संत पापा सितम्बर माह में लेबनान की प्रेरितिक यात्रा करेंगे
वाटिकन सिटी 5 जुलाई(सीएनएस) संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें 14 से 16 सितम्बर तक लेबनान की
तीन दिवसीय प्रेरितिक यात्रा करेंगे। इस दौरान वे मध्यपूर्व में कलीसिया की स्थिति पर
तैयार पेपल डोक्यूमेंट या प्रेरितिक उदबोधन पर हस्ताक्षर कर इसे धर्माध्यक्षों को सौंपेंगे,
स्थानीय ईसाई और मुसलमान समुदायों के प्रतिनिधियों से मुलाकात करेंगे एवं राजनीतिज्ञों
तथा सांस्कृतिक नेताओं को सम्बोधित करेंगे। संत पापा की इस यात्रा का प्राथमिक लक्ष्य
मध्यपूर्व के धर्माध्यक्षों की वाटिकन में सन 2009 में सम्पन्न विशेष धर्मसभा के दौरान
हुए विचार विमर्षों के आधार पर तैयार प्रेरितिक उदबोधन को धर्माध्यक्षों को सौंपना है।
संत पापा 14 सितम्बर को लेबनान पहुँचेंगे तथा रफीक हरीरी अंतरराष्ट्रीय हवाई अडडे
पर आयोजित समारोह में अपना पहला भाषण देंगे। इसके बाद वे हरीसा शहर जायेंगे और सन 2009
में सम्पन्न धर्मसभा के बाद तैयार किये गये प्रेरितिक उदबोधन पर संत पौल बासिलिका में
आयोजित समारोह में हस्ताक्षर करेंगे। 15 सितम्बर को वे पश्चिमी लेबनान शहर बाबदा जायेंगे
तथा देश के राष्ट्रपति से मिलेंगे और मुसलमान धार्मिक नेताओं के साथ मुलाकात करेंगे।
इसी दिन संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें सरकारी अधिकारियों, धार्मिक नेताओं, राजनीतिज्ञों,
कूटनीतिज्ञों और संस्कृति जगत् के प्रतिनिधियों को भी सम्बोधित करेंगे। वे बेरूत शहर
के उत्तरपूर्व में स्थित बजोमेर शहर जायेंगे जहाँ लेबनान के धर्माध्यक्षों के साथ दोपहर
का भोजन ग्रहण करेंगे तथा मारोनाईट काथलिक प्राधिधर्मपीठ जायेंगे और संध्या पहर में युवाओं
का साक्षात्कार करेंगे। लेबनान की प्रेरितिक यात्रा के अंतिम दिन 16 सितम्बर को वे बेरूत
सिटी सेन्टर वाटरफ्रंट में समारोही ख्रीस्तयाग की अध्यक्षता करेंगे और प्रेरितिक उदबोधन
को मध्यपूर्व के धर्माध्यक्षों को सौपेंगे। रफीक हरीरी अंतरराष्ट्रीय हवाई अडडे में आयोजित
होनेवाले विदाई समारोह के पूर्व वे एक कलीसियाई एकतावर्द्धक बैठक में भी शामिल होंगे।
स्मरण रहे कि सन 2009 में दो सप्ताह तक सम्पन्न मध्यपूर्व के धर्माध्यक्षों की उक्त
धर्मसभा में 185 धर्माध्यक्ष शामिल हुए थे जिसमें अधिकांश धर्माध्यक्ष 22 पूर्वी रीति
के काथलिक चर्चेज के थे जिनकी होली सी के साथ सामुदायिकता है। उक्त धर्मसभा के दौरान
मध्य पूर्व के 16 देशों में रहनेवाले लगभग 5.7 मिलियन काथलिकों की नाजुक परिस्थितियों
पर ध्यान केन्द्रित किया गया था। मध्यपूर्व के धर्माध्यक्षों की धर्मसभा या सिनड की समाप्ति
पर प्रतिभागियों द्वारा एक वक्तव्य जारी किया गया था जिसमें मुसलमान बहुल देशों में धार्मिक
स्वतंत्रता तथा अंतःकरण की स्वतंत्रता को महत्व देने का आह्वान किया गया था।