नयी दिल्ली, 30 जून, 2012 (कैथन्यूज़) संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने एक ऐतिहासिक घोषणा
में भारत के दो लोकधर्मियों को संत बनाये जाने का मार्ग प्रशस्त किया।
18वीं
शताब्दी में तमिलनाडू में ईसाई बने हिन्दु देवसहायम पिल्लै को संत पापा ने ख्रीस्तीय
विश्वास के लिये शहीद होने पर ‘वन्दनीय’ घोषित किया।
विदित हो कि संत पापा द्वारा
काथलिक विश्वासी को ‘वन्दनीय’ घोषित करना उनके संत बनने के मार्ग के चार चरणों की दूसरी
सीढ़ी है।
काथलिका कलीसिया के ऐतिहासिक दस्तावेज़ों के अनुसार पिल्लै को सन् 1752
ईस्वी में उस समय मार डाला गया जब उन्होंने अपने ख्रीस्तीय विश्वास को त्यागने से इंकार
कर दिया।
वन्दनीय पिल्लै को कन्याकुमारी के कोट्टार धर्मप्रांत में शहादत प्राप्त
हुई थी इसलिये कोट्टार धर्मप्रांत ने सन् 1984 में उनके संत बनाये जाने की प्रक्रिया
आरंभ की। इसी प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए सन् 1990 में धर्मप्रांत ने एक हिन्दु बच्चे
को रोम भेजा था जिसे पिल्लै की मध्यस्थता से चंगाई प्राप्त हुई थी।
काथलिक कलीसिया
की रेकॉर्ड के अनुसार पिल्लैं की शहादत राजा मरथान्दा वर्मा शासन काल में हुई। हालाँकि
श्रीधर जैसे इतिहासकारों ने राजा वर्मा के 29 वर्षीय शासनकाल में किसी प्रकार के धर्मसतावट
से इंकार किया है।
दस वर्ष पूर्व भारत की काथलिक धर्माध्यक्षीय समिति ने पिल्लै
को संत बनाये जाने की पहल को आधिकारिक समर्थन दिया था।
मालूम हो कि अब भारतीय
मूल के दो विश्वासियों संत अलफोंसा और गोन्सालो गारसिया को संत बनाया जा चुका है, 6 भारतीय
धर्मसमाजी संत बनाये जाने के तीसरे चरण में पहुँच गये हैं और एक को धन्य घोषित किया जा
चुका है।
लोकधर्मियों में तमिलनाडू के पिल्लै और केरल के थोम्माचन की प्रक्रिया
जारी है। थोम्माचन चंगनाचेर्री निवासी थे और उनकी दो संतान थी।
उन्होंने केरल
में फ्रांसिस्कन थर्ड ऑर्डर को केरल में लोकप्रिय बनाया। उनकी मृत्यु 72 वर्ष की आयु
में सन् 1908 में हुई।