सीखें, ईश्वर के राज्य का प्रचार करें हम प्रभु के लिये अपने घर से
बाहर कदम रखें, दुनिया के भले लोगों से सहयोग माँगे और सहयोग दें। मन में इस बात को याद
रखें कि प्रभु हमारे साथ है किसी भी चीज़ बात या लोगों पर आसक्त न हो जायें और सबों
को ह्रदय परिवर्तन के लिये कार्य करें। अगर हमने ऐसा करना आरंभ किया तो एक ऐसा दीप जलेगा
जिससे एक ओर तो खुद को शांति मिलेगी ही जग भी इसके आलोक से जगमगा उठेगा औऱ एक नयी दुनिया
का निर्माण होगा जिसका आधार होगा येसु की शिक्षा, मूल्य औऱ सिद्धांत अर्थात् प्रेम, दया,
क्षमा का राज्य।